@शब्द दूत ब्यूरो (15 नवंबर)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। राष्ट्रीय जनता दल को पूरे राज्य में सबसे अधिक 22.76% वोट मिले, फिर भी पार्टी सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई। इससे बड़ा सवाल खड़ा होता है—जब जनता का सबसे अधिक वोट आर जे डी को मिला, तो सीटें इतनी कम क्यों आईं?
चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार, आर जे की हार के पीछे कई रणनीतिक कारण छिपे हैं। सबसे प्रमुख कारण था गठबंधन की कमजोर पकड़ और तालमेल का अभाव। सीट-बंटवारे से लेकर स्थानीय स्तर की रणनीतियों तक, महागठबंधन अंदरूनी असहमतियों से जूझता रहा, जिसका सीधा लाभ एन डी ए को मिला।
इसके अलावा, राजद ने चुनाव प्रचार में रोजगार, बिजली और महिलाओं के लिए बड़े वादे किए, लेकिन ये वादे व्यापक समर्थन में तब्दील नहीं हो पाए। पार्टी कई महत्वपूर्ण सीटों पर सही फोकस तय नहीं कर सकी और कई जगहों पर बहुकोणीय मुकाबलों में राजद का वोट बंट गया।
विश्लेषकों का यह भी मानना है कि राजद का वोट शेयर अधिक होने के बावजूद वोटों का वितरण प्रभावी नहीं रहा। पार्टी ने जिन क्षेत्रों में भारी वोट प्राप्त किए, वे सीटें जीत में नहीं बदलीं, वहीं कई मुकाबलों में वोटों के मामूली अंतर ने आर जे डी को नुकसान पहुंचाया।
दूसरी ओर, एन डी ए ने ठोस रणनीति और तालमेल के दम पर न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ मजबूत रखी, बल्कि शहरी सीटों पर भी बेहतर प्रदर्शन किया। जेडीयू और बीजेपी द्वारा की गई संयुक्त रणनीति ने चुनावी गणित को पूरी तरह बदल दिया।
कुल मिलाकर, राजद की हार लोकप्रियता की कमी नहीं बल्कि रणनीतिक और गठबंधन-स्तरीय चूकों का परिणाम रही। यह चुनाव साबित करता है कि केवल अधिक वोट पाने से जीत सुनिश्चित नहीं होती—सही सीटों पर सही वोट मिलना ही अंतिम विजय तय करता है।
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