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पाँच साल में 10 लाख भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता, 2024 में भी जारी रहा ‘एक्जिट इंडिया’ का सिलसिला, आखिर क्यों छोड़ रहे भारतीय नागरिकता?

@शब्द दूत ब्यूरो (27 जुलाई 2025)

पिछले पाँच वर्षों में भारतीय पासपोर्ट छोड़ने वालों की संख्या दस लाख के पार पहुँच गई है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने संसद को जो ताज़ा आँकड़े सौंपे हैं, उनके मुताबिक 2024 में 2,06,378 लोगों ने भारतीय नागरिकता त्यागी। यह लगातार तीसरा वर्ष है जब यह आँकड़ा दो लाख से ऊपर रहा—2023 में 2,16,219 और 2022 में रिकॉर्ड 2,25,620 लोगों ने पासपोर्ट सरेंडर किया था। 2021 में यह संख्या 1,63,370 रही, जबकि महामारी से प्रभावित 2020 में गिरकर 85,256 पर आ गई थी; 2019 में 1,44,017 भारतीयों ने देश छोड़ा था।

कहाँ जा रहे हैं भारतीय?

सरकारी ‘अनुभवी नागरिकता’ (Renunciation) पोर्टल के आँकड़ों से पता चलता है कि भारतीय सबसे ज़्यादा अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इटली, नीदरलैंड्स, सिंगापुर और जर्मनी जैसे देशों की ओर रुख़ कर रहे हैं। 2018‑2022 के विस्तृत देश‑वार डेटा के अनुसार अकेले 2022 में 40,377 भारतीयों ने ऑस्ट्रेलियाई, 60,139 ने कनाडाई और 71,991 ने अमेरिकी नागरिकता हासिल की। कुल मिलाकर 135 देशों में भारतवंशी बसने के लिए अपना मूल पासपोर्ट छोड़ रहे हैं।

कारण: जीवनशैली से लेकर कर‑नियमन तक

सरकार का आधिकारिक रुख़ है कि “नागरिकता छोड़ने के कारण व्यक्तिगत होते हैं”। पर प्रवासन विशेषज्ञ तीन बड़े ट्रेंड गिनाते हैं—

1) विश्वस्तरीय शिक्षा‑स्वास्थ्य व जीवनशैली की चाह,

2) स्थायी निवास या ‘गोल्डन वीज़ा’ जैसी योजनाओं का आकर्षण और

3) उदार कर‑व्यवस्थाएँ व वैश्विक निवेश के अवसर। कोविड‑19 के बाद रिमोट‑वर्क और ‘वर्क फ्रॉम एनीवेयर’ कल्चर ने भी इस प्रवास को तेज़ किया है।

अमीरों का पलायन बढ़ी चिंता

हाई‑नेट‑वर्थ इंडिविजुअल्स (HNWI) पर नज़र रखने वाली कंसल्टेंसी Henley & Partners का आकलन है कि 2024 में करीब 4,300 मिलियनेयर भारत छोड़ देंगे—चीन और यूके के बाद यह दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी ‘वेल्थ आउटफ़्लो’ मानी जा रही है। इन धनकुबेरों को खाड़ी देशों का शून्य आयकर, पुर्तगाल‑सिंगापुर जैसे देशों का रेज़िडेंसी‑बाय‑इनवेस्टमेंट मॉडल और अमेरिका का EB‑5 रूट लुभा रहा है।

‘ब्रेन‑ड्रेन’ बनाम ‘ग्लोबल नेटवर्क’ बहस

विशेषज्ञों का मानना है कि कुशल पेशेवरों और उद्यमियों का बाहर जाना अल्पकाल में ‘ब्रेन‑ड्रेन’ ज़रूर दिखता है, पर प्रवासी भारतीयों के रेमिटेंस, निवेश और तकनीकी नेटवर्क लम्बी अवधि में देश के लिए पूँजी भी बनाते हैं। सवाल यह है कि क्या भारत नवाचार‑इकोसिस्टम, कर‑स्थिरता और जीवन‑गुणवत्ता को इतना सशक्त बना पाएगा कि ‘गया‑टैलेंट’ वापस लौटे या यहीं से ही वैश्विक अवसर पाए।

नीतिगत संदेश

आँकड़ों का साफ़ संकेत है—भारत को अपनी प्रतिभा और पूँजी दोनों के लिए ‘स्टिकINESS फ़ैक्टर’ बढ़ाना होगा। उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और पारदर्शी व्यवसाय‑परिवेश में सुधार लाने पर ही ‘एक्सिट इंडिया’ का यह क्रम थमेगा; अन्यथा 2025 और आगे भी दो लाख से अधिक भारतीय हर साल नई सरहदों की तलाश में निकलते रहेंगे।

 

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