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जानें कांवर यात्रा के 10 नियम@बता रहे हैं आचार्य धीरज याज्ञिक

@शब्द दूत ब्यूरो (22 जुलाई 2024)

देवाधिदेव महादेव जी को कांवर यात्रा के माध्यम से जल चढ़ाने की परंपरा बहुत ही प्राचीन काल से प्रचलित है।
श्रावण मास एवं महाशिवरात्रि तथा भगवान शिव जी के अन्य पर्वों पर कांवर यात्रा का विधान है जो भक्तों द्वारा प्रतिष्ठित तीर्थ से जल लेकर भगवान शिव के प्रतिष्ठित शिवलिंग पर अर्पित किया जाता रहा एवं वर्तमान में भी यह परंपरा प्रचलित है।

जिसमें भक्त कठिन परिश्रम और तपस्या करके भगवान शिव जी को जल अर्पण करके अपनी मनोकामना अनुसार फल प्राप्त करते हैं परन्तु वर्तमान में इस धार्मिक यात्रा में अनेक विसंगतियों का समावेश हो गया है जो कि धार्मिक एवं सामाजिक रूप से बहुत ही निंदनीय अपराध है।

आचार्य धीरज द्विवेदी याज्ञिक ने बताया कि कांवर यात्रा के 10 नियम जो कि प्रत्येक कांवरियों को पालनीय है।यदि इन नियमों का पालन करते हुए भक्त भगवान शिव को जल अर्पित करता है तभी भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है अन्यथा जल चढ़ाने का कोई फल प्राप्त नहीं होता।
आइए जानते हैं उन 10 नियमों को विस्तार से —

*भक्तिवश ही करें यात्रा -*

यदि आप कांवर यात्रा में शामिल हो रहे हैं तो आपको यह जानना चाहिए कि इस यात्रा का क्या महात्म्य है और क्यों शामिल हो रहे हैं?
जिज्ञासावश,रोमांच के लिए अथवा किसी का देखकर कांवर यात्रा नहीं करना चाहिए।
यदि सच में ही आप शिवजी की भक्ति करना चाहते हैं तो कांवर यात्रा के सख्‍त नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक है अन्यथा यात्रा मान्य नहीं होती है यात्रा में कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है अत: इसके लिए कांवरियों को तैयार रहना चाहिए।

*नशा न करें -*

कांवर यात्रा के समय किसी भी तरह का नशा करना वर्जित माना गया है जैसे भांग,चरस,गांजा,शराब आदि।
शास्त्रों में भी नशा को नर्क प्रदायक कहा गया है।
अतः नशा का सेवन करके कांवर यात्रा करना एवं भगवान शिव को जल चढ़ाना अच्छा नहीं होता और शिव जी उस जल को ग्रहण नहीं करते।

*मांसहारी भोजन न करें -*

कांवर यात्रा के प्रारंभ करने के एक माह पहले और एक माह बाद तक में किसी भी तरह का मांसहारी भोजन करने की भी मनाही है शास्त्रों में।
साथ ही कांवर यात्रा के दौरान तामसिक भोजन भी नहीं करना चाहिए।
मात्र सात्विक भोजन अथवा फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

*भूमि एवं अशुद्ध स्थान पर न रखें कांवर -*

कांवर यात्रा के दौरान यदि कहीं पर रुकना हो तो कावड़ को भूमि पर या किसी चबूतरे पर अथवा अशुद्ध स्थान पर नहीं रखना चाहिए।उसे किसी स्टैंड या पेड़ की डाली पर लटकाकर रखना चाहिए।लकड़ी के पाट पर भी रखा जा सकता है।
यदि भूलवश भी भूमि पर रख दिया तो फिर से कांवर में जल भरना चाहिए।

*कावड़ में पवित्र तीर्थ या नदी का ही जल भरें -*

कांवर में किसी तीर्थ का,बहती हुई पवित्र नदी का ही जल भरना चाहिए कूंआ या तालाब का नहीं।

*पैदल ही करें यात्रा -*

कांवर यात्रा पैदल ही पूरी करना चाहिए। यात्रा प्रारंभ करने से पूर्ण होने तक की यात्रा पैदल ही तय करना चाहिए। इसके पूर्व व पश्चात की यात्रा वाहन आदि से किया जा सकता है।

*अधिक लंबी दूरी की यात्रा न करें -*

पहली बार यात्रा कर रहे हैं तो पहले वर्ष छोटी दूरी की यात्रा करें फिर नियम अनुसार बड़ी दूरी की यात्रा करनी चाहिए।

*जत्‍थे के साथ ही रहें -*

कांवरियों को एक दूसरे की सुरक्षा का ध्‍यान रखते हुए लाइन बनाकर ही चलना चाहिए और जत्थे के साथ ही कीर्तन भजन एवं हरि चर्चा करते रहना चाहिए।

*प्रमुख यात्रा -*

यात्रा की शुरुआत अपने गांव,घर के करीब की किसी नदी से जल लेकर अपने गांव, घर या आसपास के प्रमुख शिवमंदिर तक करनी चाहिए।
इसके अलावा निम्निलिखित प्रमुख यात्राएं भी हैं —
नर्मदा से महाकाल तक_*
*गंगाजी से नीलकंठ महादेव तक।*
*गंगा जी से बैजनाथ धाम (बिहार) तक*
*गोदावरी से त्र्यम्बकेशवके तक*
*गंगाजी से केदारेश्वर तक*
इन स्थानों के अतिरिक्त असंख्य यात्राएं स्थानीय स्तर से प्राचीन समय से की जाती रही हैं एवं वर्तमान समय में स्थानीय देवालयों में जल अर्पित किया जाता रहा है।

*सेहत का रखें ध्यान -*

यात्रा के दौरान सेहत का ध्‍यान रखना जरूरी होता है अत: अपनी क्षमता अनुसार ही यात्रा में शामिल हों और खानपान पर विशेष ध्‍यान रखें। पीने के लिए शुद्ध जल का ही उपयोग करें। उचित जगह रुककर आराम भी करना चाहिए।

आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)
प्रयागराज।
संपर्क सूत्र – 09956629515
08318757871

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