@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो
उत्तर प्रदेश में कोरोना काल में शासन-प्रशासन हर शव के अंतिम संस्कार के लिए पूरे प्रोटोकॉल को अपनाने की सलाह दे रहा है, साथ ही शवों को पूरे सम्मान के साथ अंत्येष्टि करने के फरमान भी जारी कर रहा है। लेकिन गाहे-बगाहे कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों की असंवेदनशीलता सामने आ ही जाती है। ताजा वाकया यूपी के बुंदेलखंड इलाके के महोबा जिले का है, जहां एक किसान की मौत के बाद उसके शव को कूड़ा गाड़ी में ले जाया गया।
किसान रामकरण को ज़ुकाम,बुखार और खांसी की शिकायत थी। तबियत बिगड़ने पर उनका बेटा उन्हें इलाज के लिए ज़िला अस्पताल ले कर आया। अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें देख कर बताया कि उनकी मौत हो चुकी है। ऐसे में कोरोनाकाल में संदिग्ध हालात में मौत का मामला था, लिहाजा अस्पताल ने पूरी ऐहतियात बरती।
इसकी इत्तेला पुलिस को दी गई. पुलिस ने पंचनामा भरा, लेकिन तकलीफदेह बात यह हुई कि वे उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए एक कूड़ागाडी में रख कर ले गए। साफ देखा जा सकता है कि दो पुलिस वाले पॉलिथीन शीट में लिपटे उसके शव को उछाल कर कूड़ा गाड़ी में फेंकने वाले हैं। लेकिन तभी वहां मौजूद दूसरे पुलिस वाले को शायद लगा कि इस तरह शव उछाल कर फेंकने से उसकी हड्डी-पसली टूट जाएगी. लिहाज़ा उसने उन्हें शव को उछाल कर कूड़ागाडी में फेंकने से रोका।

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