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एक से बढ़कर एक पैदल यात्री@राकेश अचल

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए हमेशा से अच्छा माना जाता है. लेकिन पैदल चलने के लिए केवल पांव ही जरूरी नहीं होते.कुछ लोग अक्ल से भी पैदल चलते हैं. आज की सियासत में पांव से पैदल चलने वाले तो अकेले राहुल गांधी ही नजर आ रहे हैं लेकिन अक्ल से पैदल चलने वालों की लम्बी फेहरिश्त है .अक्ल से पैदल चलना पांव-पांव चलने से ज्यादा आसान काम है .

बीती सदी में पांव-पांव पैदल चलने वालों की लम्बी फेहरिस्त थी,लेकिन मौजूदा सदी में लोग पांव-पांव पैदल चलने से कतराने लगे हैं. पदयात्राओं का अनंत सिलसिला धर्म ध्वजाएं लेकर चलने वालों से लेकर शोषण ,अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों का भी रहा है. आजादी से पहले गुजरात के मोहनदास करमचंद गांधी खूब पैदल चले .उन्होंने पैदल चल-चलकर ही अंग्रेजों की खाट खड़ी कर दी थी .उस जमाने के अमित शाह यानि सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर तमाम लोग पैदल चलते थे .

आजादी के बाद भी नेताओं को पैदल चलने की आदत बनी रही. कांग्रेसी तो पुराने पदयात्री थे ही ,लेकिन बाद में भूदान यज्ञ के आचार्य बिनोवा भावे ,जय प्रकाश नारायण, चंद्र शेखर ,सुनील दत्त ने भी खूब पदयात्राएं कीं,लेकिन 1980 में जन्मी भाजपा के नेताओं ने पैदल चलने के बजाय रथयात्रा को प्रमुखता दी .भाजपा को रथयात्राओं का लाभ भी मिला ,इसलिए वे आज तक पैदल नहीं चलते .हमारे मध्यप्रदेश में आज के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को किसी जमाने में पैदल चलने की खूब आदत थी. उन्हें प्रदेश में पांव-पांव वाले भैया के नाम से जाना जाता था .लेकिन आजकल वे भी पांव-पांव पैदल चलने के बजाय अक्ल से पैदल चलने लगे हैं .समाजवादी और वामपंथी भी खूब पदयात्राएं करते हैं ,
बिहार के भाजपा नेता सत्ता हाथ से निकलने के बाद तेजी के साथ अक्ल से पैदल चल रहे है. वहां के भाजपा प्रवक्ता आरपी सिंह कहते हैं की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फूलपुर से लोकसभा का चुनाव जीतना तो दूर विधानसभा का चुनाव भी नहीं जीत सकते .आरपी सिंह भाजपा के प्रतिभाशाली नेता हैं इसलिए उनका अक्ल से पैदल चलने पर किसी को कोई हैरानी नहीं है. बिहार में सब जानते हैं कि नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में लोकसभा और विधानसभा के कितने चुनाव लाडे और जीते .वे कितनी बार मुख्यमंत्री रहे ,ये बताना भी जरूरी नहीं है .

राजनीति में पैदल चलने के लिए एक जोड़ी पांव और उत्तम स्वास्थ्य की दरकार होती है ,जबकि अक्ल से पैदल चलने के लिए अक्ल को छोड़ किसी और चीज की जरूरत नहीं होती .अक्ल से पैदल चलने वाले आँख से अंधे लेकिन नाम नयनसुख जैसे होते हैं .अक्ल से पैदल वे लोग चलते हैं जिनके पास अक्ल और पांव दोनों नहीं होते .हमने बीते पांच दशकों में बड़े से बड़े यानि एक से बढ़कर एक पदयात्री देखे हैं. पांव-पांव चलने वाले भी और अक्ल से पैदल भी .दोनों में बड़ा फर्क होता है .

