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खरी खरी :समझदारों की बदल रही परिभाषा, कैसे? समझने के लिए इसे पढ़ना आपके लिए जरूरी है,खबर नहीं हकीकत है ये

@शब्द दूत ब्यूरो (11 अगस्त 2025)

बेवकूफी ही बेवकूफी सही ग़लत चुनने की और समझने की शक्ति का ह्रास हो रहा है कम से कम भारतवासियों का।भारत वासी कहा मैंने भारतीय नहीं क्योंकि एक भारतीय बेवकूफ़ नहीं हो सकता हां ,उसे बेवकूफ बना दिया जाता है। और ऐसा हो भी रहा है। जिसका जीता जागता सबूत इन दिनों फेसबुक पर देखने को मिला है। अब आप कहते हैं कि सरकार कैसे बन जा रही है? भेड़ वाली कहावत तो सुनी होगी एक भेड़ जिधर को चली पीछे पीछे सारी भेड़ें चल दीं। अब आपको बताते हैं कि असलियत क्या है?,👇👇👇👇👇

यह संदेश सही नहीं है।
यह एक फेक/भ्रामक मैसेज है जो कई बार अलग-अलग रूपों में सोशल मीडिया पर फैल चुका है।

कारण:

1. फेसबुक/मेटा की नीतियां ऐसे नोटिस से नहीं बदलतीं – आपकी प्राइवेसी सेटिंग्स और डेटा उपयोग नियम केवल उनकी आधिकारिक Terms of Service और Privacy Policy से तय होते हैं, न कि किसी पोस्ट को कॉपी-पेस्ट करने से।

2. कोई कानूनी असर नहीं – ऐसे पोस्ट का कानूनी वैधता पर कोई असर नहीं होता, क्योंकि जब आप फेसबुक का इस्तेमाल शुरू करते हैं, तो आप उनकी शर्तों को पहले ही मान लेते हैं।

3. फर्जी “समय सीमा” – “कल से नियम बदल रहे हैं” या “आज आखिरी तारीख” जैसी बातें डर फैलाने के लिए डाली जाती हैं।

4. टीवी पर प्रसारण का दावा – इस तरह के मैसेज में अक्सर “टीवी पर दिखाया गया” कहा जाता है, लेकिन इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं होता।

📌 अगर आप सच में अपनी प्राइवेसी सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो:

फेसबुक/मेटा की Privacy Settings में जाकर फोटो और डेटा शेयरिंग को नियंत्रित करें।

सिर्फ भरोसेमंद लोगों को अपनी पोस्ट और जानकारी देखने की अनुमति दें। लोग धड़ाधड़ फेसबुक पर पोस्ट कर रहे हैं 👇👇👇

 

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