@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (7 अगस्त, 2021)
फलक को ज़िद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। ये पंक्तियां ओडिशा के आदिवासी किसान हरिहर बेहरा के ऊपर सटीक बैठती है। 30 साल की कड़ी मेहनत से हरिहर बेहरा ने पहाड़ चीर कर तीन किलोमीटर लंबी सड़क बना दी।
एक समय ऐसा भी था जब पूरी दुनिया कहती थी कि वहां सड़क कभी नहीं बन सकती है, यहां तक राज्य के मंत्री ने भी कहा था कि यहां सड़क नहीं बन सकती है, मगर हरिहर बेहरा की ज़िद ने इतिहास रच दिया। अपनी मेहनत से इन्होंने अपने गांववालों को एक नायाब तोहफ़ा दिया है।
हरिहर बेहरा ओडिशा के भुवनेश्वर से 85 किमी दूर नयागढ़ जिले के रहने वाले हैं. इनके गांव का नाम तुलुबी है। इनका गांव बहुत ही पिछड़ा हुआ है। यहां आसपास में कोई सड़क नहीं है। इस कारण यहां के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लोग आने-जाने के लिए जंगल का रास्ता अपनाते हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। ऐसे में हरिहर बेहरा ने सड़क बनाने का फैसला लिया।
जंगल से शहर या बाज़ार जाना बहुत मुश्किल भरा था। पहाड़ी और जंगली इलाके के कारण जंगली जानवर और जहरीले सांपों का आतंक है। कई बार लोगों को परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में हरिहर ने सड़क निर्माण के लिए पहले जिला प्रशासन से संपर्क किया, मगर अधिकारियों से असंभव कह कर हाथ खड़े कर दिए। ओडिशा के मंत्री ने भी मना कर दिया।
जब सभी ने मना कर दिया तो हरिहर का साथ उनके भाई ने दिया। दोनों भाई ने मिलकर तीन किलोमीटर सड़क बना दी। दोनों ने साथ मिलकर बड़े-बड़े चट्टानों को साथ में काटा, मिट्टी हटाई और इस मुहिम में 30 साल लगा दिए। आज हरिहर के घर तक फोर व्हीलर गाड़ी तक पहुंच जा रही है। ग्रामीण बाजार और हाट तक कम समय में पहुंच जा रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों को पहाड़ियों का चक्कर नहीं काटना पड़ रहा है। हरिहर ने वो कर दिखा दिया जो मंत्री और प्रशासन नहीं कर पाए।