@विनोद भगत
देश के वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा की सोशल मीडिया पोस्ट में लिखी एक पंक्ति — “कांग्रेस के पास एक भी कार्यकर्ता नहीं, नेताओं का जखीरा है” — आज के भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में उस सच्चाई को उजागर करती है जिसे कांग्रेस स्वयं भी जानती है, पर स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। यह एक ऐसी टिप्पणी है जिसने जैसे कांग्रेस के संगठनात्मक पतन की पूरी गाथा को एक वाक्य में समेट दिया हो।
कभी कांग्रेस देश की स्वतंत्रता का पर्याय थी। उस दौर में कार्यकर्ता सड़कों पर उतरते थे, जेल जाते थे, और पार्टी विचारधारा के लिए त्याग की मिसाल बनते थे। पर आज का कांग्रेस संगठन त्याग नहीं, ताज की राजनीति करने वालों से भरा है। हर व्यक्ति खुद को “नेता” कहलवाना चाहता है, पर मैदान में उतरने वाला “कार्यकर्ता” कोई नहीं। नेतृत्व की यह अधिकता और कर्मठता की कमी ही कांग्रेस के अंदरूनी क्षरण का सबसे बड़ा कारण बन चुकी है।
आज कांग्रेस के पास हर स्तर पर “महान नेता” मौजूद हैं — राष्ट्रीय, प्रदेश, जिला, ब्लॉक, वार्ड और यहां तक कि मोहल्ला स्तर तक। लेकिन जब जनता के बीच काम करने, आंदोलनों में उतरने, या बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने की बात आती है, तो यह “नेताओं की फौज” एकदम अदृश्य हो जाती है। नेताओं की अधिकता ने संगठनात्मक अनुशासन को भी खत्म कर दिया है। हर कोई “अपना गुट”, “अपना चेहरा” और “अपना लाभ” देखता है — पार्टी नहीं।
कांग्रेस का असली बल कभी उसका विचार और जमीनी कार्यकर्ता हुआ करता था। आज न विचार बचा है, न जमीनी कार्यकर्ता। नेतृत्व की नई पीढ़ी सोशल मीडिया की लाइक्स और बयानबाजी की राजनीति तक सीमित है। पार्टी के दफ्तरों में अब मीटिंग्स कम और फोटोशूट ज्यादा होते हैं। इसलिए, बहुगुणा की यह बात कड़वी जरूर है, लेकिन पूरी तरह सत्य है।
कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता भले ही इस टिप्पणी पर नाराज हों, पर यह नाराज़गी सत्य से बचने का प्रयास मात्र है।
आज हर पार्टी को आईना दिखाने वाले लोग खुद आईने से डरने लगे हैं। जो कभी लोकतंत्र का “प्रशिक्षण संस्थान” मानी जाती थी, वही पार्टी अब आंतरिक लोकतंत्र के संकट में डूबी है। जिन्हें कार्यकर्ता खड़ा करते थे, वही नेता अब कार्यकर्ता को पहचानने तक से कतराते हैं।
अगर कांग्रेस को सच में पुनर्जीवित होना है, तो उसे नेताओं की भीड़ नहीं, कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करनी होगी।
उसे यह समझना होगा कि राजनीति में चेहरा नहीं, चरित्र मायने रखता है। नेता बनना आसान है, पर कार्यकर्ता बनना सबसे कठिन।
और जब तक कांग्रेस इस मूल सत्य को स्वीकार नहीं करती, तब तक उसकी पुनरुत्थान की कोई संभावना नहीं।
राजीव नयन बहुगुणा की यह पंक्ति —
> “कांग्रेस के पास एक भी कार्यकर्ता नहीं, नेताओं का जखीरा है।”
कांग्रेस के लिए केवल टिप्पणी नहीं, बल्कि चेतावनी है।
यह वह दर्पण है जिसमें पार्टी को अपनी वास्तविकता देखने की ज़रूरत है। कभी देश की राजनीति की जननी रही कांग्रेस आज अपने ही नेताओं के बोझ तले दब चुकी है। अब प्रश्न यह है कि क्या वह फिर से कार्यकर्ताओं की पार्टी बन पाएगी — या हमेशा के लिए नेताओं का संग्रहालय बनकर रह जाएगी?
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