विनोद भगत
काशीपुर । द्रोणासागर के आसपास अतिक्रमण को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका पर प्रदेश सरकार से जबाब मांगे जाने के मामले में अतिक्रमणकारियों में हड़कंप मचा हुआ है। इन अतिक्रमणकारियों में ऐसे भी लोग हैं जो मजदूर वर्ग से आते हैं तो कुछ धनाढ्य लोग भी शामिल हैं। ज्यादा दिक्कत उन लोगों को है जिनका कहीं ठिकाना नहीं है। अब उन्हें अपना आशियाना उजड़ने की चिंता सताने लगी है।
द्रोणासागर के आसपास अपनी भूमि पर मकान बना कर रहने वालों का कहना है कि उनके पास रहने के लिए और कहीं जगह नहीं है। इन परिवारों की महिलाओं और बुजुर्गों का कहना है कि वह अपनी ही जमीन पर घर बना कर रह रहे हैं। सरकारी नियमों का पालन करने इंकार नहीं करते। पर सरकार या पुरातत्व विभाग उन्हें अन्यत्र बसा दे तो वह तैयार हैं। उनकी जमीन कब्जे में ले ले वह इस बात के लिए भी तैयार हैं। यहां मकान बनाकर रहने वालों में बाबूराम, नन्हे सिंह, चन्द्र, छोटेलाल, प्रेमवती, रुक्मणी, कुंदन सिंह, शान्ति देवी, माया, गुड्डी देवी, हरनंदी, आदि विभिन्न निवासियों का कहना है कि आशियाना उजड़ गया तो वह बेघर हो जायेंगे।
प्रेमवती बताती हैं कि यहाँ हमारे खेत हैं। लेकिन साल में 8 महीने उनमें पानी भरा रहता है। ऐसे में हम यहाँ फसल भी नहीं उगा पाते। द्रोणासागर से पानी की निकासी सीधे हमारे खेतों में कर दी गई है। इन लोगों की व्यथा है कि मकान हमें बनाने नहीं देते खेती हम कर नहीं सकते। आखिर अपना जीवन यापन कैसे करें। मुसीबतों के साथ जीवन जी रहे हमें अतिक्रमणकारी साबित कर दिया जा रहा है। ऐसे में सिर्फ हमें फांसी ही दे दी जाये।
इन लोगों ने स्वीकार किया कि विभाग द्वारा उन्हें नोटिस दिए गए थे। पर जब उनकी झोपड़ी थी तो यहां असामाजिक तत्व उनमें आग लगा देते थे। खैर मामला कोर्ट में है और जो भी फैसला आयेगा उसे सरकार को और इन अतिक्रमणकारियों को मानना होगा।
उधर प्रतिबंधित क्षेत्र में भारी संख्या में में मकान और शो रूम भी खुले हुये हैं। जो वर्षों से अपना कारोबार करते आये हैं। कुछ मकान तो पुरातत्व विभाग की अनुमति से मानक के अनुसार बने हुए हैं। इन अतिक्रमणकारियों के साथ विभाग भी संदेह के घेरे में है कि कैसे प्रतिबंधित क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में अतिक्रमण हो गया।

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