@शब्द दूत ब्यूरो (18 सितंबर 2021)
काशीपुर। सेवानिवृत रोडवेज कर्मचारी कल्याण समिति के प्रांतीय अधिवेशन में समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक राउत ने कहा कि कि ईपीएस-95 से संबंधित करीब 67 लाख कर्मचारी हैं। इनमें से प्रत्येक पेंशनर्स ने अंशदान के रूप में 541 रुपये की राशि का सहयोग किया है। इसके बावजूद उन्हें अंशदान के मुताबिक पेंशन नही दी जा रही है। पेंशन बढ़ोतरी के लिए 159 विभागों के सेवानिवृत्त कर्मचारी दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं।
अधिवेशन यहाँ रोडवेज परिसर में आयोजित किया गया था। इस दौरान ईपीएस-95 पेंशनधारकों ने पेंशन बढ़ाने की मांग को लेकर कहा कि वे भीख नहीं मांग रहे, बल्कि ईपीएस के तहत उनका अंशदान कटता है। अधिवेशन में निर्णय लिया गया कि पेंशन को लेकर जमशेदपुर में होने वाले सम्मेलन में आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी।
अधिवेशन में समिति के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष सरदार सुरेंद्र सिंह की अध्यक्षता में डिपो परिसर में हुआ। जिसमें उत्तराखंड के अलावा पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र से आए केंद्रीय पदाधिकारियों ने भी शिरकत की।
इस दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में भी धरने को एक हजार दिन पूरे हो चुके है। इस संबंध में 5 मार्च और 5 अगस्त को दो बार प्रधानमंत्री और एक बार देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन से वार्ता हो चुकी है, लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर पेंशनरों की मांगों पर कोई निर्णय नहीं हो सका है। राउत ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पीएम श्रम योगी मानधन योजना शुरु की गई है। जिसमें 60 रुपये का अंशदान कर 36 हजार रुपये सालाना पेंशन का प्रावधान है, लेकिन पेंशनर्स को इस योजना का भी लाभ नही मिल रहा है।
समिति के राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्या जयश्री किवालेकर ने कहा कि पेंशनर्स को 7500 रुपये पेंशन और मंहगाई भत्ता दिए जाए। साथ ही ईपीएफओ के पत्र के अनुसार पेंशन धारको और उनके आश्रितों को चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई जाए। उन्होंने कहा कि जिन कर्मियों ने अंशदान जमा नही हो सका है, उन्हें भी पांच हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाए। अधिवेशन में कहा गया कि समिति का अगला अधिवेशन जल्द ही जमशेदपुर में होगा। जिसमें पेंशनर्स की मांगों को लेकर आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी। अधिवेशन में कैलाश पांडे, चौधरी ऋषिपाल, पान सिंह नेगी, सुभाष शाह, सुरेश कांबोज आदि ने विचार रखे। संचालन संजीव डोभाल ने किया। अधिवेशन की पूरी व्यवस्था स्थानीय कर्मचारी नेताओं के संगठन द्वारा की गई थी।