विनोद भगत
काशीपुर ।उत्तराखंड के 650 डीएलएड प्रशिक्षार्थी अनिश्चय की स्थिति से गुजर रहे हैं। प्रदेश सरकार द्वारा नियमों में संशोधन के चलते मौजूदा सत्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अभ्यर्थियों की प्रशिक्षणोपरांत रोजगार मिलने की आशाओं पर तुषारापात हो गया है।
उत्तराखंड में डीएलएड एडमिशन प्रक्रिया उत्तराखंड स्कूल शिक्षा बोर्ड के द्वारा आयोजित की जाती है। यह दो वर्षों का डिप्लोमा कोर्स है। इस कोर्स के माध्यम से राज्य में प्राइमरी शिक्षकों के लिए डिप्लोमा की उपाधि प्रदान की जाती है। यह दो वर्षो का पाठ्यक्रम है। उत्तराखंड में होने वाली डीएलएड कोर्स करने के बाद उम्मीदवार पूरे राज्य में किसी भी विद्यालय या संस्थान में प्राइमरी शिक्षक के पद के लिए योग्य माना जाता है। पर अब सरकार ने इसका दायरा बढ़ाया है। अब शिक्षकों के इन पदों के लिए दूसरे राज्यों से डीएलएड का प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी भी उत्तराखंड में आवेदन कर सकते हैं। उधर एन आई ओ एस से डीएलएड प्रशिक्षार्थी को भी एन सी टी ई से मान्यता प्रदान कर दी गई है। इस तरह से राज्य निवासियों के साथ साथ उनकी भी दावेदारी बन गई है।
बता दें कि 2017 में राज्य के हजारों युवाओं ने डीएलएड प्रशिक्षण के लिए परीक्षा दी थी। जिसमें से 650 अभ्यर्थी चयनित हुये थे। 50 – 50 के बैच में जिन्हें उत्तराखंड के सभी 13 जनपदों में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में दो वर्षीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन दो वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा नियमावली में संशोधन से इन प्रशिक्षणार्थियों को लगने लगा है कि प्रशिक्षण के पश्चात उनके सामने रोजगार का गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। 35000हजार प्रतिवर्ष की फीस देने और कठिन प्रशिक्षण के बाद उन्हें राज्य में विद्यालयों में शिक्षक के रूप में सेवा का अवसर मिल पायेगा भी या बाहरी राज्यों के लोग उनका हक मार जायेंगे।
अभी इन प्रशिक्षणार्थियों का प्रशिक्षण अपने अंतिम दौर में है। ऐसे में इन्हें यह चिंता सता रही है कि प्रदेश सरकार द्वारा उनके प्रशिक्षण पूरा होने से पहले भर्तियां निकाल दी जाती हैं तो वह आवेदन नहीं कर पायेंगे। और अगली भर्ती दो तीन साल से पहले नहीं होंगी। ऐसे में में प्रशिक्षित होने के बावजूद उन्हें भर्ती के लिए लंबा इंतजार करना होगा। बहरहाल सरकार उन्हें प्रशिक्षण तो दे रही है पर रोजगार की गारंटी कौन देगा?