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पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?@सूबे की बेहाली के बीच सरकार मंत्री जी की आवभगत में, वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की खरी खरी

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

मुझे इंद्रजीत सिंह तुलसी बेहद पसंद हैं |इंद्रजीत सिंह तुलसी गीतकार हैं और उन्होंने ऐसे पानीदार गीत लिखे हैं की सुनकर कोई भी पानी-पानी हो जाये ! मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल समेत सूबे के अनेक शहरों में पानी -पानी देखकर तुलसी जी की याद आना स्वाभाविक है | तुलसी ने 1972 में खुद से ये सवाल किया था कि-‘ पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?’. उस सवाल का जबाब भी तुलसी ने ही दिया कि -‘ जिस में मिला दो लगे उस जैसा ” |
सचमुच पानी का अपना कोई रंग नहीं होता |

पिछले दो दिन से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल समेत आधा मध्यप्रदेश जलमग्न है ,यानि पानी -पानी है लेकिन सूबे की सरकार का पानी पता नहीं कब मर गया | सूबे की सरकार केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह की आवभगत में हलकान होती रही | भोपाल की जनता को लम्बे अरसे तक न बिजली मिली और न घरों में घुस चुके पानी से निजात | पानी की अपनी कोई जात नहीं होती ,इसलिए वो उन सबके घरों में घुसा जो निचले इलाकों में रहते हैं | पानी ऊंचे ठिकाने पर रहने वालों को बहुत जल्द परेशान नहीं करता | ऊपर चढ़ने कि लिए पानी को भी मेहनत करना पड़ती है |

सूबा डूब रहा था,भोपाल डूब रहा था लेकिन बिना पानी की सरकार केंद्रीय गृहमंत्री से उनका कार्यक्रम रद्द करने कि लिए कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी | सूबा सरकार की हिम्मत तो पहले से टूटी हुई है,हाल ही में सूबे कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी को पार्टी ने संसदीय बोर्ड से जो बेदखल कर दिया था |मै अगर मुख्यमंत्री होता तो शायद शाह साहब से माफी मांगकर उनका कार्यक्रम रद्द कर देता | लेकिन मै मुख्यमंत्री हो ही नहीं सकता ,क्योंकि खुदा गंजों को नाखून नहीं देता |

सूबे में एक तरफ हाहाकार मचा था और दूसरी और शाह साहब मध्य क्षेत्रीय परिषद की बैठक कर रहे थे | सरकार कि लिए बैठक जरूरी थी न कि बाढ़ग्रस्त जनता को राहत पहुंचाना| जनता को राहत पहुँचाने का काम मशीनरी का है ,लेकिन वो भी तो शाह साहब की सेवा में हाजिर थी | जनता खुद पानी से दो-दो हाथ करती रही| अपने नसीब को कोसती रही ,लेकिन उसकी इमदाद करने वाले नहीं आना थे सो नहीं आये और जब आये भी तो आधे-अधूरे इंतजामों कि साथ आये | शहर 18 घंटे तक अँधेरे में डूबा रहा |

केंद्रीय गृहमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली मीटिंग सचमुच महत्वपूर्ण थी ,लेकिन हालात को देखते हुए उसे टाला जा सकता था | किन्तु टालता कौन ? पहल करता कौन ? आज के किसी मुख्यमंत्री में इतना साहस है जो शाह से मीटिंग टालने की बात कह सके ? अब जमाना बदल गया है | अब मुख्यमत्री चिड़ी कि गुलाम और शाह सचमुच कि शाह बन चुके हैं | पड़ौस कि सूबे छत्तीसगढ़ में भी पानी ही पानी था | वहां के मुख्यमंत्री ने भोपाल आने से मना कर दिया | एक और मुख्यमंत्री ने भी ऐसा ही किया | लेकिन हमारे मुख्यमंत्री जी, शाह से फिर कभी बैठक करने की बात नहीं कह पाए | मेरे ख्याल से यदि मुख्यमंत्री जी शाह साहब से कहते तो वे मान जाते | लेकिन बात वही, कि कहे कौन ?

