नई दिल्ली। अयोध्या विवादित भूमि मसले पर सुनवाई के दौरान राम लला विराजमान पक्ष की तरफ से कहा गया है कि अयोध्या के विवादित स्थल पर नमाज अदा करने का मतलब ये नहीं है कि उस पर उनका अधिकार हो जाता है। इसके विपरीत यह वास्तविकता है विवादित स्थल पर हिन्दू देवी देवताओं की अनेक आकृतियां मिली हैं। वकील सी एस वैद्यनाथन ने सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ से कहा- “इसलिए क्योंकि गलियों में नमाज अता की जाती है, इसका मतलब ये नहीं है कि उस पर उनका अधिकार हो जाए।”
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से ‘राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने अपनी दलीलों के समर्थन में विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिये अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट के अंश पढ़े।संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान पीठ से वैद्यनाथन ने कहा कि अदालत के कमिश्नर ने 16 अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का निरीक्षण किया था और उन्होंने वहां भगवान शिव की आकृति वाले स्तंभों की उपस्थिति का वर्णन अपनी रिपोर्ट में किया था।
वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर ही देवी देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गयी आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा।
उन्होने कहा कि इन तथ्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि यह हिन्दुओं के लिये धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था।संविधान पीठ को सी एस वैद्यनाथन ने एक एलबम भी सौंपा जिसमें ढांचे के भीतर देवी देवताओं की तस्वीरें हैं और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं।
बता दें कि शीर्ष अदालत इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है। अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद में सुनवाई महत्वपूर्ण दौर में पहुंच गई है। उच्चतम न्यायालय में बुधवार को हुई सुनवाई में इसकी तस्दीक की गई कि विवादित स्थल पर ढांचे को तोड़कर निर्माण किया गया। मस्जिद पहले से वहां नहीं थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ में जस्टिस एसए बोब्डे ने कहा, इसमें कोई विवाद नहीं है कि जन्मस्थान पर विध्वंस और निर्माण हुआ। यहां पर मस्जिद बनी।संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जबकि रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने बताया कि 1945 में शिया वक्फ बोर्ड ने सुन्नी बोर्ड के खिलाफ जिला अदालत में मुकदमा दर्ज किया था।
शिया बोर्ड ने इस स्थान का कब्जा मांगा था, लेकिन यह मुकदमा खारिज हो गया। इस पर जस्टिस बोब्डे ने सुन्नी बोर्ड से पूछा कि इस मुकदमे में उसका क्या रुख था और उन्होंने उस समय क्या कहा था। बोर्ड के वकील धवन ने कहा कि यह उन्हें नहीं पता, लेकिन वह पता करेंगे। शिया बोर्ड वकील खड़े हुए और उन्होंने कहा कि इस मुकदमे में उन्होंने 72 साल बाद 2017 में एसएलपी पेश की है जिस पर वह बहस करेंगे। उनका दावा था कि मस्जिद शिया थी, क्योंकि मीरबकी(बाबर के सेनापति) शिया था।
वैद्यनाथन ने अंग्रेज पुरातत्वशास्त्री अलेक्जेंडर कनिंघम के साथ दो चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग का जिक्र करते हुए कहा इन यात्रियों ने अपने यात्रा वृतांत में अयोध्या को सांची कहा, लेकिन एम मार्टिन ने अपनी पुस्तक में इस स्थान को अयोध्या बताया।अयोध्या के सेटलमेंट कमिश्नर पी कार्नेगी ने 1870 अपनी रिपोर्ट में अयोध्या में ढांचे का जिक्र किया। अयोध्या कमिश्नर ने 1950 में बताया कि स्थान पर 13 कसौटी खंबे हैं जिन पर गुंबद टिके हुए हैं। वैद्यनाथन ने बाराबंकी के गजेटियर का जिक्र किया जिसमें जन्मस्थान को लेकर हिंदू मुस्लिम संघर्ष को उल्लेखित किया गया है। उन्होंने कहा कि 1985 में बेल्जियम के शोधार्थी हैंस बेकर की पुस्तक में बताया गया है कि स्थल पर खुदाई में 130 गुणा 80 फुट की विशाल चौखट मिली थी।
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा लगता कि अयोध्या में कई धर्मों का प्रभाव रहा, कभी जैन तो कभी बौद्ध और उसके बाद इस्लाम। वैद्यनाथन ने कहा कि ईसापूर्व चौथी सदी में अयोध्या बर्बाद हो गई थी जिसे विक्रमादित्य ने पुनर्जीवित किया।ये कालखंड रहे हैं लेकिन इनके दौरान भी अयोध्या रस्में हिंदुओं की आस्था भगवान राम में रही। वैद्यनाथन ने पीठ से कहा कि यह स्पष्ट है कि ढांचा वहां पर था। यह (मस्जिद) निर्माण उस स्थान पर हुआ जिसे हिंदू मानते हैं कि यह (राम का) जन्मस्थान है। वैद्यनाथन ने कहा कि मंदिर गिराए जाने को लेकर दो कथन हैं। पहला बाबर द्वारा मंदिर गिराने के बारे में और दूसरा औरंगजेब द्वारा इसे गिराने के बारे में।