आपदा के चलते राज्य कराह रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को आपद पीडितों की नहीं बल्कि भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के स्वास्थ्य की ज्यादा चिंता है।उत्तराखंड में आई भारी आपदा में अब तक 17 लोग मारे गए हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के लिए राज्य में आई आपदा के पीड़ितों से मिलने से ज्यादा दिल्ली का दौरा अहम है।
मुख्यमंत्री एक बार फिर दिल्ली दौरे पर हैं। बताया जा रहा है कि वे अरूण जेटली को देखने दिल्ली गये हैं। लेकिन, आपदाग्रस्त अपने राज्य के पीड़ितों के पास न जाकर मुख्यमंत्री की अपने राज्य के लोगों के प्रति असंवेदनशीलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
दरअसल, कुर्सी बचाने के लिए दिल्ली के बड़े नेताओं की परिक्रमा करना ज्यादा जरूरी है।और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ये काम बखूबी कर भी रहे हैं।
उधर, राज्य की मोरी तहसील में बादल फटने से भारी तबाही की खबर अगर सोशल मीडिया पर न आती तो अफसरों को जानकारी ही न होती। तबाही के आंकड़ों के लिए राज्य का आपदा विभाग भी सोशल मीडिया पर निर्भर दिखाई दिया। सरकार तो इस मामले में काफी देर बाद सक्रिय हो पाई। सियासी दांव-पेंच के बीच आपदाग्रस्त लोग कराहते रहे। लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा।
दरअसल, सरकार के मुखिया की कुर्सी पर ही आपदा आन पड़ी है। और यह आपदा काफी समय से है। खुद सीएम यह स्वीकार कर चुके हैं कि उनके अपने ही षड्यंत्र रच रहे हैं। एक दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जब भी मिले तब प्रधानमंत्री की भाव भंगिमा इशारा करती रही है कि वे उन्हें व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं। इस बात का प्रमाण हैं तमाम अवसरों पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुलाकात के दौरान के चित्र। जो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। आमतौर पर प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्रियों या किसी अन्य मंत्री से मुस्कराते हुए गर्मजोशी के साथ मिलते नजर आते हैं, पर वही गर्मजोशी त्रिवेंद्र रावत से मिलते समय नजर नहीं आती।
पिछले दिनों हुये कुछ घटनाक्रम भी इसी ओर इशारा करते नजर आते हैं कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए अब समय बदल रहा है। खुद मुख्यमंत्री ने इसे साबित कर दिया कि आपदाग्रस्त राज्य के लोगों से मिलना इतना आवश्यक नहीं जितना कि उनका दिल्ली जाकर नेताओं से मिलना। चाहे अरूण जेटली की सेहत के बहाने ही सही।