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मन की नहीं, जन की बात उपेक्षित काशीपुर में चापलूसी में पीएचडी (PHD IN FLATTERY), एक विचारोत्तेजक लेख नगरवासियों से पूछ रहा कुछ ज्वलंत सवाल

जो लेख आप पढ़ेंगे वह जनता के बीच के ही एक व्यक्ति के मन में उमड़ी पीड़ा है। मन की बात तो आप सुनते ही हैं ये लेख जन की बात है। नगर के युवा बुद्धिजीवी के मन में उठ रहे कुछ प्रश्न हैं। अरूण अरोरा ने अपने मन की पीड़ा को व्यक्त किया है। हालांकि सोशल मीडिया पर उनकी यह पीड़ा वायरल हो रही है। 

अरूण अरोरा

पता नहीं काशीपुर के कुछ राजनीतिक दल के पदाधिकारी/जनप्रतिनिधि या कुछ कथित समाजसेवी चापलूसी में पीएचडी करना चाहते हैं या फिर गुलामी में मास्टर डिग्री? 

क्यों कुछ स्वयंभू बुद्धिजीवी एवं कथित आत्ममुग्ध प्रमुख व्यक्तित्व स्वयं को काशीपुर का भाग्य विधाता समझने लगते हैं? 

या फिर यह लोग हम जैसे आम जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं? 
या यह स्वयं को प्रचारित एवं प्रसारित करने का एक तरीका मात्र है यह तो ईश्वर ही जान? 

लेकिन संविधान द्वारा मुझ जैसे आम आदमी को दिए गए अधिकारों से यह पता चलता है कि भारत में लोकतंत्र है और जनप्रतिनिधि हम जैसी जनता की सेवा करने के लिए ही चुने जाते हैं और किसी भी मंच पर या सदन में जनता की बात रखने के लिए बाध्य हैं? 

आज सोशल मीडिया तथा प्रिंट मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली की कोई काशीपुर का प्रतिनिधित्व मंडल जाकर श्री अनिल बलूनी राज्यसभा सांसद से जाकर मिला और काशीपुर को गोद लेने का आग्रह करके आए है? 

काशीपुर हमारी मातृभूमि है और किसी की हैसियत नहीं जो इसे गोद ले सके? 
हम इस के बेटे हैं हम इस की गोद में है ऐसा कैसा डेवलपमेंट है जो कि हमारी समझ से तो बाहर है? 

सबसे पहले तो मैं जानना चाहूंगा कि अनिल बलूनी जी एक राज्यसभा सांसद है (जो कि भाजपा द्वारा उत्तराखंड की राजनीति में प्लांट किए गए हैं)

अगर प्रोटोकॉल देखें तो मुख्यमंत्री तथा राज्य का कैबिनेट , राज्यसभा सांसद से बड़ा पद है फिर अगर किसी फोरम अपनी बात या विरोध करना ही है तो वह विरोध राज्य सरकार अथवा चुने हुए प्रतिनिधियों से करना चाहिए? 

मैं इन सभी को काशीपुर का स्वर्णिम काल याद दिलाना चाहूंगा और बताना चाहता हूं कि काशीपुर उत्तराखंड राज्य बनने से भी पहले इस क्षेत्र का दूसरा या तीसरा प्रमुख शहर था
लेकिन आज कस्बा कहलाता है? 

सरकार कहती हैं हम काशीपुर को ऐसे ही जिला नहीं बना सकते जब कोटद्वार रानीखेत तथा रामनगर का नंबर आएगा तब साथ-साथ बनेंगे किसी पदाधिकारी की विरोध की आवाज सुनाई नहीं देती? 

माननीय राज्यसभा सांसद श्री अनिल बलूनी जी द्वारा तीन जनशताब्दी ट्रेन शुरू करवाई गई लेकिन काशीपुर को जनशताब्दी देना तो दूर जो ट्रेनें चल रही थी उन्हें भी बंद कर दिया गया क्या किसी के द्वारा यह बात कही गई? 

और अंत में यह कहना चाहूंगा क्यों आप काशीपुर को नॉलेज हब बनाना चाहते हैं ?
एस्कॉर्ट की सोना उगलने वाली जमीन IIM को दे दी गई क्या विकास हुआ काशीपुर का ?
अब आप IIT की मांग करते हैं क्या विकास हो जाएगा उससे काशीपुर का??

अन्य राज्यों के बच्चे आएंगे पढ़ेंगे और उड़ जाएंगे काशीपुर को क्या मिलेगा ठेंगा जैसे पहले मिलता रहा है? 

सरकार के पास काशीपुर में सक्षम जमीन है अगर काशीपुर देना ही है तो यहां पर राज्य की स्थाई राजधानी बन सकती हैं? 
नहीं तो उत्तराखंड हाईकोर्ट काशीपुर शिफ्ट हो सकती है
जिला मुख्यालय बनाया जा सकता है? 

इसलिए मैं बड़ी विनम्रता के साथ सुझाव देना चाहूंगा कि काशीपुर हम सबकी मातृभूमि है इसलिए काशीपुर की बात किसी के आगे रखने से पहले सार्वजनिक मंचों से निवासियों से सलाह अवश्य लिया करें? 

और मेरा विरोध सिर्फ काशीपुर के विकास के लिए है कृपया इसे व्यक्तिगत ना लें और यदि मेरी कोई बात से किसी भी व्यक्तित्व को ठेस पहुंची हो तो मैं अग्रिम ही माफि याचक हूं? 

पाठकों से भी मेरा निवेदन है यदि आप मेरी बात से सहमत हैं तो कृपया साथ दें और यदि असहमत हैं तो कृपया मर्यादित भाषा में विरोध भी दर्ज कराएं स्वागत रहेगा? 

प्रस्तुत लेख अरुण अरोरा के अपने शब्द हैं। इन शब्दों से उन्होंने जन की ओर से कुछ सवाल, कुछ शंकाएं कुछ आशंकायें नगर निवासियों के समक्ष रखी हैं।

 

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