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हास्य-व्यंग्य : वीक एंड फिलासफी, ध्वनिमत से जनमत तक

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं। कृषि कानूनों की वापसी पर उनका चुटकी से भरपूर हास्य व्यंग्य 

अपना लोकतंत्र ध्वनिमत से चलता है लेकिन सरकार जनमत से बनती और बिगड़ती है .एकबार सरकार चल जाये फिर जनमत की कोई नहीं सुनता ,सारा काम ध्वनिमत से चलता है. ध्वनिमत हंगामे में होने वाले ड्रामे को कहते हैं. ध्वनिमत में कुछ सुनाई नहीं देता.सब कुछ हंगामे में डूब जाता है .ध्वनिमत न हो तो सरकार का चलना मुश्किल हो जाये .भगवान ने इसीलिए जब लोकतंत्र की रचना की उसी समय ध्वनिमत की भी रचना कर दी .
मुझे बचपन से ध्वनियाँ पसंद हैं ,इसलिए मै ध्वनिमत का भी प्रशसंक हूँ .जो लोग ध्वनिमत की प्रशंसा नहीं करते उन्हें रौरव नर्क में भी जगह नहीं मिलती .ध्वनिमत का विरोध लोकतंत्र का विरोध है .संसद और विधानसभाओं में जो काम बहुमत से नहीं हो पाते वे सारे काम ध्वनिमत से होते आये हैं ,आखिर ध्वनि भी तो मत है ,इसे केवल सभापति या पीठासीन अधिकारी समझ पाता है .ध्वनिमत नासमझ लोगों के समझ में आजतक नहीं आया .

हमारी सरकारें अक्सर इसका इस्तेमाल करतीं हैं .न करें तो फैसले ही न हो पाएं .ध्वनिमत के फैसलों में एक ही कमी है कि ये संसद में तो पारित मान लिए जाते हैं किन्तु सड़कों पर इनकी बड़ी फजीहत होती है .कभी-कभी तो ध्वनिमत के फैसलों के खिलाफ चौदह महीने लम्बे आंदोलन तक हो जाते हैं.जैसे कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन .ध्वनिमत का विरोध जब खतरनाक हो जाता है तब सरकार को हारकर भारी मन से जनमत की बात सुनना पड़ती है. इस प्रक्रिया को ध्वनिमत से लिए गए फैसलों को वापस लेना कहते हैं .

हाल ही में हमारे सम्माननीय प्रधानमंत्री ने ध्वनिमत से लिए गए फैसलों को जनमत का आदर करते हुए वापस लेने का ऐलान किया है .प्रधानमंत्री जी की इस दरियादिली के लिए खूब सराहना की जा रही है .की जाना चाहिए .आखिर उन्होंने जनमत का मान रखा है भले ही इसके बदले में 700 से ज्यादा किसानों की बलि ले ली .सत्ता की देवी बिला बलि पूजा के खुश भी कहाँ होती है ?किसानों की बलि व्यर्थ नहीं गयी. ध्वनिमत से बने कानून आखिर वापस ले लिए गए .इस मामले में प्रोफेसर पुरषोत्तम अग्रवाल भले ही ‘ मजबूती का नाम महात्मा गांधी ‘ कहते हों लेकिन मै इसे -‘ मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ‘ ही कहूंगा .

अक्ल का दरवाजा कभी-कभी देर से खुलता है,यही सब इस मामले में हुआ. ध्वनिमत से लिए गए फैसले को वापस लेने में अक्ल की जरूरत पड़ती है,दुर्भाग्य से अक्ल 14 माह के अवकाश पर थी और जैसे ही अक्ल अवकाश से वापस लौटी विवादास्पद क़ानून वापस ले लिए गए .ये फैसला जिस दिन वापस लिया गया वो दिन बड़ा पवित्र दिन था. गुरु नानक देव और ,रानी लक्ष्मी बाई और प्रियदर्शनी इंदिरागांधी का जन्मदिन .मेरे ख्याल से प्रधानमंत्री जी का फैसला इन तीनों के प्रति श्रृद्धांजलि रहा होगा .

