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प्रेरक प्रसंग :मिसाल बने उत्तराखंड के 80 वर्षीय रिटायर्ड शिक्षक कोरोना वारियर्स की भूमिका में, देखिये वीडियोे

@विनोद भगत 

हल्द्वानी । रानीखेत के निकट तिमिला गांव निवासी अस्सी वर्षीय आनंदबल्लभ पपनै एक मिसाल बनकर उभरे हैं। इस अवस्था में उन्होंने अपना एक यू ट्यूब चैनल लांच कर कोरोना के खतरे के प्रति लोगों को आगाह करने का बीड़ा उठाया है। उनके इस जज्बे में उन्हें अपने परिवार का भी साथ मिला है। 

आनंदबल्लभ पपनै पिछले कई वर्षों से हिन्दी और कुमाऊंनी साहित्य रच रहे हैं। वर्तमान में वह हल्द्वानी में निवास कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं। उनके द्वारा रचित कुमाऊँनी रामलीला का देश के अनेक मंचों पर मंचन किया जा चुका है। इन दिनों देश में कोरोना संकट को लेकर आनंदबल्लभ पपनै खासे व्यथित हैं। ऐसे में में उन्होंने अपने बेटे कुंवर पपनै और बहू अनु पपनै की मदद से अपन यू ट्यूब चैनल तीन दिन पहले लांच किया है। उनके इस यू ट्यूब चैनल के सबस्क्राइबर की संख्या लगातार बढ़ रही है। 

अपने इस चैनल के माध्यम से वह कुमाऊँनी भाषा में अपनी कविताओं के जरिए लोगों में जागरूकता फैलाने में जुट गये हैं। शब्द दूत से बात करते हुए आनंदबल्लभ पपनै कहते हैं कि इस समय मेरी आयु 80 वर्ष है। इस अवस्था में मैं देश के लिए कुछ करने की आशा के साथ यह कोशिश कर रहा हूं।

आनंदबल्लभ पपनै कहते हैं कि उनकी बचपन से ही कविता गायन वादन व नाटकों के मंचन में रूचि रही है। अपने अतीत का ज़िक्र करते हुए आनंदबल्लभ पपनै बताते हैं कि वह 1999 में शिक्षक के पद से राजकीय इंटर कालेज देवलीखेत से सेवानिवृत्त हुये थे। शिक्षण कार्य के दौरान भी उनकी रचनात्मक गतिविधियां जारी रही। रामलीला मंचों पर विभिन्न पात्रों के रूप में अभिनय करते रहे। उनके द्वारा रचित कुमाऊंनी रामलीला वाल्मीकि रामायण रामचरित मानस रामचन्द्रिका एवं आध्यात्म रामायण पर आधारित है। उनके द्वारा रचित इस कुमाऊंनी रामलीला का मंचन देहरादून अल्मोड़ा तथा रानीखेत में कई बार किया गया।

श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित सुदामा के प्रसंग पर विपदु सुदामा गीत नाटिका भी काफी चर्चित रही जिसका उत्तराखंड के कई स्थानों पर मंचन किया गया। आनंदबल्लभ पपनै बताते हैं कि उनके लिखे एक नाटक “पेड़ की पुकार” का प्रसारण आल इंडिया रेडियो से हुआ। आधा दर्जन से अधिक नाटकों के अलावा तमाम हिन्दी कुमाऊंनी गीतों के रचियता आनंदबल्लभ पपनै उत्तराखंड राज्य के ऐसे साहित्यकार हैं जो आध्यात्मिक विरासत के साथ साथ मौजूदा सामाजिक परिवेश पर भी अपनी लेखनी की अलख जगाये हुये हैं।

कोरोना महामारी से जूझ रहे देश के लिए आनंदबल्लभ पपनै भी किसी कोरोना वारियर्स से कम नहीं है। वह कहते हैं कि आप अपना काम करें। आप किस तरह से योगदान दे सकते हैं ये आपको स्वयं तय करना है।

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