देवभूमि को दूषित करने में कांग्रेस भी बराबर की भागीदार
विनोद भगत
गुप्ता बंधुओं का शादी समारोह तो निपट गया लेकिन इस समारोह को लेकर उठे कई प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही रह गये हैं। सबसे बड़ा सवाल राज्य के राजनैतिक दलों का राज्य के पर्यावरण प्रेम के ढोंग का है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर औली में शादी के बाद जो बजबजाती गंदगी नजर आ रही है, उस पर बेशर्म राजनेताओं का अपनी पीठ ठोकना इस देवभूमि के साथ उनके किये गये पाप का जीता जागता उदाहरण है।
इस प्रकरण से एक बात तो साफ होती है कि राजनीतिक दलों के नेताओं को सत्ता प्यारी है। बिडम्बना की बात तो यह है कि राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस पाप में बराबर की हिस्सेदारी निभाई है। विपक्ष पूरी तरह सरकार की इस कुयोजना में शामिल रहा। लेकिन इससे भी अधिक शर्म की बात यह है कि जो उत्तराखंड के पर्यावरण के प्रति चिंतित लोग थे वह सब इस मामले में उत्तराखंड विरोधी साबित कर दिये गये। गंगा का उल्टा बहना इसे ही कहते हैं। गुप्ता बंधुओं के शादी समारोह को लेकर नतमस्तक होना इस राज्य के लिए घातक संकेत है। यहां याद दिला दें कि आज कांग्रेस पंचायत के संबंध में लाये गये कानून को लेकर पुतला दहन कर रही है पूरे प्रदेश में। इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस सिर्फ सत्ता की लड़ाई लड़ रही है। राज्य के लोगों और राज्य के पर्यावरण को लेकर तनिक भी चिंतित नहीं है।
आगामी 8 जुलाई को औली मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है। राज्य सरकार क्या वादे के मुताबिक औली को कचरा मुक्त रख पाई? यह ज्वलंत प्रश्न है। राज्य की सरकारी एजेंसियों के सामने भी यह प्रश्न है कि क्या माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष निष्पक्षता से सरकार यह बता पायेगी कि औली कचरा मुक्त है? वैसे अनेक ऐसे फोटोज हैं जो सरकार के इस दावे को झुठलाने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे में माननीय उच्च न्यायालय का रुख कैसा रहता है यह तो 8 जुलाई को ही स्पष्ट हो पायेगा। 200 करोड़ की शादी के बाद कचरा हटाने के लिए सैकड़ों मजदूर लगाये गये। जिन्होंने शौचालय न होने के कारण खुले में शौच की। इस पर ईवेंट कंपनी को ढाई लाख कामथ का जुर्माना लगाया गया। इसको सीधा मतलब यह है कि राज्य सरकार अपने अपने वादे पर झूठी साबित हुई। राज्य सरकार औली बंधुओं के शादी समारोह को लेकर गारंटी दे रही थी कि कचरा नहीं होगा गंदगी नहीं होगी। लेकिन गंदगी भी हुई कचरा भी हुआ और जुर्माना भी लगाया गया।
ऐसे में राज्य के युवा अधिवक्ता रक्षित जोशी ने उत्तराखंड के पर्यावरण की चिंता करते हुए जो याचिका दायर की है। वह अपने इस मकसद में कितने कामयाब पायेंगे ये आने वाला वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो साफ है कि रक्षित के इस कदम को कम से कम राजनीतिक दलों का साथ नहीं मिल रहा है इससे राज्य के राजनेताओं की कलई भी खुल रही है। राजनेता पर्यावरण को सुरक्षित रखने की सोच से ज्यादा उन लोगों के सगे हैं जो देवभूमि की दुर्दशा के जिम्मेदार हैं और फिर अकूत धन संपदा भारी पड़ गई अमूल्य प्राकृतिक संपदा पर।