@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (17 अक्टूबर, 2021)
ब्रिटिश शासन से पूर्व हमारा देश ‘सोने की चिड़िया’ हुआ करता था। जिसकी वजह थी यहां के अमीर राजा व रजवाड़े, जिनके खजाने भरे रहते थे। जनता में भी गरीबी नहीं थी। ब्रिटिशकाल के और उससे पूर्व के ऐसे बहुत से राजा हुए, जिनके बारे में आज ज्यादातर भारतीय नहीं जानते हैं।
आज हम ऐसे ही एक घराने की बात कर रहे हैं, जिसका उदय सन 1700 में हुआ। यह ब्रिटिश काल के भारत का सबसे धनवान घराना था। इस घराने के सदस्य इतने अमीर व्यक्ति थे, जिनसे अंग्रेज भी पैसों की मदद लेने आते थे। अब तक आपने यही सुना होगा कि अंग्रेजों ने भारत पर केवल हुकूमत चलाई है और उन्होंने किसी के आगे कभी सर नहीं झुकाया, लेकिन आपको बता दें कि ये सही नहीं है।
वर्तमान समय में भले ही बंगाल में स्थित मुर्शिदाबाद शहर गुमनामी में जी रहा है, परन्तु ब्रिटिश काल में ये शहर एक ऐसा मुख्य व्यापारिक केंद्र था, जिसके चर्चे दूर-दूर तक थे और हर शख्स इस जगह से और जगत सेठ से भली भांति परिचित था। ‘जगत सेठ’ असल में एक टाइटल है। यह टाइटल सन 1723 में फ़तेह चंद को मुग़ल बादशाह, मुहम्मद शाह ने दिया था। उसके बाद से ही यह पूरा घराना ‘जगत सेठ’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। सेठ मानिक चंद इस घराने के संस्थापक थे। यह घराना उस वक़्त का सबसे धनवान बैंकर घराना माना जाता था।
सेठ माणिकचंद 17वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले के एक मारवाड़ी जैन परिवार में हीरानंद साहू के घर जन्मे। माणिकचंद के पिताजी हीरानंद बेहतर व्यवसाय की खोज में बिहार रवाना हो गए। फिर पटना में उन्होंने शोरा का बिजनेस प्रारंभ किया, जिससे उनकी अच्छी कमाई हुई। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत रुपए उधार दिए थे, साथ ही इस कम्पनी के साथ उनके बिजनेस रिलेशन भी बन गए थे।
अपने पिता के कारोबार को माणिकचंद ने खूब फैलाया। उन्होंने नए-नए क्षेत्रों में अपने व्यवसाय की नींव रखी, साथ ही ब्याज पर पैसे देने का बिज़नेस भी शुरू किया था। शीघ्र ही बंगाल के दीवान, मुर्शिद कुली खान के साथ उनकी मित्रता हो गयी थी। बाद में उन्होंने पूरे बंगाल के पैसे और टैक्स को संभालना भी शुरू कर दिया था। फिर उनका परिवार बंगाल के मुर्शिदाबाद में ही रहने लगा।
सेठ माणिकचंद के बाद फ़तेह चंद ने उनका कामकाज सम्भाला। फतेहचंद के समय में भी ये परिवार ऊंचाइयों पर पहुँच गया। इस घराने की ब्रांच ढाका, पटना, दिल्ली, बंगाल तथा उत्तरी भारत के बड़े शहरों में फैल गयी। जिसका मेन ऑफिस मुर्शिदाबाद में स्थित था। ये कम्पनी ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लोन, लोन अदा करना, सर्राफ़ा की ख़रीद व बिक्री करना, इत्यादि का लेनदेन करती थी। रॉबर्ट ओर्म ने उनके बारे में लिखा कि उनका यह हिंदू घराना मुग़ल साम्राज्य में सबसे ज्यादा धनवान था। बंगाल सरकार पर इनके मुखिया का काफी प्रभाव भी था।