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वैश्विक मंच पर नेहरू: 70 देशों के डाक टिकटों पर छपने वाले पहले और एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री, जिन देशों में कभी नहीं गये वहाँ भी डाक टिकटों पर तस्वीर

@शब्द दूत ब्यूरो (16 जून 2025)

पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय इतिहास के ऐसे पुरोधा हैं जिन्होंने न केवल स्वतंत्र भारत की नींव रखी बल्कि विश्व पटल पर भारत की पहचान भी एक सशक्त और अहिंसक राष्ट्र के रूप में स्थापित की। उनका व्यक्तित्व, विचारधारा और वैश्विक दृष्टिकोण इतने प्रभावशाली थे कि वे केवल भारत तक सीमित नहीं रहे। यही कारण है कि आज तक विश्व के 70 से अधिक देशों ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए हैं — और दिलचस्प बात यह है कि इन देशों में से अधिकांश में नेहरू कभी गए ही नहीं थे।

नेहरू के विचार शांति, सह-अस्तित्व, लोकतंत्र, विज्ञान, शिक्षा और मानव अधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता से ओतप्रोत थे। उनका “पंचशील सिद्धांत” और “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” जैसी पहलें वैश्विक राजनीति में उनके योगदान को रेखांकित करती हैं। इन कारणों से, वे उन राष्ट्रों में भी लोकप्रिय हो गए जहाँ उन्होंने कभी कदम नहीं रखा था।

इस अद्भुत वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक बना उनका चित्र – जो 70 देशों के डाक टिकटों पर सम्मानपूर्वक प्रकाशित हुआ। यह एक असाधारण बात है, क्योंकि अमूमन डाक टिकटों पर केवल उस देश के राष्ट्रीय नायकों, राष्ट्रपति, राजा-रानियों या महत्वपूर्ण घटनाओं की छवियां प्रकाशित होती हैं। ऐसे में किसी अन्य देश के प्रधानमंत्री को इस तरह की मान्यता मिलना, अपने-आप में एक ऐतिहासिक घटना है।

वे देश जहाँ नेहरू कभी नहीं गए, लेकिन टिकट पर छप गए। अफ्रीका, लातिन अमेरिका, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, और कुछ यूरोपीय देशों ने नेहरू के सम्मान में डाक टिकट जारी किए हैं। इनमें से कई देशों में उस दौर में भारत से कोई प्रत्यक्ष राजनयिक या व्यापारिक संबंध भी प्रगाढ़ नहीं थे। फिर भी, नेहरू के शांति व लोकतंत्र आधारित दृष्टिकोण, उनकी दूरदर्शिता और मानवतावादी सोच ने इन देशों के मानस पर गहरा प्रभाव डाला।

उदाहरणस्वरूप घाना, नाइजीरिया, युगांडा जैसे अफ्रीकी देशों में जब उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई चल रही थी, नेहरू का आज़ादी और समानता का दर्शन उनके लिए प्रेरणा बना।क्यूबा, ब्राज़ील और चिली जैसे लातिन अमेरिकी देशों ने भी उन्हें मानवाधिकारों के पक्षधर के रूप में पहचाना।

यूगोस्लाविया और इजिप्ट जैसे देशों में नेहरू, नासेर और टीटो की “गुटनिरपेक्ष तिकड़ी” के कारण उन्हें गहरी श्रद्धा से देखा गया।

डाक टिकट एक साधारण कागज का टुकड़ा प्रतीत होता है, लेकिन यह किसी देश के ऐतिहासिक निर्णय, सांस्कृतिक झुकाव और वैचारिक संबंधों का प्रतीक होता है। जब कोई देश किसी विदेशी नेता का टिकट जारी करता है, तो यह उस व्यक्ति की विचारधारा के प्रति उनके सम्मान और उस देश के साथ संबंधों की गहराई को दर्शाता है।

नेहरू के लिए इतने देशों द्वारा डाक टिकट जारी किया जाना, भारत की आज़ादी के तुरंत बाद वैश्विक मंच पर उनकी वैचारिक स्वीकार्यता और सम्मान का प्रमाण है। यह भी बताता है कि उन्होंने एक ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व किया जो पश्चिम और पूरब, दक्षिण और उत्तर – सभी दिशाओं के लिए एक सन्तुलन और संवाद का पुल था।

नेहरू को लेकर भारत में राजनीतिक विचार भले समय के साथ बदलते रहे हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उनके योगदान को लेकर आज भी गहरी मान्यता है। डाक टिकटों के माध्यम से 70 देशों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी, जिनमें से कई देश ऐसे थे जहाँ वे कभी शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं रहे। परंतु उनकी विचारधारा, शांति का संदेश, और स्वतंत्रता व समानता का दर्शन वहाँ ज़रूर पहुँचा।

यह तथ्य हमें यह याद दिलाता है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति की उपस्थिति से अधिक उसकी सोच और दृष्टिकोण दूर तक और देर तक प्रभाव डालते हैं — और नेहरू इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।

 

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