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चीते को सलाम करो ……@70 सालों बाद हुई वापसी पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश का विश्लेषण

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

दोस्त मुंबई से आये या नाम्बिया से,उसे सलाम करना चाहिए. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अनुकम्पा से उनके जन्मदिन पर हमारे इलाके के कूनो अभ्यारण्य में नाम्बिया के चीते आ रहे हैं .इसलिए उन्हें सलाम करना बनता है. हम चीतों के साथ ही प्रधानमंत्री जी को भी सलाम करते हैं .वे शतायु हों ,स्वस्थ और प्रसन्न रहें और जैसी हवा-हवाई करते आये हैं करते रहें .

प्रधानमंत्री जी अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर समरकंद में थे.समरकंद का नाम भले ही जिमीकंद से मिलता हो लेकिन समरकंद एक मूल नहीं बल्कि एक देश है. वहां वे रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मिले.लेकिन पुतिन ने रूसी परम्पराओं के चलते मोदी जी को एडवांस में जन्मदिन की बधाई नहीं दी .बधाई तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी नहीं दी,जिन्हें मोदी जी भारत में खूब झूला झूला चुके हैं .कहते हैं कि इस बार मोदी जी ने शी की ओर मुस्कराकर भी नहीं देखा .बड़े लोगों की बड़ी बातें .पता नहीं क्या वजह है जो दोस्ती में दरार आ गयी ?

बहरहाल बात चीतों को सलाम करने की थी. चीते इस महान राष्ट्र की पहली जरूरत थे,इसलिए मोदी जी के विशेष प्रयास से वे हमें उपलब्ध हो गए .
हमारे सूबे के मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान खुश हैं कि अब मध्यप्रदेश को ‘ टाइगर स्टेट ‘ के साथ ही ‘ चीता स्टेट ‘ भी कहा जा सकेगा .मध्यप्रदेश में दोनों तरह के टाइगर और चीते मौजूद हैं. एक वे जो जंगल में रहते हैं और दूसरे वे जो सियासत के जंगल में दहाड़ते रहते हैं .सियासी चीते और टाइगर दहाड़ने के साथ ही मिमियाना भी जानते हैं . 2018 तक हमारे यहां टाइगर और चीते अलग-अलग सियासी घाटों पर थे किन्तु वक्त बदल गया है,अब वे दोनों एक ही घाट का पानी पीते हैं.अब वे टाइगर कम हैं ,ज्यादा तो चीते हैं .
प्रधानमंत्री जी की कृपा है मध्यप्रदेश पर जो उन्होंने यहां के टाइगर को अभी तक ‘ केज’ में नहीं डाला है,अन्यथा वे अपने गृहराज्य के टाइगर तक बदल चुके हैं .उन्हें मिमियाते हुए टाइगर पसंद नहीं . उन्होंने गुजरात,उत्तराखंड और कर्नाटक तक में आपने टाइगर बदले लेकिन मध्यप्रदेश को हाथ नहीं लगाया .प्रधानमंत्री जी जानते हैं कि यहां कोई भी हो जंगल में रहकर सिर्फ दहाड़ सकता है ,शिकार नहीं कर सकता .
बहरहाल नामीबिया के चीते एक विशेष विमान से कूनों पहुँच गए हैं. चीते विशेष विमान से ही यात्रा करते हैं .नामीबिया के चीते नामी होंगे ही.सुना है अभी वे ‘ जेटलैग ‘ का शिकार हैं .नामीबिया के चीतों को कूनों -पालपुर के जंगल में मंगल करना कितना अच्छा लगेगा,अभी कहा नहीं जा सकता .वैसे कूनों को देशी गुजराती शेरों की दरकार थी .दुर्भाग्य कि वे पड़ौस में होते हुए भी मध्यप्रदेश को नहीं मिले .आखिर गुजरात वाले अपने कागजी शेर मध्यप्रदेश को क्यों देने लगे .?

