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तो सुनियोजित थी पत्रकार और उनके भाई की हत्या, कुछ अनसुलझे सवाल

वरिष्ठ पत्रकार  रियाज हाशमी की रिपोर्ट 

सहारनपुर। नगर कोतवाली के माधोनगर इलाके में युवा पत्रकार आशीष कुमार (25) और उनके भाई आशुतोष कुमार (18) की पड़ोसी महिपाल सैनी और इसके दो बेटों सन्नी आदि ने गोलियां बरसाकर हत्या कर दी। शुरूआती जांच में पुलिस इसे कूड़े के विवाद पर कहासुनी के दौरान हुई घटना मान रही है, लेकिन यह दोहरा हत्याकांड सुनियोजित है और पुलिस का रवैया कहीं न कहीं हत्या के आरोपियों के पक्ष में नजर आ रहा है। कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब अभी अनसुलझे हैं।
घटनास्थल पर इन सवालों के साथ ही पुलिसिया सिस्टम की सड़ांध को भी महसूस किया जा सकता है। माधोनगर चौक से बेहट रोड को जाने वाले मुख्य मार्ग के दाहिनी तरफ की तीसरी गली के मुहाने पर युवा पत्रकार आशीष कुमार धीमान का मकान है। इस तरफ दो मंजिला मकान के दरवाजे मुख्य मार्ग और गली में दोनों तरफ हैं। मुख्य मार्ग के उस पार सामने ही आरोपियों का मकान है, जिसके प्रवेश द्वार के बराबर में दुकान के शटर पर “राणा डेयरी” का बोर्ड टंगा है। आशीष के घर के बाहर तीन-चार गाय बंधी हैं। बताते हैं कि आरोपी परिवार का मुखिया महिपाल सैनी करीब ढाई साल पहले शामली के झिंझाना क्षेत्र से यहां आकर बसा था, जो अपराध के लिए कुख्यात है। दुकान में दो साल पहले तक कोई युवक किराए पर इस दुकान में डेयरी का काम करता था और आरोपियों ने उसे मारपीट के बाद भगा दिया था। तब से इसमें आरोपी परचून की दुकान करते थे। इलाके के लोग बताते हैं कि आरोपी यहां हरियाणा से तस्करी कर लाई गई शराब को अवैध रूप से बेचते थे। दो साल पहले इस पर आशीष ने एक दैनिक अखबार में विस्तृत खबर भी प्रकाशित की थी। तभी से वे आशीष से रंजिश रखते थे।
सुबह 9.30 बजे बारिश की फुहारों में लोग घरों में थे, तभी यह दोहरा हत्याकांड अंजाम दिया गया। इसके लिए बाकायदा आरोपियों ने पूरी प्लानिंग की और विवाद के लिए मौके की इंतजार में बैठे थे। आशीष की बूढ़ी मां उर्मिला ने झाड़ू लगाने के बाद नाले में कूड़ा फेंका तो पड़ोसी महिपाल सैनी, सन्नी सैनी और उसके एक अन्य भाई ने आशीष के घर पर पहले लाठी डंडों से हमला बोला। आशीष, उसके भाई आशुतोष को लाठियों से पीटकर लहूलुहान कर दिया। घायल अवस्था में आशीष ने अपने एक दोस्त को फोन किया, “जल्दी पुलिस चौकी पर फोन करके सूचना करो और घर आओ। हमारा झगड़ा हो गया है।” इस फोन की रिकॉर्डिंग में इससे पहले आशीष कुछ कह पाता तभी फायरिंग की आवाजें आती हैं और कॉल डिस्कनेक्ट हो जाती है। आशुतोष की मौके पर और आशीष की अस्पताल ले जाते हुए मौत हो गई। हमलावर मौके से हथियारों के साथ बेखौफ फरार हो गए। आशीष की मां भी गोली लगने से घायल हैं।
