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काशीपुर :रोडवेज बस अड्डा बदहाली की कगार पर: टूटी दीवारें, गंदगी, गलत टाइम टेबल और यात्रियों की बढ़ती परेशानियाँ, देखिए वीडियो

@शब्द दूत ब्यूरो (03 दिसंबर 2025)

काशीपुर।  शहर का रोडवेज बस अड्डा  पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी ने जिसका शुभारंभ किया था, आज अपनी जर्जर हालत और उपेक्षा की वजह से लोगों के लिए परेशानी का केंद्र बन चुका है। कभी जहां से बड़े-बड़े शहरों के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध रहती थीं, वही परिसर आज वीरान व बदहाल दिखाई देता है।

बड़े प्रांगण और केंद्रीय स्थान पर होने के बावजूद बस अड्डे की स्थिति चिंताजनक है। पूरे परिसर में टूटी-फूटी दीवारें, कूड़े के ढेर, गंदा पानी और रखरखाव की भारी कमी स्पष्ट दिखाई देती है। परिसर में ‘सूखा कूड़ा, गीला कूड़ा’ के बोर्ड लगे हैं, लेकिन डस्टबिन तक मौजूद नहीं है। साफ-सफाई की कोई उचित व्यवस्था नहीं दिखती। सुरक्षा के नाम पर भी कोई व्यवस्था नहीं है—चारदीवारी तक नहीं, जिससे रात में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा होना आम बात है।

पीने के पानी का नल भी जर्जर अवस्था में पड़ा मिला। कैंटीन की खिड़कियों की टूटी जालियाँ और आसपास बिखरे शराब के पाउच प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करते हैं। संस्कृत में लिखे स्वच्छता संदेश परिसर की वास्तविक हालत पर कटाक्ष करते नजर आते हैं।

सबसे बड़ी समस्या—बसों का गलत और वर्षों पुराना टाइम टेबल। यात्रियों को यह पता तक नहीं होता कि कौन सी बस कब चलेगी। अधिकांश यात्री पूछताछ के अभाव में घंटों इंतजार करते रहते हैं। जो टाइम टेबल बोर्ड पर लगा है, वह करीब 3-4 साल से अपडेट नहीं हुआ है।

स्टेशन के टाइमकीपर डूंगर सिंह के अनुसार यहां से प्रतिदिन लगभग 45 बसें (27 निगम और 18 अनुबंधित) संचालित की जाती हैं, जिनमें दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, आगरा, हरिद्वार, देहरादून, हद्वानी, पीलीभीत, बरेली सहित कई रूट शामिल हैं। हालांकि उन्होंने खुद स्वीकार किया कि कई लंबी दूरी की बसें बस अड्डे में प्रवेश तक नहीं करतीं और टांडे मोड़ से ही सीधे निकल जाती हैं, जिससे यात्री बस अड्डे पर पहुंचकर भी बस पकड़ नहीं पाते।

बसों की हालत भी चिंताजनक है। ड्राइवरों और कर्मचारियों के अनुसार कई बसें 10–12 लाख किलोमीटर चल चुकी हैं और बार-बार खराब होती हैं। रास्ते में रुकने की घटनाएँ आम हैं, जिससे यात्रियों की परेशानी बढ़ती है। रिपेयर का काम भी कई बार सड़क पर ही कराना पड़ता है।

कभी यह बस अड्डा यात्रियों से खचाखच भरा रहता था, लेकिन आज यहां सवारियों से ज़्यादा कर्मचारियों की बाइकें खड़ी दिखाई देती हैं। बेंचें लगभग खाली हैं। भीड़ का पुराना नजारा अब गायब हो चुका है।

कुल मिलाकर, काशीपुर का यह ऐतिहासिक रोडवेज स्टेशन अपनी उपेक्षा, जर्जर ढांचे, अव्यवस्थित संचालन और प्रशासनिक गैर-जिम्मेदारी का शिकार होकर बदहाली की मिसाल बन गया है। विकास के दावों के बीच यह हालात किसी चेतावनी से कम नहीं कि शहर का मुख्य परिवहन केंद्र किस स्तर पर पहुंच चुका है।

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