चीतों के जरिये मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था व्यवस्थित होगी ऐसा दावा किया जा रहा है.मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था आजकल अस्त -व्यस्त चल रही है .मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था ही नहीं सियासत भी अस्तव्यस्त है ,लेकिन हम सद्भावना की वजह से जंगलराज नहीं कह रहे ,हालाँकि आजकल मध्यप्रदेश में जंगल राज ही है .कोई किसी की सुनने के लिए राजी नहीं है .अब उम्मीद है कि नामीबिया के चीतों के आने के बाद कुछ सुधार आ जाये .हमने बचपन में तेंदुए बहुत देखे हैं .वे भी चीतों की तरह तेज-तर्रार होते हैं .शेर तो देखे ही हैं .अब चीते भी देखेंगे .जंगली जानवरों के बीच रहने से आदमी में स्फूर्ति आ जाती है .हमारे पास तो एक छोड़ दो-दो,तीन-तीन अभ्यारण्य हैं .

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हमारे प्रधानमंत्री भले ही देश की समस्याओं से अनजान हों लेकिन दुनिया की समस्याओं से पूरी तरह वाकिफ हैं .उन्होंने पुतिन के साथ बैठक में कहा कि-‘ मैं आपका और यूक्रेन का आभारी हूं क्योंकि संकट में फंसे हमारे हजारों छात्र आप दोनों की मदद से ही बाहर निकल पाए। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के सामने कई बड़ी समस्याएं हैं, खासकर विकासशील देशों के सामने, जिनमें खाद्य सुरक्षा, ईंधन सुरक्षा, उर्वरक शामिल हैं और हमें इनसे निपटने के लिए रास्ते निकालने होंगे।’
हम मानकर चलते हैं कि जब दुनिया की समस्याएं सुलझेंगीं तो हमारी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएँगी .वैसे भी हमें समस्याओं से जूझने का अच्छा-खासा तजुर्बा है .पिछले पचहत्तर वर्ष में हमने एक से बढ़कर एक समस्याओं का समाना किया है. आज भी कर रहे हैं ,कल की कल देखेंगे .फिलहाल तो हमारी उत्सुकता नामीबिया के चीतों को लेकर है. सरकारी रेवड़ में शामिल होकर हम कूनों जा नहीं सके और अपनी अंटी ढीली करके चीते देखने की हमारी हैसियत नहीं .वैसे भी ये चीते कौन से कूनो इलाके के सहरियों को देखने को मिलेंगे ! वे बेचारे इतना कमा ही नहीं पाते की चीते देखने के लिए अभ्यारण्य में प्रवेश का टिकिट खरीद पाएं .लेकिन सरकार चाहती है कि यहां के सहरिये इन चीतों के जरिये ही रोजगार हासिल करें.खुद भले ही चीते न देखें लेकिन यदि भूले-भटके यहां कोई चीता प्रेमी पर्यटक आ जाये तो उसे जरूर दिखाएँ .

कूनों-पालपुर के जंगलों में एक जमाने में शेर ही शेर थे लेकिन उन्हें रियासत के टाइगरों ने एक के बाद एक शिकार कर निबटा दिया .हमने कूनों का अभ्यारण्य देखा है. बड़ा खूबसूरत है. यहां बहने वाली सीप नदी और सर्दियों में नदी किनारे धूप सेंकते सफेद मगरमच्छ बड़े ही खूबसूरत लगते हैं .हम तो इस अभ्यारण्य में तब गए थे जब यहां चीते नहीं रामबाबू गड़रिया का गैंग रहता था .जो है सो है .वक्त बदल गया है ,अब जंगल में डाकू नहीं चीते ही रहेंगे. डाकू शहरों में शिफ्ट हो चुके हैं अब वे पुलिस या फौजियों की वर्दियों में नहीं बल्कि नेताओं की पोषक में विचरण करते हैं .

हम खुश हैं कि 70 साल बाद भारत में फिर से चीतों की वापसी हो रही है।देश के प्रधानमंत्री जी उनकी अगवानी खुद कर रहे हैं .ये नामीबिया का और वहां के चीतों का सौभाग्य है .ये काम कांग्रेस सत्तर साल में नहीं कर पायी लेकिन मोदी जी ने आठ साल में कर दिखाया .मोदी जी के कामों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है .नेहरू जी के कामों से भी ज्यादा लम्बी .लेकिन चीतों के खैरमकदम के समय सियासत की बात नहीं करूंगा .आइये सब मिलकर नामीबिया से आये चीतों को सलाम करें .

@ राकेश अचल

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