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समाज की विकृत मानसिकता है दलित की हत्या

अमानवीय और नृशंस है ये

इन्द्रेश मैखुरी की कलम से 

 

 यह बेहद नृशंस है,अमानवीय है. उत्तराखंड की टिहरी जिले की नैनबाग तहसील के श्रीकोट गांव में एक दलित युवक इसलिए पीट-पीट कर मरणासन्न कर दिया गया क्योंकि वह शादी में खाना खाने के लिए कुछ सवर्णों के सामने बैठ गया ? 23 साल के जीतेंद्र दास को इसीलिए बेरहमी से पीटा गया कि वह कतिपय सवर्णों लोगों के सामने विवाह समारोह में कुर्सी पर खाना खाने बैठ गया.अखबारी रिपोर्टों के अनुसार 26 अप्रैल को घटित इस घटना में विजय दास को इतना बुरे तरीके से पीटा गया कि उसका हाथ टूट गया,कमर और गुप्तांगों पर भी गंभीर चोट के निशान थे.पिटाई के चलते विजय दास बेहोश हुआ तो फिर कभी होश में नहीं आयाऔर फिर 5 मई को देहरादून के एक अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया.इस मामले में मृतक की बहन ने नामजद रिपोर्ट दर्ज करवाई है पर अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.
यह कैसी विकृत मानसिकता है, जिसके लिए जाति का नकली श्रेष्ठता बोध और अहंकार,मनुष्य के जीवन से भी बड़ा है ? किसी दलित के कुर्सी पर बैठ जाने से कतिपय सवर्णों का धर्म ऐसा खतरे में आ गया कि उन्होंने एक नौजवान का जीवन ही खत्म कर दिया ! कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने मात्र से किसी को जीवन से हाथ धोने पड़े,क्या यह बात समझ में आने वाली है?जिनका जातीय श्रेष्ठता का दावा है, आखिर किस बात के लिए श्रेष्ठ हैं, वे?21वीं सदी में पहुंच कर भी यदि किसी को लगता है कि पैदा होने मात्र से कोई श्रेष्ठ हो जाता है तो वह कूढ़मगज है, मानसिक व्याधि से ग्रसित है. जो श्रेष्ठता किसी को हत्यारा बना दे,उससे अधिक नीचता और क्या हो सकती है? जाति-धर्म की बंदिशों में जब तक लोग जकड़े रहेंगे,तब तक तो ऐसे हत्यारे पैदा होते ही रहेंगे.जाति और धर्म के नकली श्रेष्ठता के अहंकार से बाहर निकलिये,मनुष्य बनिये,यही मनुष्यता के लिए श्रेयस्कर होगा।

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