@शब्द दूत ब्यूरो (16 दिसंबर 2025)
नयी दिल्ली। नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार को बड़ी राहत मिली है। राउज एवेन्यू कोर्ट ने ED के चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इंकार कर दिया। दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) विशाल गोगने ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत दायर यह शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि यह मामला किसी एफआईआर पर आधारित नहीं, बल्कि एक निजी शिकायत से जुड़ा है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शिकायत खारिज किए जाने के बाद न केवल गांधी परिवार को बड़ी कानूनी राहत मिली है, बल्कि देश की राजनीति में भी इस फैसले को लेकर तेज़ प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। यह मामला अब केवल अदालत तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गया है।
दिल्ली कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि नेशनल हेराल्ड केस शुरुआत से ही राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित था।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को डराने और दबाने के लिए किया जा रहा है।पार्टी नेताओं ने कोर्ट के आदेश को लोकतंत्र और संविधान की जीत बताया।राहुल गांधी समर्थकों ने कहा कि यह फैसला साबित करता है कि “सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।”
वहीं, भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत संयमित रही। सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने कहा कि अदालत का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि कानूनी प्रक्रिया अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला अंतिम राहत नहीं, बल्कि अंतरिम चरण की बड़ी जीत है।अदालत ने ED की शिकायत को प्रक्रियात्मक खामी के आधार पर खारिज किया है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक मूल अपराध (Predicate Offence) में ठोस आधार और प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक PMLA के तहत कार्रवाई टिक नहीं सकती।
इसका अर्थ यह है कि अदालत ने आरोपों की मेरिट (सच-झूठ) पर फैसला नहीं दिया, बल्कि कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठाया।
विशेषज्ञों के अनुसार ED के पास अभी भी कुछ कानूनी विकल्प खुले हुए हैं। ED इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे सकता है।यदि हाईकोर्ट में राहत नहीं मिलती, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी जा सकता है।
यदि जांच एजेंसी को लगता है कि प्रक्रियात्मक खामियां थीं, तो वह उन्हें दुरुस्त कर नई शिकायत या पूरक चार्जशीट दाखिल करने पर विचार कर सकती है।
ED अब पूरा ध्यान उस मूल अपराध पर केंद्रित कर सकता है, जिस पर PMLA की कार्रवाई टिकी होती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले से विपक्ष को यह कहने का अवसर मिला है कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई न्यायिक जांच में टिक नहीं पा रही है।आगामी चुनावी माहौल में यह फैसला विपक्षी एकजुटता को मजबूत कर सकता है।कांग्रेस इस मुद्दे को “संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग” के उदाहरण के तौर पर जनता के बीच ले जा सकती है।
नेशनल हेराल्ड केस में दिल्ली कोर्ट का यह फैसला गांधी परिवार के लिए तत्काल राहत जरूर है, लेकिन कानूनी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। दूसरी ओर, इस निर्णय ने देश की राजनीति में एक बार फिर जांच एजेंसियों की भूमिका और राजनीतिक निष्पक्षता पर बहस को तेज कर दिया है।
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि ED अगला कदम क्या उठाता है और क्या यह मामला उच्च अदालतों तक पहुंचेगा या यहीं थम जाएगा।
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