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एक ही दल की सरकार होने के बावजूद यूपी-उत्तराखंड में अभी तक नहीं हुआ परिसंपत्तियों का बंटवारा

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी की ही सरकार है। इधर केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है। लेकिन दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे के परिणाम उस रूप में सामने नहीं आ सके जैसी उम्मीद थी।

@शब्द दूत ब्यूरो (18 नवंबर, 2021)

राज्य गठन के 21 साल बाद भी उत्तराखंड परिसंपत्तियों के बंटवारे की कवायद जारी है। इसको लेकर अनगिनत बैठकें बेनतीजा रहीं। कभी यूपी में बसपा तो कभी सपा सत्तारूढ़ रही और उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी। इसके चलते भी बंटवारे की बातचीत की गति बेहद धीमी रही। राजनीति में ऐसा संयोग कम ही देखने को मिलता है जब दो राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर विवाद हो और केंद्र समेत दोनों राज्यों में एक ही राजनीतिक दल की सरकार हो।

फिलहाल यह बंटवारे के लिए सुखद संयोग तो है लेकिन परिणाम तब भी नहीं निकला। यूपी और उत्तराखंड के बीच पिछले 21 साल से परिसंपत्तियों को लेकर विवाद है। पिछले पांच साल से केंद्र, यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार है लेकिन अभी भी बंटवारा नहीं हो पाया। लखनऊ और देहरादून में पिछले दो दशक में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच दर्जनों बैठक हो चुकी हैं लेकिन एक ही राजनीतिक दल की सरकारे होने से जो परिणाम आना चाहिए था वो नहीं आया। चुनाव से पहले इस बैठक पर विरोधी दलों की भी नज़र है, कहीं यह बैठक चुनावी मुद्दा मात्र तो नहीं रहेगी?

गौरतलब है कि बंटवारे को लेकर पिछली बैठक अगस्त 2019 को लखनऊ में हुई थी। उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच कई मामलों पर सहमति बन गई थी लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई।

हालांकि उस बैठक के बाद उत्तराखंड से भी बहुत कायदे की पैरवी नहीं हो पाई और यूपी के मुख्यमंत्री के पास बहुत काम होता है, इसलिए सब जहां का तहां रुक गया। अब फिर उत्तराखंड सरकार को अपनी परिसंपत्तियों की याद आई, जिनके लिए लखनऊ में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक होने जा रही है।

यह बैठक भी पहली बैठकों की तरह संख्या मात्र बढ़ाने वाली होगी या इस मंथन से कुछ निकलेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन ऐसा समय के ये समीकरण कम ही देखने को मिलते है जब दोनों राज्य और केंद्र में बीजेपी की ही सरकार है और परिणाम उस रूप में सामने नहीं आ सके जैसी उम्मीद थी।

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