घटनाक्रम सिर्फ इतना जरूर है लेकिन इसके पीछे की कहानी काफी सुनियोजित है। घायल उर्मिला बताती हैं कि एक दिन पहले ही आरोपियों ने अपने घर का सामान गाड़ियों में लादकर अन्यत्र भेज दिया था। उन्हें अंदाजा नहीं था कि ये सब हत्या की प्लानिंग है। आशीष अपने घर में अकेला कमाने वाला नौजवान था और एक हफ्ते पहले ही उसे दैनिक जागरण में सहारनपुर कार्यालय में नौकरी मिली थी। इससे पहले वह दैनिक जनवाणी और हिंदुस्तान में अपनी सेवाएं दे चुका था। आशीष के पिता प्रवीण की दो साल पूर्व ही कैंसर की बीमारी से मृत्यु हुई थी और डेढ़ साल पहले आशीष का विवाह हुआ था। पत्नी रूची आठ माह की गर्भवती है। इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की ऐसी लापरवाही सामने आ रही है, जो खासतौर पर खबरों और पत्रकारों को नजरअंदाज करने से पैदा होती है।
दो साल पहले छपी खबर का यदि पुलिस ने संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई की होती तो शायद आरोपियों के हौसले बुलंद होकर हत्या जैसे जघन्य अपराध की योजना तक न पहुंच पाते। एक पाश इलाके में परचून की दुकान पर लगातार शराब बेचे जाने की जानकारी क्या शहर कोतवाली पुलिस को नहीं थी? अभी पिछले दिनों सहारनपुर में जहरीली शराब से 100 से अधिक मौतों के बाद चले अभियान में भी इन शराब बेचने वालों पर पुलिस की नजर क्यों नहीं गई? यह आसानी से समझा जा सकता है। मौके पर इलाके के लोग पुलिस अफसरों के सामने ही बता रहे थे कि महिपाल और उसके लड़के नाई की दुकान पर भी अवैध पिस्टल सामने रखकर शेविंग कराते थे। सवाल यह भी है कि पुलिस का मुखबिर तंत्र क्या कर रहा था? यह तंत्र सक्रिय था तो पुलिस किन कारणों से इन पर हाथ डालने में निष्क्रिय थी? क्या आरोपियों को कोई राजनीतिक संरक्षण हासिल था या पुलिस व्यवस्था को इन्होंने खरीद लिया था?
शासन ने मृतकों के परिवार को 5-5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की है, लेकिन क्या इससे परिवार के दो सपूतों की भरपाई हो पाएगी? एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु ने पूछे जाने पर कहा, “सुनियोजित हत्या के बिंदु पर जांच हो रही है। पुलिस की तीन टीमें गंभीरता से आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही हैं।”
लेकिन पुलिस कितनी गंभीर है, इस बात का अंदाज घटना के बाद पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज से लगाया जा सकता है। आक्रोशित महिलाएं आरोपियों के घर में घुसने का प्रयास कर रही थीं तो पुलिस ने इन पर लाठीचार्ज कर दिया। मीडिया के पास इसके वीडियो फुटेज मौजूद हैं। लेकिन एसएसपी ने सीओ से मिले फीडबैक के बाद लाठीचार्ज की घटना से ही इन्कार कर दिया। लखनऊ में बैठे बड़े नौकरशाह जिले के अफसरों से लगातार फीडबैक ले रहे हैं, मरने और मारने वालों की जातियां पूछ रहे हैं। वजह साफ है कि सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है और यहां आरोपियों के सजातीय वोट निर्णायक हैं। लेकिन पत्रकार लाचार, बेबस और असंगठित हैं। इसे भी नियती पर छोड़ दिया जाएगा और इंसाफ की उम्मीद उस सिस्टम से की जा रही है, जिसने शराब माफिया को दो साल में युवा पत्रकार और उसके भाई को कत्ल करने का पूरा मौका दिया। आरोपियों के घर में अवैध हथियार, हत्या से एक दिन पहले घर का सामान अन्यत्र भेजने और मामूली बात पर दोहरा हत्याकांड अंजाम देने की घटना क्या सुनियोजित नहीं कही जाएगी?

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