अक्ल से पैदल चलने वालों का नाम इतिहास में कम दर्ज होता है लेकिन पांव-पांव चलने वालों का इतिहास हमेशा लिखा जाता है. देश को जोड़ने या तोड़ने के लिए पैदल चलना एक कला है .कलाकार कैसे पैदल चलें ये उनका अपना फैसला है .इसमें हम और आप कुछ नहीं कर सकते .अब राहुल गांधी को ही लीजिये .वे पांव-पांव पैदल चल रहे हैं लेकिन उनके हाथ में न देश का तिरंगा है और न पार्टी का झंडा ,जबकि दूसरी और जंगल में चीते ढीलने के लिए जाने वाले नेताओं के गले में पार्टी का दुपट्टा ऐसे लिपटा रहता है जैसे शिवजी के गले में नागदेव .यानि अक्ल से पैदल चलने वालों की अपनी कोई पहचान नहीं. वे सरकारी समारोह में जाएँ या गैर सरकारी समारोह में उन्हें पार्टी का डंडा-झंडा या दुपट्टा चाहिए .

मै उन लोगों में से हूँ जो हर तरह के यात्रियों का सम्मान करते हैं .फिर चाहे वे पांव -पांव चलने वाले हों या अक्ल से पैदल या रथयात्री .इंदिरा गाँधी तो बेलछी हाथी पर सवार होकर गयीं थीं .यानि आपको कैसे यात्रा करना है ये आपका अपना निर्णय है .लेकिन तजुर्बा बताता है कि पांव-पांव चलना सबसे ज्यादा असरदार तरीका है. हाथी और रथ दूसरे , तीसरे नबर पर आते हैं .हर तरह की यात्रा परिवर्तन की संवाहक होती है .दक्षिण में एनटीआर की रथयात्रा आपको याद होगी ही .वहां के नेता आज भी पद और रथ यात्राओं के मुरीद हैं .और इसीलिए वे महफूज भी हैं .

पांव-पांव चल रहे राहुल गांधी को अपनी भारत जोड़ो यात्रा से क्या हासिल होगा ,ये वे जानें ? हम तो ये जानते हैं कि उनकी यात्रा से देश जुड़े न जुड़े किन्तु टूटेगा तो नहीं ,देश तोड़ना एक श्रमसाध्य काम है और ये साधना राहुल कर नहीं सकते .ये लालजी के बूते की ही बात थी. ये काम शाह साहब ही कर सकते हैं .लेकिन उनका दावा है कि वे बिना किसी यात्रा के ही देश को जोड़ने में लगे हैं .भले ही उनकी पार्टी के लोग अक्ल से पैदल चलकर पार्टी का नुक्सान कर रहे हों .

सियासत में पैरों से चलने वालों और अक्ल से पैदल चलने वालों की शिनाख्त चुनाव से पहले ही कर ली जाये तो बेहतर है .अक्ल से पैदल चलने वालों को आप सौ जतन करके भी सुधर नहीं सकते किन्तु पांव-पांव चलने वालों में सुधार की गुंजाईश रहती है .सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने के लिए पैदल चलना शुभ माना जाता है .रथ पर चढ़कर जनता के दिमाग पर छाना भी आसान काम है .आजकल के रथों में तो सचमुच के घोड़े जाते नहीं जाते,केवल अश्वशक्ति बताने वाले डीजल -पेट्रोल के इंजिन वाले मंहगे वाहनों की जरूरत पड़ती है .जिसके पास जितनी ज्यादा गाड़ियां रथ बनाने के लिए उपलब्ध हैं वो उतना जयादा सत्ता के करीब है .राहुल गांधी जैसे लोगों का भविष्य पदयात्रियों पर निर्भर करता है .
भविष्य में देश की मौजूदा तस्वीर पर इन दोनों तरह की यात्राओं का क्या असर पड़ने वाला है ,इसके बारे में अभी से कुछ कहा नहीं जा सकता .ये पदयात्राएं सफल भी हो सकती हैं और विफल भी हो सकतीं हैं .लेकिन ऐसी यात्राओं की जरूरत देश को हमेशा रही है .हमारा देश आबादी के लिहाज से भले ही बड़ा देश हो किन्तु क्षेत्रफल के लिहाज से इतना बड़ा देश नहीं है की उसे पांव-पांव चलकर न नापा जा सके ,अक्ल से पैदल चलकर तो इस देश को और जल्द नापा जा सकता है .अब आपको तय करना है कि आप किस तरह के यात्रियों के साथ हैं ?
@ राकेश अचल

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