विनोद भगत
क्या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री नाराज हैं? ये सवाल राजनीतिक गलियारों में दो दिन से तैर रहा है। दरअसल सवाल यूं ही नहीं उठा। इसके पीछे वजह बहुत बड़ी है। राज्य के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य में एक मुख्यमंत्री होने के बाद भी प्रधानमंत्री को सीधे हस्तक्षेप करना पड़ा हो। टिहरी दुर्घटना के मृतकों के मुआवजे के मामले प्रधानमंत्री की ओर से घोषणा करने का मतलब तो यही है कि राज्य में मुख्यमंत्री को नजरअंदाज कर दिया गया है। मुख्यमंत्री राज्य का मुखिया होता है और उसके कुछ संवैधानिक अधिकार होते हैं राज्य के मामले में। लेकिन यहाँ प्रधानमंत्री ने सीधे मुआवजे की घोषणा कर जता दिया है कि राज्य में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
वैसे भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरूद्ध साजिश चल रही है। ये बात स्वयं मुख्यमंत्री अपने मुँह से कह चुके हैं। तो क्या मुख्यमंत्री के विरोधियों की साजिश कामयाब होती नजर आ रही है। क्या हाईकमान ऐसे अवसर ढूंढ रहा है।
राज्य के लिए यह शर्मनाक स्थिति है कि जब राज्य के मुख्यमंत्री टिहरी दुर्घटना से उपजे आक्रोश को शांत नहीं कर पाते और प्रधानमंत्री को दखल देना पड़ता है।
प्रधानमंत्री ने टिहरी में स्कूल वैन दुर्घटना में मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख मुआवजा तथा घायलों को 50-50 हजार रुपये दिलाने का ट्वीट किया।
दरअसल राज्य में लंबे समय से चल रही नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं के बीच यह प्रकरण अपने आप में कुछ कहता है। क्या हाईकमान के पास अब नेतृत्व परिवर्तन की एक वजह है। विरोधियों के पांसे सही पड़ने जा रहे हैं।
वहीं मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया से लेकर पार्टी के विधायक तक सवाल उठा रहे हैं। विधायक मुन्नी शाह ने तो अपनी ही सरकार को चेतावनी भी दे दी है। कुल मिलाकर उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन का बीज बोया जा चुका है और विरोधी अपने स्तर से तमाम योजनायें तथा जनसुविधा की घोषणा कर वाहवाही लूट रहे हैं। कोई बस चलवा रहा है तो कोई मंत्री खुलेआम यह स्वीकार कर रहा है कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते हैं। बहरहाल कुछ तो गड़बड़ है।