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उत्तराखंड। सरकारों की अक्षम नीतियों से शिक्षा व्यवस्था बदहाल

 विनोद भगत 

उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। अगर यूं कहें कि यह भगवान भरोसे है तो गलत नहीं होगा। यहां यह भी स्पष्ट करना है कि राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के लिए किसी एक ही सरकार को दोषी ठहराना भी गलत होगा। राज्य गठन के बाद जितनी भी सरकारें आयी शिक्षा को लेकर मात्र दावे कागजों और भाषणों तक ही सीमित रही। धरातल पर वास्तविकता बड़ी दयनीय है। शायद इसीलिए इस राज्य में जिसने भी शिक्षा मंत्रालय संभाला वह अगला चुनाव नहीं जीत पाया। राज्य की शिक्षा व्यवस्था की हकीकत जानने के लिए आंकड़े देखे जायें तो एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आयेगी। शिक्षा पर होने वाले खर्च के आंकड़े बताते हैं कि हर साल बजट में बढ़ोतरी तो हुई है। पर शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती चली गई। 2001 में राज्य में शिक्षा के लिए पौने 7 अरब का बजट था जो मौजूदा समय में 61 अरब रुपये हो गया है। आखिर ये रुपये खर्च कहां हो रहे हैं। तमाम स्कूल जर्जर हालत में हैं। अनेक स्कूल ऐसे हैं जहां विज्ञान प्रयोगशाला नहीं हैं। तमाम विद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। पर हर शिक्षा मंत्री का दावा यही रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ गई है। अब कौन सी सुविधायें बढ़ी हैं यह तो शिक्षा मंत्री ही जानें या सरकार।

हैरान करने वाली बात तो यह है कि बजट बढ़ रहा है लेकिन प्राथमिक शिक्षा में बच्चों की संख्या में 50 फीसद तक कमी आई है।यही हाल  उच्च-प्राथमिक स्तर पर भी  है। वहां भी बच्चों की संख्या 67 हजार तक कम हो चुकी है। 

रही सही कसर सरकारों की तबादला नीति से पूरी हो रही है। सुगम दुर्गम के नाम पर तमाम शिक्षकों का तबादला दुर्गम में कर दिया जा रहा है। और सुगम वाले विद्यालयों में शिक्षक नहीं भेजे जा रहे हैं। कई शिक्षक जो वर्षों से दुर्गम में तैनात हैं वह वहां के अभ्यस्त हो चुके हैं। वह भी नये स्थान पर नहीं जाना चाहते। ऐसे में सुगम से तो शिक्षकों  का तबादला कर दिया गया है। और उनके स्थान पर प्रतिस्थानी नहीं आ पाया है जिससे छात्र छात्राओं की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। सरकारें शिक्षा नीति का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं कर पा रही है। सरकार के शिक्षा नीति में अक्षम होने का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। 

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षा के लिए राज्य के बजट में 2010-11 में 22 प्रतिशत राशि रखी गई थी। जो 18-19 में 19 प्रतिशत हो गया था। राज्य के 15 से 29 साल के 10 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। आज भी दो प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मील पकाने के लिए रसोई नहीं है। 13 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी, दो प्रतिशत स्कूलों में शौचालय, 18 प्रतिशत स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालय नहीं है। इसी तरह 14 प्रतिशत स्कूलों में बिजली नहीं है और महज दस प्रतिशत स्कूलों में ही कंप्यूटर की सुविधा है।

राहत की बात यह है कि उत्तराखंड के सासंद डा रमेश पोखरियाल निशंक केन्द्र में मानव संसाधन मंत्री हो गये हैं। उनके मंत्री होने पर राज्यवासियों को कुछ उम्मीद जगी है।

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