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एक्सक्लूसिव रिपोर्ट : बारूद से भी खतरनाक चीज बिक रही ऊधमसिंह नगर में, प्रशासन को नहीं खबर

 

@विनोद भगत/मनोज श्रीवास्तव 

काशीपुर/जसपुर । बारूद से भी खतरनाक चीज बिक रही है काशीपुर और जसपुर की परचून की दुकानों पर। ऊधमसिंह नगर के इन दो शहरों में प्रशासन की मुस्तैदी के दावे खोखले नजर आ रहे हैं। कभी भी कोई भीषण दुर्घटना हो सकती है।

शब्द दूत ने खुफिया कैमरे से जो रिपोर्ट तैयार की है वह यह बताने के लिए काफी है कि शासन प्रशासन दुर्घटना के बाद ही मुस्तैद होने का दम भरता है और दुर्घटना के बाद शुरू होता है मुआवजे का खेल। काशीपुर और जसपुर के प्रशासन की मुस्तैदी की पोल खोलती शब्द दूत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ।

दुकान के बाहर रखी पेट्रोल की बोतल

शब्द दूत की टीम आज जसपुर क्षेत्र के गढ़ीनेगी करनपुर बैलजूड़ी से काशीपुर ढेला पुल तक तमाम दुकानों पर बारुद से खतरनाक पेट्रोल खुलेआम बिकता देख कर हैरान रह गयी। इससे भी हैरानी की बात यह है कि सप्लाई इंस्पैक्टर विष्णु प्रसाद त्रिवेदी से शब्द दूत ने जब बात की तो उन्होंने इसे सामान्य रूप से लेते हुए कहा कि क्या ऐसा हो रहा है। आश्चर्य है कि हर दुकान के आगे पेट्रोल की बोतल देखी जा सकती है।  पर सप्लाई इंस्पैक्टर या किसी अन्य प्रशासनिक अधिकारी को नजर नहीं आती। 

शहर-देहात में परचूनी की दुकानों पर दाल- चावल की तरह बारुद से भी घातक पेट्रोल की खुलेआम बिक्री हो रही है। पेट्रोलियम पदार्थों बिक्री अधिनियम के तहत पम्प से भी केवल वाहनों में पेट्रोल भरा जा सकता है, जबकि पुलिस, प्रशासन व रसद विभाग की बेपरवाही के चलते थोड़े से मुनाफे के चलते दुकानों पर अवैध पेट्रोल बेच रहे हैं।

परचून दुकानों के अलावा  टायर पंचर व रिहायशी घरों तक में पेट्रोल बिक रहा है। खुले में पेट्रोल बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद प्रशासन के अधिकारी आंखें मूंदे बैठे है। पम्प के मुकाबले दुकानों पर दस से पन्द्रह रुपए तक अधिक वसूल रहे है। इस तरह दुकान न सिर्फ सरकार को राजस्व की चपत लगा रहे हैं, बल्कि बड़े हादसे को भी दावत दे रहे हैं। बिना सुरक्षा इंतजाम के चल रही पेट्रोल की दुकानें आवासीय क्षेत्र में किसी बारुद से कम नहीं है, जहां आगजनी की कोई घटना हो जाए, तो उसे नियंत्रित करना मुश्किल है।

प्रदेश में पेट्रोल की दर  74 से 75  रूपये के आस पास है, जबकि इन दुुकानों पर 90 से 100 रुपए प्रति लीटर में बेचा जा रहा है। यही नहीं, कुछ लोग इसमें केरोसिन व सॉल्वेंट भी मिला रहे हैं। इस कारण न सिर्फ वाहन के इंजिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि आर्थिक व मानसिक परेशानी भी है।

एक्सप्लोसिव और पेट्रोलियम एक्ट के तहत पम्प पर वाहन की टंकी के अलावा अन्य पात्र में पेट्रोल भरना अपराध है। इसके बाजवूद कतिपय पम्प संचालक चोरी छिपे केन, ड्रम में पेट्रोल भरकर कतिपय दुकानदारों को कालाबाजारी के लिए दिया जा रहा है। फिर दुकानों पर पानी की तरह एक-एक लीटर की पेट्रोल की बोतलें बेची जा रही है, लेकिन पुलिस, प्रशासन खामोश है। इससे अफसरों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।

कार्रवाई के लिए ये अधिकृत विभागीय अधिकारियों का दायित्व है कि ये नियमित क्षेत्र में विजिट व मॉनिटरिंग करें, ताकि क्षेत्र में कहीं भी अवैध तरीके से पेट्रोल की बिक्री न हो। फिर भी सब अधिकारी जानकर भी अनजान बने हुए हैं।

किसी भी परिस्थिति में अधिकाधिक पेट्रोल बिकना ही चाहिए, चाहे वह कैसे भी बेचे। इस कारण पम्प संचालक निरकुंश हो गए, जो खुलेआम कतिपय लोगों को केन, ड्रम व बोतलों में पेट्रोल भरकर दे रहे हैं।

पेट्रोलियम पदार्थों को लेकर नियम है कि अधिकृत पेट्रोल पंपों के अलावा कहीं पेट्रोल नहीं बिक सकता। साथ ही इसे केवल गाड़ियों के टैंक में ही भरा जा सकता है। तो वहीं इसके बिक्री मामले में नियम पालन और सख्ती को लेकर शासन-प्रशासन भले ही दावे करे लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं दिखता है। जहां एक ओर आम वाहन चालकों से सख्ती बरती जा रही है और बगैर हेलमेट के पेट्रोल भी नहीं दिया जा रहा है। वहीं पेट्रोलियम पदार्थों के काला बाजारी के लिए नियमों को ताक पर रख दिया गया है।

दरअसल यहां पेट्रोलियम पदार्थ की बिक्री के मामले में नियमों का उल्लंघन बेरोक-टोक हो रहा है। जबकि प्रशासन भी इस ओर अपनी आंखें मूंदे बैठा है। जो डीजल-पेट्रोल केवल पंपों पर ही बेचा जा सकता है, उसकी यहां दुकान चल रही है। पंप से ज्यादा कीमत पर बिकते इस तेल की बिक्री को रोकने वाला कोई नहीं है। गांवों में परचून सहित ऑइल और सर्विस सेंटर की आड़ में पेट्रोल बिक रहा है। जबकि डीजल बिक्री का भी कमोवेश यही हाल है।

चंद पैसा कमाने की भूख में दुकानदार  जिंदगी दांव पर लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। यहां किराना दुकानों से पेट्रोल बेचा जा रहा है। इनके पास आग बुझाने के लिए कोई संयंत्र भी नहीं है। पेट्रोल की अवैध बिक्री पर लगाम नहीं लग पा रही है। दुकानदार मुनाफा कमाने के चक्कर में अपनी जान जोखिम में डालने से बाज नहीं आ रहे हैं। पेट्रोल टंकी संचालक की भी भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। जिला प्रशासन तो दूर पेट्रोलियम के अफसरों को भी धरातल पर उतरने की फुर्सत नहीं है। अफसर किसी बड़ी दुर्घटना के इंतजार में हैं।

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