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खास खबर : नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी और चुनाव टल गये, होना पड़ा था मायूस

लोगों की तैयारियां पूरी, दलों ने झोंक दी थी पूरी ताकत और चुनाव टाले गये।

@शब्द दूत ब्यूरो (31 दिसंबर 2021)

कोरोना संक्रमण के बढ़ते हुए मामलों को देखकर अब यह मांग उठने लगी है कि 2022 में होने वाले चुनावों को टाला जाये। सवाल यह है कि क्या ऐसा हो सकता है? 

जी हाँ यह हो सकता है और संविधान के अनुच्छेद 324 के प्रावधान के अनुसार चुनाव आयोग अपने हिसाब से चुनावों को करवाने के लिए स्वतंत्र है।  लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52, 57 और 153 में भी चुनावों को रद्द करने या टालने की बात कही गई है। यहाँ बताते चलें कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52 में एक खास प्रावधान किया गया है। इसके तहत यदि चुनाव का नामांकन भरने के आखिरी दिन सुबह 11 बजे के बाद किसी भी समय किसी उम्मीदवार की मौत हो जाती है, तो उस सीट पर चुनाव टाला जा सकता है। लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें भी हैं। उसका का पर्चा सही भरा गया हो।उसने चुनाव से नाम वापस न लिया हो।मरने की खबर वोटिंग शुरू होने से पहले मिल गई हो।मरने वाला उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त दल से हो।मान्यता प्राप्त दल का मतलब है ऐसे दल, जिन्हें पिछले विधानसभा या लोकसभा चुनाव में कम से कम छह फीसदी वोट हासिल हुए हों। याद दिला दें कि2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में 200 में से 199 सीटों पर ही चुनाव हुए थे। दरअसल रामगढ़ सीट पर बीएसपी उम्मीदवार की मौत वोटिंग से पहले हो गई थी तो चुनाव बाद में कराए गए।

यदि चुनाव वाली जगह पर हिंसा, दंगा या प्राकृतिक आपदा हो, तो चुनाव टाला जा सकता है।लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 57 में इस बारे में ये प्रावधान है।

हालांकि यह फैसला मतदान केंद्र का पीठासीन अधिकारी ले सकता है।  लेकिन अगर हिंसा और प्राकृतिक आपदा अगर बड़े स्तर पर हो यानी पूरे राज्य में हो, तो फैसला चुनाव आयोग ले सकता है। अभी के हालात आपदा वाले ही हैं। कोरोना वायरस के चलते भीड़ इकट्ठी नहीं हो सकती। ऐसे में कई चुनाव आगे बढ़ाए जा चुके हैं।

 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों को लेकर एक आदेश भी दिया था। यह मामला किशन सिंह तोमर बनाम अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का था। इसमें कोर्ट ने कहा था कि प्राकृतिक आपदा या मानव निर्मित त्रासदी जैसे दंगा-फसाद में हालात सामान्य होने तक चुनाव टाले जा सकते है।

किसी मतदान केंद्र पर मत पेटियों या वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ किए जाने पर भी वोटिंग रोकी जा सकती है। हालांकि आजकल ज्यादातर चुनावों में ईवीएम ही काम में ले जाती है। अगर चुनाव आयोग को लगे कि चुनाव वाली जगह पर हालात ठीक नहीं है या पर्याप्त सुरक्षा नहीं है तो भी चुनाव आगे बढ़ाए जा सकते हैं या फिर चुनाव रद्द किया जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 में यह प्रावधान है। 

किसी जगह पर मतदाताओं को गलत तरीके से प्रभावित करने की शिकायत मिलने पर भी चुनाव रद्द या टाला जा सकता है। इसके अलावा किसी सीट पर पैसों के दुरुपयोग के मामले सामने आने पर भी चुनाव रोका जा सकता है। इस तरह की कार्यवाही चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत कर सकता है।

इसके अलावा बूथ कैप्चरिंग के हालात में भी चुनाव की नई तारीख का ऐलान किया जा सकता है। इसके लिए रिटर्निंग अधिकारी फैसला लेता है। वह ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर नई तारीख पर मतदान के लिए कह सकता है। यह आदेश भी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 के तहत दिया जाता है। 1991 में पटना लोकसभा का चुनाव इसी के चलते कैंसिल कर दिया गया था। तब जनता दल के टिकट पर इंद्र कुमार गुजराल को लालू यादव चुनाव लड़ा रहे थे।

इस तरह के मामले में 1995 का बिहार विधानसभा भी एक उदाहरण है। राज्य उस समय बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम था। ऐसे में उस समय के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अर्ध सैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव कराने का आदेश दिया। साथ ही चार बार चुनाव की तारीखें भी आगे बढ़ाई।ऐसे कई मामले हैं जब चुनाव टाले या रद्द किये गये हैं। 

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