ध्वनिमत के फैसले की वापसी को आप गार या जीत से मत जोड़िये .ये न किसी की हार है और न किसी की जीत है.ये तो बस एक-दूसरे के प्रति प्रीत है .
हमारी सरकार का विश्वास भले ही ध्वनिमत में है किन्तु सरकार किसानों की हितैषी है .हितैषी न होती तो भला कृषि कानूनों को वापस लेने को राजी होती ? हमारी सरकार एक मजबूत सरकार है.किसी के दबाव में काम नहीं करती .किसानों के दबाव में भी नहीं .हमारे प्रधानमंत्री जी अपने मन की सुनते हैं.मन की करते हैं. आपने उनके मन की बात जरूर सुनी होगी .वे अगर प्रधानमंत्री न होते तो जरूर किसान होते.उनका किसानों से बहुत पुराना रिश्ता है .वे जब बच्चे थे ,तब किसानी ही करते थे.चाय का कारोबार तो उन्होंने बहुत बाद में किया .वे किसानों कि तकलीफ को भलीभांति समझते हैं. इसीलिए उन्होंने किसानों के हित में कानून बनवाये थे लेकिन किसान नहीं माने तो कानून वापस ले लिए .

प्रधानमंत्री जी की दरियादिली का कायल होना चाहिए.इतना दरियादिल प्रधानमंत्री हमने आजतक नहीं देखा.वैसे हम आजकल आजतक क्या कोई चैनल नहीं देखते क्योंकि उन सब पर कुछ दिखाई ही नहीं देता .बहरहाल बात ध्वनिमत और जनमत की हो रही है .हमारे यहां जनमत एक जिंस से ज्यादा महत्व नहीं रखता.आपको चुनाव में जनमत न मिले तो आप जनमत खरीद लीजिये.जनमत की खरीद -फरोख्त पर कोई रोक थोड़े ही लगी है. राज्यों में तो बहुत सी सरकारें खरीदे गए जनमत से बनीं हैं ,लेकिन जहँ नहीं बन पायीं वहां से प्रधानमंत्री ने सबक लिया है .प्रधानमंत्री जी हालाँकि सबक सिखाते हैं लेकिन बंगाल जाएँ या दिल्ली में रहें सबक सीख भी लेते हैं. 
हाल के दिनों में प्रधानमंत्री जी ने बहुत कुछ सीखा ,और इसी की बिनाह पर उन्होंने ध्वनिमत से लिए गए फैसले को जनमत का सम्मान करते हुए बदल दिया .अब किसानों को भी बदल जाना चाहिए.गुस्सा थूक देना चाहिए.गुस्सा थूकने में जो मजा है वो मजा गुस्सा पीने में नहीं है. वैसे गुस्सा पीना भी कभी-कभी सेहत के लिए ठीक होता है .गुस्सा पीकर मुस्कराना एक ख़ास अभिनय कला है.ये कला प्रतिभाशाली लोगों के पास ही होती है.हमारे प्रधानमंत्री जी इस कला में दक्ष हैं .वे हर कला में दक्ष हैं.उनकी दक्षता संदेहों से परे है .
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है .प्रधानमंत्री जी भी ध्वनिमत से फैसला लेकर पछता रहे हैं ,क्यंकि उन्हें ये फैसले वापस लेना पड़ रहे हैं .मुमकिन है कि अब वे भविष्य में ऐसी व्यवस्था कर लें कि उन्हें कोई फैसला ध्वनिमत से लेना ही न पड़े .सब काम बहुमत से हो. ऐसा मुमकिन है.ऐसा करने के लिए विपक्ष नाम की संस्था को समाप्त करना पडेगा,जैसे अखबारों में सम्पादक नाम की संस्था को खत्म कर दिया गया .जैसे बिना सम्पादक के अखबार चल रहे हैं वैसे ही बिना विपक्ष के संसद भी चल सकती है.

लोकतंत्र के लिए प्रधानमंत्री जी ने इतना बड़ा त्याग किया है,इस त्याग का सम्मान होना चाहिये .उनकी पार्टी को आने वाले दिनों में जितने भी राज्य विधानसभाओं के चुनाव हों भारी बहुमत से जिताना चाहिए ,यदि ऐसा नहीं हुआ तो लोग लोकतंत्र पर भरोसा करना छोड़ देंगे .लोकतंत्र एक सौदा है .इसमें लेनदेन चलता ही है. प्रधानमंत्री जी ने किसानों की बात मानी है .अब किसानों को प्रधानमंत्री जी की बात मानना चाहिए .किसी के झांसे में नहीं आना चाहिए .झांसे में आकर झांसी वाली रानी को नुक्सान उठाना पड़ा था .किसानों को भी उठाना पड़ सकता है .आखिर फैसला पलटने में देर कितनी लगती है ?
@ राकेश अचल

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