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हर बरसात में डूबते शहर: जलभराव की समस्या पर एक व्यापक विश्लेषण, आकस्मिक आपदा नहीं है जलभराव

@विनोद भगत

भारत में हर वर्ष बरसात का मौसम केवल किसानों की उम्मीदें नहीं लाता, बल्कि शहरों में रहने वालों के लिए यह आफत बनकर आता है। सड़कों पर घुटनों तक भरा पानी, ट्रैफिक जाम, बिजली कटौती और संक्रामक रोगों का फैलना अब आम बात हो गई है। यह समस्या अब केवल बारिश तक सीमित नहीं रही, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक और राजनैतिक विफलता का प्रतीक बन चुकी है।

जलभराव का भूगोल

शहरों के बेतरतीब विस्तार, अतिक्रमण, जल निकासी व्यवस्था की अनदेखी और शहरी योजनाओं की अव्यवस्था इस समस्या के मूल कारण हैं। अधिकांश शहरों की ड्रेनेज सिस्टम दशकों पुरानी है, जिसे समय के साथ अपग्रेड नहीं किया गया। नालियों की सफाई नहीं होना, जल निकासी के रास्तों पर अवैध निर्माण और शहरी नालों में कूड़े-कचरे का जमाव समस्या को और जटिल बना देता है।

 राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाम प्रशासनिक निष्क्रियता

राजनीतिक नेता अक्सर दावा करते हैं कि अबकी बार जलभराव की समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके दावे अधिकांशतः भाषणों और कागज़ों तक ही सीमित रहते हैं। यह कार्य अधिकारियों की जिम्मेदारी होता है, जिन पर नेताओं का बहुत कम नियंत्रण है। अधिकांश जनप्रतिनिधि या तो अधिकारियों पर दबाव नहीं बना पाते, या फिर भ्रष्टाचार और लापरवाही की मिलीभगत में फंस जाते हैं।

 जनता की उम्मीदें और विश्वास

आम नागरिक हर बार उम्मीद करता है कि अगली बारिश में स्थिति बेहतर होगी। लोग नेताओं पर अत्यधिक विश्वास कर लेते हैं, लेकिन जब वास्तविकता सामने आती है तो वे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। यह भरोसा बार-बार टूटता है लेकिन विकल्पहीनता की स्थिति में जनता फिर से उन्हीं चेहरों को चुनने पर विवश होती है।

 कुछ अपवाद, कुछ मिसालें

हालांकि, देश में कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जहां जनप्रतिनिधि और प्रशासन मिलकर कार्य कर रहे हैं। इंदौर, सूरत और कुछ दक्षिण भारतीय शहरों ने जल निकासी की व्यवस्थित योजना बनाई और उन्हें समय पर क्रियान्वित भी किया। इन शहरों की सफलता हमें यह संकेत देती है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक समर्पण हो तो समाधान संभव है।

काशीपुर नगर निगम भी इन सकारात्मक उदाहरणों में शामिल होता जा रहा है। महापौर दीपक बाली के नेतृत्व में शहर में जलभराव की समस्या के स्थायी समाधान हेतु कई ठोस कदम उठाए गए हैं। उन्होंने प्रमुख नालियों की सफाई, जल निकासी मार्गों के पुनर्निर्माण और संवेदनशील क्षेत्रों में त्वरित जल निकासी प्रणाली के विकास का काम युद्ध स्तर पर प्रारंभ कराया है।

महापौर के निर्देशन में नगर निगम ने वार्ड स्तर पर जलभराव संभावित क्षेत्रों की सूची तैयार कर वहां सोलर ड्रेनेज पंप की व्यवस्था शुरू की है, साथ ही नागरिकों को जागरूक करने के लिए स्वच्छता रथ और अभियान भी चलाए गए हैं। उनकी पारदर्शिता और लगातार क्षेत्र निरीक्षण की नीति के चलते अब जलभराव की गंभीरता में कमी देखी जा रही है। यह काशीपुर जैसे शहरों के लिए एक सकारात्मक संदेश है।

 मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका

मीडिया और सोशल मीडिया ने जलभराव की समस्या को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर साल जब बारिश होती है, तो तस्वीरें और वीडियो वायरल होते हैं। पर सवाल यह है कि क्या केवल दिखावे से कोई बदलाव होता है? क्या प्रशासन इन सूचनाओं को संज्ञान में लेकर कार्यवाही करता है? अधिकतर मामलों में यह केवल खबर बनने तक सीमित रह जाता है।

जलभराव और स्वास्थ्य

जलभराव केवल यातायात और सुविधा की समस्या नहीं है, यह स्वास्थ्य संकट भी बनता जा रहा है। जलजनित रोग जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, हैजा और मलेरिया की घटनाएं इस मौसम में बढ़ जाती हैं। जल में बहता कचरा और सीवर का पानी लोगों की जान पर बन आता है। इसके अलावा, गंदे पानी में गिरकर घायल होने या करंट लगने की घटनाएं भी होती हैं।

 पर्यावरणीय पहलू

शहरीकरण की अंधी दौड़ में प्राकृतिक जल स्रोतों और जल निकासी के परंपरागत मार्गों को पाट दिया गया है। झीलें, तालाब, नाले और नदियाँ जो कभी शहरों को जलभराव से बचाती थीं, आज उन पर इमारतें खड़ी हैं। हरियाली का स्थान कंक्रीट ने ले लिया है, जिससे भूमि जल अवशोषण की क्षमता भी घट गई है। यह भी जलभराव के मूल कारणों में से एक है।

समाधान क्या है?

हर शहर में वर्षा जल निकासी की मास्टर प्लान तैयार की जानी चाहिए। ड्रेनेज सिस्टम का नियमित निरीक्षण और मेंटेनेंस हो। वर्षा जल संचयन को बढ़ावा मिले ताकि जल संकट भी कम हो।यनागरिकों को जागरूक किया जाए कि वे नालियों में कूड़ा न डालें।यस्मार्ट सिटी योजनाओं में जलभराव निवारण को प्राथमिकता मिले।यभ्रष्टाचार पर अंकुश लगाते हुए पारदर्शिता बढ़ाई जाए।

भारत जैसे देश में जहां हर साल मानसून आता है, वहाँ जलभराव कोई आकस्मिक आपदा नहीं है, बल्कि यह एक पूर्वानुमेय, हल की जा सकने वाली समस्या है। लेकिन जब तक प्रशासन, राजनीति और नागरिक चेतना एक साथ नहीं जुड़ते, तब तक यह समस्या यूँ ही हर साल शहरों को डुबोती रहेगी और हम तस्वीरें वायरल कर आक्रोश जताते रहेंगे।

(यह रिपोर्ट स्थानीय नागरिकों की समस्याओं, प्रशासनिक लापरवाहियों और पर्यावरणीय पहलुओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। उद्देश्य केवल आलोचना नहीं, बल्कि समाधान की दिशा में सोच उत्पन्न करना है।)

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