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काशीपुर: शास्त्रीय संगीत पर आधारित होती है पर्वतीय शैली की रामलीलाएं,जानिए क्या है खास? देखिए वीडियो

@शब्द दूत ब्यूरो (01 अक्टूबर 2024)

उत्तराखंड की पर्वतीय शैली की रामलीला का एक अलग स्थान है। शास्त्रीय संगीत पर आधारित गायन पर्वतीय शैली की रामलीला को एक अलग रोचकता प्रदान करता है। ये रामलीला मंचन पूरी तरह से तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर आधारित होती हैं। इसमें विभिन्न रागों के साथ चौपाइयों और दोहों का गायन इसे और अधिक रोचक बना देता है।

पर्वतीय शैली की रामलीला मंचन के दौरान अक्सर स्थानीय कुमाऊनी बोली में संवाद इसे स्थानीय जनता को श्रीराम के व्यक्तित्व और उनके आदर्शों से सीधे जोड़ते हैं।  उत्तराखंड की भीमताली शैली की रामलीला नैनीताल, हलद्वानी में बहुत प्रसिद्ध है। इसका मंचन हर कोई नहीं कर सकता क्योंकि इसमें संवाद पूरी तरह गाकर मंचित किए जाते हैं। यह गायन भी पूरी तरह शास्त्रीय संगीत पर आधारित होता है।

कहीं कहीं पर्वतीय शैली की रामलीला मंचन में जो संवाद होते हैं उनमें ब्रज के लोक गीतों की झलक भी दिखाई देती है।  संवादों की अदायगी में स्थानीय बोलचाल के सरल शब्दों का भी प्रयोग होता है। खास बात यह है कि रावण कुल के दृश्यों में होने वाले नृत्य व गीतों में अधिकांशतः कुमायूंनी शैली का प्रयोग किया जाता है। रामलीला के गेय संवादो में प्रयुक्त गीत दादर, कहरुवा, चांचर व रुपक तालों में निबद्ध रहते हैं। हारमोनियम की सुरीली धुन और तबले की गमकती गूंज में पात्रों का गायन कर्णप्रिय लगता है। संवादो में रामचरित मानस के दोहों व चौपाईयों के अलावा कई जगहों पर गद्य रुप में संवादों का प्रयोग होता है। यहां की रामलीला में गायन को अभिनय की अपेक्षा अधिक तरजीह दी जाती है। रामलीला में वाचक अभिनय अधिक होता है, जिसमें पात्र एक ही स्थान पर खडे़ होकर हाव- भाव प्रदर्शित कर गायन करते हैं। नाटक मंचन के दौरान नेपथ्य से गायन भी होता है। विविध दृश्यों में आकाशवाणी की उदघोषणा भी की जाती है। रामलीला प्रारम्भ होने के पूर्व सामूहिक स्वर में रामवन्दना “श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन“ का गायन किया जाता है। नाटक मंचन में दृश्य परिवर्तन के दौरान जो समय खाली रहता है उसमें विदूशक (जोकर) अपने हास्य गीतों व अभिनय से रामलीला के दर्शकों का मनोरंजन भी करता है। कुमायूं की रामलीला की एक अन्य खास विशेषता यह भी है कि इसमें अभिनय करने वाले सभी पात्र पुरुष होते हैं। आधुनिक बदलाव में अब कुछ जगह की रामलीलाओं में कोरस गायन, नृत्य के अलावा कुछ महिला पात्रों में लड़कियों को भी शामिल किया जाने लगा है।

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