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काशीपुर :12 साल से बंद चीनी मिल, 42 करोड़ बकाया को तरस रहे सैकड़ों श्रमिक — 65 मजदूरों की मौत, न्याय की राह अब भी लंबी, श्रमिक नेता ने सुनाया दर्द, देखिए वीडियो

@शब्द दूत ब्यूरो (07 दिसंबर 2025)

काशीपुर।  काशीपुर में 16 नवंबर 2013 को सील हुई चीनी मिल के सैकड़ों श्रमिक पिछले 12 वर्षों से अपने वेतन और अन्य देयों के भुगतान के लिए भटक रहे हैं। मिल बंद होने के बाद मजदूरों पर करीब 42 करोड़ रुपये का बकाया रह गया, जो आज तक जारी नहीं हो सका है। स्थिति यह है कि इन वर्षों में करीब 65 श्रमिकों की मौत हो चुकी है, जबकि कई अब भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।

मजदूर यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ श्रमिक नेता वेद प्रकाश विद्यार्थी ने बताया कि 2013 में स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते मिल को सील कर दिया गया था। उसके बाद से न तो मिल प्रबंधन आगे आया और न ही जनप्रतिनिधियों या सरकारों ने श्रमिकों की सुध ली।

विद्यार्थी ने बताया कि वे कई बार देहरादून से दिल्ली तक नेताओं के द्वार पर गए, लेकिन किसी ने ठोस पहल नहीं की। “हम कई मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों तक पहुंचे, लेकिन ज्ञापन लेने के अलावा किसी ने कदम नहीं उठाया,” उन्होंने कहा।

श्रमिकों ने न्याय की उम्मीद में इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस दाखिल किया है, जिसका नंबर 1/2013 बताया गया है। विद्यार्थी के अनुसार, इतने वर्षों में कोर्ट में लगातार तारीख पर तारीख पड़ती गई, लेकिन समाधान नहीं निकल सका।
उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार हाईकोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर दे कि यह प्लांट उत्तराखंड राज्य का है, तो मामले को शीघ्र निपटाया जा सकता है, लेकिन अब तक कोई पहल नहीं हुई।

75 वर्षीय वेद प्रकाश विद्यार्थी भावुक होकर बताते हैं कि कई मजदूरों ने आर्थिक तंगी में दम तोड़ दिया। “मेरे 60 से अधिक साथी गुजर चुके हैं। हाल ही में विजय मेहतरा का निधन हो गया, जो मिल में अकाउंटेंट थे।” विद्यार्थी ने कहा कि उन्हें स्वयं अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे उधार लेने पड़े।

100 स्थायी कर्मचारी, जिनमें से कई का निधन हो चुका है। लगभग 600 सीजनल कर्मचारी, जिनमें ज्यादातर पूर्वांचल से आते थे।

श्रमिक नेताओं के अनुसार, फैक्ट्री की जमीन ‘फाटक वालों’ के परिवार से 99 साल की लीज पर ली गई थी। बीआईएफआर में जाने के बाद मिल को ‘खाली प्लांट’ कहा जा रहा है, जिससे श्रमिकों की कानूनी लड़ाई और जटिल हो गई है।

विद्यार्थी ने बताया कि कुछ साथियों ने केस को नैनीताल हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की बात कही, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का खर्च उठाना संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था में तेजी और सरकार की ठोस कार्रवाई के बिना गरीब श्रमिकों को उनका हक मिलना बेहद मुश्किल है।

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