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साढ़े सात करोड़ शराब की बोतलें पी जाते हैं उत्तराखंड के लोग

   

शराब बिक्री को बढ़ावा देती सरकारें *भारी राजस्व का लालच

*नहीं हुआ मद्य निषेध विभाग गठित

विनोद भगत, प्रधान संपादक 

  इन दिनों शराब को लेकर राज्य में राजनीति गरमा रही है। वैसे शराब के मामले में उत्तराखंड की हर सरकार चर्चा में रहती है। हो भी क्यों न सरकार के कुल राजस्व का 32 प्रतिशत शराब से ही मिलता है। राज्य के निवासी भी इस राजस्व की बढ़ोतरी में पूरी तरह सरकार के साथ हैं। राज्य की जनसंख्या लगभग एक करोड़ है और जनसंख्या के 7 गुने से अधिक बोतलें बिकती हैं उत्तराखंड में। एक आंकड़े के अनुसार उत्तराखंड के निवासी 7 करोड़ 59 लाख बोतलें खरीदते हैं। ऐसे में अगर सरकार शराब को बढ़ावा दे रही है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आज तक उत्तराखंड में जो भी सरकारें रहीं हैं उन्होंने राज्य में मद्य निषेध विभाग का गठन ही नहीं किया। हालांकि कई बार मद्य निषेध विभाग के गठन की बात भी उठायी गई। मौजूदा भाजपा सरकार के कार्यकाल में सासंद अजय भट्ट ने 2017 में नैनीताल में जरूर कहा था कि राज्य सरकार शराबबंदी को चरणबद्ध तरीके से से अमल में लाने जा रही है। पर वह केवल बयान तक ही सीमित होकर रह गया। मद्य निषेध विभाग गठन करने के लिए मुख्यमंत्री से अलग से बजट का प्रावधान करने के लिए कहा जायेगा। ऐसा अजय भट्ट ने अप्रैल 2017 में नैनीताल में भाजपा की एक बैठक के दौरान कहा था। 

शराब से मिलने वाले भारी-भरकम राजस्व को और बढ़ाने के लिए सरकार ने आकर्षक नीति के तहत 20 फीसदी राजस्व बढ़ाने वाली दुकानों का अनुबंध आगे बढाया है। हालांकि सरकार के लिए यह चिंता का विषय बना हुआ है कि 200 से ज्यादा शराब की दुकानें ऐसी हैं जिन्हें लेने के लिए व्यवसायियों ने कोई रुचि नहीं दिखाई। शराब बिक्री में लगी राज्य सरकार इस बात से उत्साहित थी कि जनवरी 2019 में ही उसे शराब से निर्धारित लक्ष्य के सापेक्ष 25 फीसदी से अधिक राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद जग गई। इसलिए राजस्व लक्ष्य 2650 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3180 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2018 में भी सरकार को शराब से आशा से अधिक की राजस्व की प्राप्ति हुई थी। तब भी 1644करोड़ के राजस्व लक्ष्य को 1844 करोड़ रुपया कर दिया गया था। 

यही नहीं मौजूदा शराब नीति में इस कारोबार को बढ़ावा देने के लिए कैशलेस सिस्टम भी शराब की दुकानों पर लागू कराया गया। कहा जा सकता है कि त्रिवेंद्र सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की भाँति उत्तराखंड में शराब कारोबार को पूरी तरह से बढ़ावा देने में लगी हुई है। हास्यास्पद बात तो यह है कि हर मौजूदा सरकार विपक्ष में रहने के दौरान शराब को लेकर सत्तारूढ़ सरकार को कठघरे में खड़ा करती रही है।

दरअसल शराब और खनन ही उत्तराखंड सरकार की राजस्व प्राप्ति के सबसे बड़े स्रोत हैं। और अपनी आय के स्रोत को बंद कौन करना चाहेगा। आंकड़ों के हिसाब से अगर देखा जाय तो ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज पर 56 रुपये खर्च करने वाले शराब पर 140 रूपये खर्च करते हैं। यही नहीं क्रोम डेटा ऐनालिटिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 17 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के 40 प्रतिशत युवा शराब का सेवन करते हैं। उत्तराखंड में जो सर्वे हुआ है उसके अनुसार 52 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं। ऐसे में अगर सरकार मद्य निषेध विभाग का गठन कर दे तो उसके राजस्व पर विपरीत असर पड़ेगा। 

हरीश रावत की डेनिस के मुकाबले त्रिवेंद्र रावत की सरकार में हिलटाप की चर्चा है। और उत्तराखंड के महान लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी शराब फैक्ट्री की वकालत कर बता दिया कि राज्य के लोगों के जीवन मरण से कोई लेना-देना नहीं है। पुरस्कार मिला है तो मुमकिन है कि राज्य निवासियों के जीवन से खिलवाड़ करने वाली नीति का भी समर्थन करना जरूरी है।

 

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