काशीपुर ।आप देश के शहीदों के नाम पर चार लाइनें स्टेज पर वीर रस में गाकर श्रोताओं की रगों में देशप्रेम और देशभक्ति का जज्बा भर दें। लोग आपकी वाहवाही कर दें। आमतौर पर तमाम वीर रस के कवि इसी से संतुष्ट हो जाते हैं। उन्हें शहीदों के नाम पर ख्याति मिल जाती है। रचनाकर्म क्या इतने से पूर्ण हो जाता है। आप कहेंगे और क्या चाहिए? एक कवि को नाम और प्रशंसा। इतने से आप कवि जरूर कहलाये जायेंगे। एक कवि है जिसके लिए इतना काफी नहीं है। जो शब्दों का महज व्यापारी बन कर नहीं रहा। शब्द उसके ह्रदय से निकलते हैं। वह शहीदों के नाम पर ढकोसले भरी रचनायें नहीं लिखता।
आज काशीपुर के एक ऐसे ही कवि अनिल सारस्वत से आपका परिचय कराते हैं। देखने में शांत और गंभीर पर यही अनिल सारस्वत जब स्टेज पर एक कवि के रूप में खड़े हो जाये तो दहाड़ता है। ललकारता है देश के दुश्मनों को और पीड़ा से कराहता है देश के नाम पर शहीद हो गयी तमाम विभूतियों को स्मरण करते हुए। तब तमाम श्रोताओं की भुजायें फड़कने लगती है। यहाँ तक अनिल सारस्वत आम कवियों की तरह अपने रचनाकर्म को निभाने वाले कवि की भूमिका निभाते दिखाई देते हैं। लेकिन महज बातों से शहीदों का नाम लेने वाले बहुत लोग हैं यहाँ तक कि सरकारें भी शहीदों के नाम पर राजनीति करती नजर आती रहीं हैं। पर अनिल सारस्वत इससे इतर अपने सीमित संसाधनों के बावजूद कई शहीदों के परिजनों को उनके घर जाकर सम्मानित कर चुके हैं। अब तक हजारों रुपए की आर्थिक सहायता और प्रमाण पत्र देकर अनिल ने उनका सम्मान किया है। ये समाज में एक प्रेरणास्रोत हैं। न केवल कवियों के लिए वरन समाज के हर पेशे से जुड़े लोगों के लिए। देशप्रेम और देशभक्ति सिर्फ नारे लगाने या चार लाइनें लिख देने से नहीं आती उसके लिए धरातल पर कुछ करना होता है। आज स्वतंत्रता दिवस पर कवि अनिल सारस्वत के इस प्रयास की सराहना तो बनती है।
अब तक एक दर्जन से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के परिजनों को उनके निवास पर जाकर सम्मानित कर चुके कवि अनिल सारस्वत 50 हजार से अधिक की राशि स्वयं के पास से सहायतार्थ दे चुके हैं। व।वह कहते हैं कि उन्हें अपने रचनाकर्म से ज्यादा इस बात से खुशी मिलती है कि मां सरस्वती ने उन्हें शहीदों को स्मरण करने और उनके परिजनों से मिलवाने का सौभाग्य दिया है। और यह अनवरत जारी रहेगा।