Breaking News

मैं बच्चों को भीख कभी नहीं दूंगी

बेसहारा बच्चों का भविष्य संवार रही संगीता

प्रेरणादायक :  सच्ची कहानी उत्तराखंड की एक नारी की 

विनोद भगत 

सड़क पर भीख मांगते बच्चों को देखकर अक्सर  आपके मुख से यही निकलता है कि  काश इन्हें भी स्कूल में पढ़ने का अवसर मिल पाता या फिर उनके हाथ में एक दो रूपये देकर आप आगे बढ़ जाते हैं। थोड़ी देर बाद आप भूल जाते हैं कि अपने कुछ देखकर सहानुभूति दर्शायी थी और फिर अपने ही संसार में लौट आते हैं। इस तरह से आप सोच रहे होते हैं कि आपने अपने सामाजिक दायित्त्व का भली भांति निर्वहन कर लिया है।  लेकिन आज हम आपको एक ऐसे व्यक्तित्त्व से मिलाने जा रहें हैं जिसकी सोच सहानुभूति से भी आगे बढ़कर है। ममता की प्रतिमूर्ति कही जाने वाली नारी के स्वभाव को चित्रित करती यह महिला उत्तराखंड के श्रीनगर की संगीता कोठियाल फरासी हैं।

कार्यशाला में बच्चों द्वारा तैयार सामान

पेशे से शिक्षक संगीता जब भी सड़क पर छोटे छोटे बच्चों को भीख मांगते देखती थी तो उनका नारी ह्रदय पीड़ा से भर उठता था और उन्होंने सोच लिया था की कम से वह उन बच्चों को कभी भीख नहीं देंगी। क्योंकि भीख देकर वह वास्तव में उन बच्चों के साथ बहुत बड़ा अन्याय और पाप करेंगी उन्होंने निर्णय ले लिया कि वह इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कुछ करें तो उनके मन को शान्ति मिल सकती है। 
संगीता ने जो सोचा था वह इतना आसान न था इसका अहसास उन्हें तब हुआ वह ऐसे बच्चों के माता पिता से जाकर मिली और उनसे बच्चों को स्कूल पढ़ाने की बात की। उनके माता पिता ने संगीता की इस बात को सिरे से नकार दिया।संगीता ने सोच तो लिया था पर अब उन्हें अहसास होने लगा की यह बड़ा दुष्कर कार्य है। शिक्षिका संगीता ने उनसे विस्तार से बात की तब पता चला की आर्थिक अभाव के चलते वह अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ा पाने में असमर्थ थे। .तब संगीता ने उन्हें मुफ्त स्कूल यूनिफार्म से लेकर कॉपी किताबें खाद्य सामग्री आदि उपलब्ध कराने का वादा किया तो वह मान गए।  यही से संगीता का एक मिशन शुरू हो गया।  पहले उन्होंने दस बच्चों को भीख मांगना छुड़ाकर उन्हें स्कूल में दाखिल कराया उन बच्चों को ट्यूशन लगवाया इस सबका खर्च वह स्वयं वहन करती हैं।
सरकारी शिक्षक की नौकरी होने के बावजूद संगीता अपनी निर्धारित ड्यूटी के बाद प्रतिदिन दो घंटे ऐसे बच्चों को अपना समय देती हैं। संगीता ने ऐसे बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से उन्हें रोजगारपरक प्रशिक्षण भी मुहैया कराया है। इसके लिए वह बाकायदा एक प्रशिक्षक को स्वयं वेतन देकर इन बच्चों को हुनरमंद बनाने के लिए प्रशिक्षण दिलवा रही हैं। धीरे धीरे इनके इस कार्य में दो और शिक्षक भी जुड़ गए हैं। इधर संगीता ने इन बच्चों के लिए गर्मियों की छुट्टियों में एक कार्यशाला आयोजित की है जिसमें इन बच्चों को क्राफ्ट ,पेंटिंग व ड्राइंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा  है। छह जून तक चलने वाली यह कार्यशाला बच्चों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही है।  इस कार्यशाला दो अन्य शिक्षक आयुष नेगी और सम्पूर्णान्द जुयाल भी सहयोग दे रहे हैं। पूरे श्रीनगर में संगीता के इस कार्य की प्रशंसा हो रही है।  उन्हें कई संस्थाओं द्वारा इसके लिए  सम्मानित  किया जा चुका है लेकिन संगीता का मानना है उन्हें इन बच्चों को आगे बढ़ते देखकर जो आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है उससे बढ़कर सम्मान उनके लिए कुछ नहीं है। 

Website Design By Mytesta +91 8809666000

Check Also

बजट पर चर्चा :विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गाली दी, केन्द्रीय मंत्री का बड़ा आरोप

🔊 Listen to this @शब्द दूत ब्यूरो (25 जुलाई 2024) संसद के दोनों सदनों में …

googlesyndication.com/ I).push({ google_ad_client: "pub-