@शब्द दूत ब्यूरो (23 जुलाई 2025)
नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना (498A) से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि महिला द्वारा पति या ससुराल पक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के बाद पुलिस कम से कम दो महीने तक गिरफ्तारी न करे। यह फैसला महिला आईपीएस अधिकारी शिवांगी बंसल और उनके पति से जुड़े एक अत्यंत संवेदनशील मामले की सुनवाई के दौरान आया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि झूठे या मनगढ़ंत आरोपों के चलते पति और उसके पिता को 100 से अधिक दिन जेल में रहना पड़ा, जो न केवल न्याय व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक संतुलन को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
कोर्ट की टिप्पणियाँ:
“498A का दुरुपयोग हो रहा है।”
“मामले की जांच किए बिना गिरफ्तारी गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है।”
“हर शिकायत को सही मानते हुए तुरंत कार्रवाई करना उचित नहीं।”
इस फैसले का दूरगामी प्रभाव माना जा रहा है, क्योंकि अब पुलिस को गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच, समझौता के प्रयास, और परिस्थितियों की समीक्षा करनी होगी।
मामले की पृष्ठभूमि:
शिवांगी बंसल, जो एक सीनियर आईपीएस अधिकारी हैं, ने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था। बाद में जांच में पाया गया कि कई आरोप निराधार थे और आरोपियों को अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ा।
सामाजिक प्रतिक्रिया:
कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को न्यायिक संतुलन और विवेकपूर्ण प्रक्रिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है।
यह फैसला न केवल निर्दोष व्यक्तियों को राहत देगा, बल्कि दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग को भी रोकने में मददगार होगा।
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