एक बार फिर विजेता के रूप में उभरे केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष चेहरों पर शिकन बढ़ा दी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों से सबसे ज्यादा चिंता भाजपा को होने जा रही है। राष्ट्रवाद पाकिस्तान देशद्रोह जैसे मुद्दों पर पर विपक्ष को घेरने की भाजपा की रणनीति अब फुस्स होने जा रही है। दरअसल केजरीवाल इन सबसे इतर सरकारों द्वारा जमीनी स्तर पर जनता के लिए किये जाने वाले कार्यों के बलबूते पर नायक बने हैं। इसके विपरीत भाजपा भावनात्मक रूप से जनता को अपने पक्ष में अब तक करती रही है। रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस वैसे भी दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी जीत से ज्यादा भाजपा की हार के लिए चुनाव लड़ रही थी।
अपने पिछले पांच वर्षों में आम आदमी पार्टी भाजपा नेताओं से उलझने के स्थान पर दिल्ली की जनता के करीब रही। और सरकार जनता के करीब जाने का मतलब होता है कि जनता की मूलभूत सुविधाओं सड़क पानी बिजली शिक्षा में सुधार करना होता है। दरअसल जनता नेताओं के बयानों से ज्यादा उस पर भरोसा करती है जो उसे प्रत्यक्ष दिख रहा है। केजरीवाल हनुमान के मंदिर जाते हैं तो भाजपा की नजर में मंदिर अपवित्र हो जाता है। पर इससे जनता प्रभावित हुई। यह भी भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो गया।
अब सवाल उठता कि दिल्ली में भाजपा की हार मोदी की कही जायेगी या नहीं क्योंकि जीत जहाँ भी होती है वहाँ मोदी की होती है। और हार का सेहरा किसका? कांग्रेस की ओर से सीधा राहुल गांधी की हार मानी जायेगी।