@विनोद भगत
वाशिंग्टन और नई दिल्ली के बीच अलग-अलग दावे आखिर क्या है मामला? अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दावा किया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह बयान ऐसे समय पर आया है जब उन्होंने रवांडा और कांगो के बीच दशकों पुराने खूनी संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक ऐतिहासिक शांति संधि की घोषणा की है।
सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक विस्तृत बयान में ट्रंप ने खुद को वैश्विक शांति का दूत बताते हुए कहा कि वे कांगो और रवांडा के प्रतिनिधियों को वाशिंगटन में संधि पर हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित कर चुके हैं। उन्होंने अफ्रीकी उपमहाद्वीप के लिए इसे एक “महान दिन” बताया। साथ ही, उन्होंने भारत-पाकिस्तान, सर्बिया-कोसोवो, मिस्र-इथियोपिया और मध्य पूर्व के लिए भी अपने शांति प्रयासों की चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, चाहे उन्होंने कितना भी बड़ा काम क्यों न किया हो — क्योंकि दुनिया “जानती है” और वही उनके लिए मायने रखता है।
ट्रंप के इस दावे में सबसे ज्यादा उल्लेखनीय हिस्सा यह है कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका को टालने का श्रेय स्वयं को देते हैं, जबकि भारत सरकार ने पहले ही उनके इस दावे को खारिज किया था। वर्ष 2019 में भी ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से “कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता” के अनुरोध की बात कही थी, जिसे भारत सरकार ने सिरे से नकार दिया था।
अब एक बार फिर उनके इस बयान से भारत सरकार की चुप्पी सवालों के घेरे में है। विदेश मंत्रालय की ओर से न तो इस दावे का कोई आधिकारिक खंडन आया है और न ही ट्रंप के बार-बार किए जा रहे उल्लेखों पर कोई प्रतिक्रिया दी गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या भारत सरकार डोनाल्ड ट्रंप के बयानों को अनदेखा करना रणनीतिक चुप्पी का हिस्सा मान रही है या फिर उनकी बातों को महत्वहीन समझ रही है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए क्योंकि ट्रंप द्वारा बार-बार भारत-पाक के द्विपक्षीय मसलों पर सार्वजनिक दावे करना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रम की स्थिति पैदा कर सकता है। साथ ही, यह भारत की संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति के सिद्धांतों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
राजनयिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि ट्रंप 2024 में फिर से राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में हैं और ऐसे में वे अपने अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत सरकार की ओर से यदि इस पर कोई सटीक और तर्कसंगत प्रतिक्रिया नहीं दी जाती, तो यह न केवल कूटनीतिक असमंजस की स्थिति पैदा करेगा बल्कि भारत की छवि पर भी असर डाल सकता है।
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