-वेद भदोला
गैरसैंण राजधानी मामले में हरीश रावत को ये भी बताना पड़ेगा कि ये उनका व्यक्तिगत मामला है या पार्टी लाइन है। वरना, तो सभी उनकी मंशा पर शक ही जाहिर कर रहे हैं।
हालांकि, गैरसैंण में विधानभवन के लिए टेंडर उनकी सरकार के समय ही हुऐ थे। लेकिन, भाजपा-कांग्रेस की चौपट नीतियों के चलते जनता अब इनपर विश्वास कम ही करती है।
लेकिन, इन सब के विपरीत मेरा व्यक्तिगत मानना है कि ये निरी ड्रामेबाज़ी है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही उत्तराखंड विरोधी पार्टियां हैं। इसमें भी कोई शक नहीं कि दोनों ही पार्टियां अपने हितों को सर्वोपरि रखती हैं।
मेरा ये भी मानना है कि बारी-बारी पैटर्न के तहत कांग्रेस को लगता है कि 2022 हमारा है। लिहाजा, जनता के असंतोष को हवा देनी चाहिए। इसी अभियान के तहत हरीश रावत गैरसैंण की बात भी कर रहे हैं।
ये दीगर बात है कि कांग्रेस और भाजपा नीत सरकारें जनता का आक्रोश शांत करने के लिए समय-समय पर गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित करने का ड्रामा करती रही हैं। लेकिन, इससे हासिल क्या हुआ! बहरहाल, रावत की इस चाल ने भाजपा को बैकफुट पर तो ला खड़ा किया है।