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अपनी -अपनी यात्राओं के नतीजे@किसको क्या मिला, एक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से

न्यूयार्क में लेखक

राहुल गांधी की 3250 किमी की यात्रा का समापन होने के साथ ही मेरी अमेरिका की यात्रा का समापन भी हो गया। राहुल की यात्रा मुल्क के लिए थी लेकिन मेरी यात्रा परिवार के लिए थी। राहुल गांधी अपनी यात्रा से मुतमईन हैं और मैं अपनी यात्रा से। इन यात्राओं के नतीजे सुखद हों यही हमारा विश्वास है।

दरअसल जिंदगी अपने आप में एक यात्रा है।हर यात्रा का लक्ष्य होता है।एक कार्ययोजना होती है। तैयारी होती है। यात्राएं नसीब से हासिल होती है। बदनसीब लोग यात्रा के लिए तरसते हैं। भारत में बहुत से लोग हैं जो लगातार पंद्रह साल तक सूबेदार रहे लोग चाहकर भी मनमाफिक यात्राएं नहीं कर पाते। हमारे आज के प्रधानमंत्री जी प्रधानमंत्री बनने तक अमेरिका के लिए तरसते थे। लेकिन उनके नसीब में यात्राएं थी इसलिए वे प्रधानमंत्री बने और अमेरिका की यात्रा कर सके।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 2014 से 2022 तक अमेरिका की 07यात्राएं कर चुके हैं। मेरा भी नसीब है कि मैं बिना प्रधानमंत्री तो क्या पार्षद बने बिना भी आठ साल में अमेरिका की पांच यात्राएं कर चुका हूं। अमेरिका की यात्राओं ने मुझे बहुत कुछ दिया।मेरा अमेरिका का यात्रा वृत्तांत तीन संस्करण की शक्ल में सामने आ चुका है। मैंने सभी यात्राओं को निजी खर्चे पर हासिल किया, जबकि मोदी जी की हर यात्रा सरकारी यात्रा रही है।

बहरहाल राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समापन काबिले गौर है। राहुल ने कश्मीर के उसी ठौर जाकर तिरंगा फहरा कर यात्रा का समापन किया है जहां ध्वजारोहण करने के लिए दूसरों को पूरा फौज बांटा लेकर जाने से कतराते हैं।भारत को जोड़ने और तोड़ने की कोशिशें समानांतर चल रही हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पूरे समय विवादों के घेरे में रही। सत्तारूढ़ भाजपा और सरकार पूरे प्राणपन से इस यात्रा का मखौल उड़ाते रहे, बदनाम करते रहे।

मेरी स्मृति में पिछले अनेक दशकों में भारत भारत जोड़ो यात्रा जैसी कोई राजनीतिक यात्रा निकाली गई हो। सड़क पर जनता के बीच रहना सबसे बड़ा काम है। ये काम या तो महात्मा गांधी ने किया या फिर राहुल गांधी ने। राहुल गांधी महात्मा गांधी की परछाईं भी नहीं हैं, लेकिन राहुल ने गांधी का अनुशरण किया है। मुमकिन है कि राहुल को ये यात्रा सत्ता की सीढ़ियां चढा दें और मुमकिन है कि ऐसा न भी हो। यात्रा के नतीजों पर सबकी नजर है।सबकी यानि सबकी।

मुझे कुछ यात्राओं में शामिल होने का मौका मिला, लेकिन वे यात्राएं भारत जोड़ो यात्रा से भिन्न थीं।एक यात्रा अभिनेता और सांसद सुनील दत्त की थी।एक यात्रा भोंडसी के संत चंद्रशेखर की थी। मैंने खुद एक एक सप्ताह की दो लंबी यात्राएं कहीं।शहर वालों को चंबल का पानी पिलाने की मांग को लेकर भी मैं यात्रा पर रहा।

इन से हटकर आने वाले आम चुनाव में भारत जोड़ो यात्रा के असरात का पता चलेगा। कांग्रेस सत्ता तक पहुंचे न पहुंचे, लेकिन यदि कांग्रेस सबल विपक्ष की भूमिका में भी आ जाए तो भी यात्रा को फलदाई माना जा सकता है। राहुल के पास ये अंतिम अवसर है। अंतिम अवसर तो माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का भी है, लेकिन देखना ये है कि उंट किस करवट बैठेगा ?

यात्राएं चलती रहना चाहिए। यात्राएं जीवन को स्पंदित रखती हैं। पंडित राहुल सांकृत्यायन इस मामले में मेरे आदर्श रहे हैं। कुछ लोग भले ही पंडित राहुल सांकृत्यायन की तरह यात्राएं न करते हों तो भी वे यात्राओं से लगाव रखने वाले होते हैं।शेरा यात्री का नाम आपने सुना ही होगा।मेरा तो बस नहीं चलता अन्यथा मै अविराम यात्राओं पर ही रहूं।अब तो केवल कुछ यात्रा शेष है।
@ राकेश अचल

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