शब्द दूत ब्यूरो
उन्हें मंदिर जाने से रोका गया पर वह राम के प्रति अगाध आस्था रखते थे। ऐसे में उन्होंने एक अजब तरीका अपनाया अपने ईश्वर अपने आराध्य श्रीराम के प्रति अपनी भक्ति और आस्था प्रदर्शित करने के लिए। ये तरीका कष्टकारी जरुर था पर ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा हो तो कष्ट की क्या बिसात।
छत्तीसगढ़ के जगमाहन ग्राम के रामनामी समाज में पिछली एक सदी से चली आ रही एक प्रथा के अनुसार ये लोग पूरे शरीर पर रामनाम गुदवाते हैं। रामनाम गुदवाने के पीछे एक किस्सा मशहूर है। आज से 100 वर्ष पूर्व हिंदू धर्म के कुछ लोगों ने इस समाज के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस समाज के लोग मूलतः हिंदू ही थे। मंदिर में प्रवेश प्रतिबंधित करने को इन लोगों ने स्वयं का अपमान समझा।
इसके बावजूद यह लोग राम के प्रति सच्ची आस्था रखते हैं। पर इन्होंने न कोई आंदोलन किया और न कोई विवाद खड़ा किया। ईश्वर के प्रति आस्था का प्रदर्शन करने के लिए इन लोगों ने अपने पूरे शरीर पर रामनाम लिखवाना शुरू कर दिया। वह भी गोदना करवाके। पूरे शरीर पर रामनाम गुदवाना एक कष्टदायी प्रक्रिया है। पर भगवान की भक्ति के साथ साथ यह सामाजिक बगावत भी थी। उन लोगों के प्रति जो धर्म के मठाधीश बन भगवान पर अपना अधिकार जताये हुये थे।
अब तो यह प्रथा इतनी अधिक हो गई है कि 2 साल का होते ही बच्चों के शरीर पर रामनाम का गोदना करवा दिया जाता है। यहाँ तक कि कपड़े भी रामनाम लिखे पहने जाने लगे हैं। गांव के हर घर में रामनाम लिखवाना अनिवार्य है। और हैरत की बात यह है कि जिन मठाधीशों ने इस समाज के लोगों को ईश्वर के मंदिर में जाने से प्रतिबंधित किया है। उन लोगों के घरों पर रामनाम लिखा नहीं देखा जाता है। एक तरह से यह आडम्बर करने वाले लोगों और सच्ची निष्ठावान ईश्वर के बीच का फर्क बताता है।
रामनाम लिखवाने में भी उपाधियाँ दी जाती हैं। शरीर के किसी भी हिस्से में राम-राम लिखवाने वाले रामनामी ! माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को शिरोमणि ! और पूरे माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी और पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाने वाले को नखशिख रामनामी कहा जाता है !
हालांकि बदलते समय के साथ अब नई पीढ़ी में इस प्रथा में कुछ बदलाव आया है। रोजगार के सिलसिले में दूर दराज जाने की वजह से नई पीढ़ी में यह चलन कम हुआ है पर सामाजिक बगावत के तौर पर शरीर में कुछ जगह पर रामनाम अवश्य गुदवाया जाता है।