पानी ऐसी शै है कि जिसके ऊपर किसी का काबू नहीं | पानी की ताकत ऐसी नहीं है जैसा की जनादेश होता है | आप पानी कि वेग को खरीद नहीं सकते ,लेकिन उससे बचाव कि इंतजाम तो कर सकते हैं | लेकिन राजनीतिक विवशताओं कि चलते आप यदि जनता को असहाय अवस्था में छोड़कर अपने राजनीतिक आकाओं की खिदमत में लग जाते हैं ,तो समझिये कि आपकी आँखों का पानी मर चुका है | सियासत हो या निजी जिंदगी ,आँखों का पानी मरना नहीं चाहिए | पानीदार आदमी की सब दूर इज्जत होती है | बेपानीदार आदमी को कोई नहीं बूझता |इसलिए पानी से बचना भी चाहिए और पानी को बचाना भी चाहिए |

आकाशीय पानी ने अपना काम किया,आप अपना काम करते तो शायद जनता परेशान न होती | बादल किसी सरकार से पूछकर नहीं फटते | बादलों की और पानी की अपनी सत्ता होती है | आप अगर मुफ्त में मिले पानी का प्रबंधन नहीं करते तो पानी कुपित होता ही है | आप तो पानी रोकने कि लिए जो बाँध बनाते हैं वे पहली ही वर्षा में बह जाते हैं | उनका बहना तय था ,क्योंकि जिस पैसे से बाँध बनना था उसी पैसे से आपने विधायक खरीद लिए | बाँध बनाने कि बजाय अपनी पार्टी और दूसरे संगठनों कि आलीशान दफ्तर बना लिए |आपकी नियति ही नहीं है जल प्रबंधन करने की |
हमारे पंत प्रधान खुश हैं कि उन्होंने 130 करोड़ की आबादी में से काफी कुछ कि घरों तक नल से पानी पहुंचा दिया | अब कोई उन्हें बताये कि प्रकृति तो दुनिया की तमाम आबादी को पहले से ही मुफ्त में पानी बाँट रही थी| आपके ही कुप्रबंध ने भूमिगत जल को सोख लिया,बर्बाद कर दिया | मजबूरन पानी पहुँच से बाहर हो गया | मुफ्त कि पानी कि बदले आपने देश में बोतलबंद पानी का एक बड़ा उद्योग खड़ा कर दिया |आप अगर पानी को व्यपार से मुक्त बनाये रखते तो मजाल है की पानी बिकता ?आपकी जल -नल योजनाओं और कुप्रबंध की वजह से पानी का कारोबार पनपा |

बहरहाल बात पानी-पानी हो रहे मध्य्प्रदेश और दूसरे हिस्सों की हो रही है | मध्यप्रदेश की सरकार ने केंद्र से पानी-पानी हो चुके सूबे कि लिए कोई इमदाद नहीं मांगी | मांगने में शायद सरकार को शर्म आती है | मांगना है ही शर्मनाक काम | वोट को छोड़कर और कुछ ऐसा नहीं है जो माँगा जा सके | वोट मांगने में कभी किसी को शर्म नहीं आती | मैंने वोट मांगते हुए किसी को शर्माते नहीं देखा |भोपाल में मध्य क्षेत्रीय परिषद की बैठक होती रही | शाह साहब मुख्यमंत्री जी कि घर चाय-पान कि लिए गए लेकिन किसी बाढ़ग्रस्त इलाके में नहीं गए | उन्हें भी शायद पानी से डर लगता है | मुझे लगता है कि यदि उनकी जगह सरदार बल्ल्भ भाई पटेल भोपाल आये होते तो वे जरूर बाढ़ग्रस्त इलाकों में जाते ,भले ही मुख्यमंत्री जी के घर न जाते |

भोपाल और ,मध्यप्रदेश के लोगों को मुख्यमंत्री जी का आभार मानना चाहिए कि उन्होंने अपने व्यस्त समय में से समय निकाल कर भोपाल कि स्टेट हैंगर पर ही जलप्लावन की स्थिति की समीक्षा की | कलेक्टरों  से फोन पर बात की | एक मुख्यमंत्री इससे ज्यादा क्या कर सकता है बाबरे ?
@ राकेश अचल

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