@शब्द दूत ब्यूरो (06 दिसंबर 2025)
देहरादून/हल्द्वानी। बनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट में 10 दिसंबर को महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है। यह सुनवाई चीफ जस्टिस की पीठ में सूचीबद्ध है और माना जा रहा है कि इस दिन अदालत कोई निर्णायक टिप्पणी या आदेश जारी कर सकती है। इससे पहले 2 दिसंबर को एसआईआर मामलों की लंबी सुनवाई के चलते यह मामला टल गया था।
सुनवाई से पहले हल्द्वानी में पुलिस और प्रशासन पूरी तरह सतर्क हो गए हैं। बनभूलपुरा क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर उच्च स्तरीय बैठकें की जा चुकी हैं, और 10 दिसंबर को भी इलाके में विशेष सुरक्षा व्यवस्था तैनात रहेगी।
क्या है पूरा मामला? हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे भूमि पर बसे हजारों परिवारों का मामला वर्षों से न्यायालयों में विचाराधीन है। स्थानीय निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं, कई परिवार तो आजादी से पहले से। उन्होंने नगरपालिका टैक्स, हाउस टैक्स, तथा अन्य वैध दस्तावेजों को अपने निवास का आधार बताया था और बिना पुनर्वास के बेदखली को अमानवीय करार दिया था।
जनवरी 2023 में नैनीताल हाई कोर्ट ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, जिसके बाद प्रभावित परिवार सुप्रीम कोर्ट पहुँचे। सुप्रीम कोर्ट ने तब रातों-रात की जाने वाली ध्वस्तीकरण कार्रवाई पर रोक लगाई थी।
24 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए कहा था कि अतिक्रमण हटाने से पहले पुनर्वास योजना तैयार की जाए। कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकार और रेलवे से संयुक्त योजना माँगी थी — जिसमें यह स्पष्ट हो कि कौन प्रभावित होगा, कितनी भूमि आवश्यक है और पुनर्वास कहाँ किया जा सकता है।
रेलवे ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि उसके पास अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास की कोई नीति नहीं है। जबकि राज्य सरकार को अदालत ने पुनर्वास जिम्मेदारी का प्रमुख पक्ष माना है। मामला अब भी सुनवाई में है।
रेलवे भूमि और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ सबसे पहले जनहित याचिका याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने दायर की थी।
2007 में हाई कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए, जिसमें 2400 वर्गमीटर भूमि खाली कराई गई। 2013 में गौला नदी में अवैध खनन और पुल क्षति मामले की सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि अतिक्रमण का मुद्दा फिर उठा।2016 में हाई कोर्ट ने रेलवे को 10 सप्ताह के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। 2017 में अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई के निर्देश मिले, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की, लेकिन अतिक्रमण नहीं हट सका।मार्च 2022 में फिर पीआईएल दायर हुई, जिसमें अदालत ने प्रभावित लोगों को अपने दस्तावेज रखने को कहा। लेकिन कोई भी पक्ष भूमि स्वामित्व सिद्ध नहीं कर सका। दिसंबर 2022 में हाई कोर्ट ने पुनः रेलवे को नोटिस देकर बेदखली निर्देशित किया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
अब 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई होनी है, जिस पर पूरे प्रदेश की नजर है। यह मामला सामाजिक, कानूनी और प्रशासनिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का आगामी आदेश हजारों परिवारों और रेलवे की विकास परियोजनाओं—दोनों के भविष्य को प्रभावित करेगा।
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