@विनोद भगत
मनुष्य का सबसे बड़ा वरदान उसकी वाणी है। यह वाणी ही है जो विचारों को अभिव्यक्त करती है, संबंधों को जोड़ती है और भावनाओं को समाज में प्रवाहित करती है। शब्दों के माध्यम से ही हम अपने अंतर्मन की आवाज़ को दूसरों तक पहुँचाते हैं। इस दृष्टिकोण से देखें तो हम जो भी शब्द बोलते हैं, वे केवल ध्वनि नहीं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व, सोच और संस्कृति के जीवंत दूत होते हैं।
शब्दों में केवल भाव नहीं, बल्कि आत्मा की छवि होती है। जब कोई व्यक्ति किसी से प्रेमपूर्वक, सहानुभूति या विनम्रता से बात करता है, तो उसका प्रभाव सामने वाले के मन पर स्थायी होता है। वहीं कठोर, कटु और अपमानजनक शब्द न केवल रिश्ते बिगाड़ते हैं, बल्कि आत्मा पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कहावत है – “बोली में है शक्ति बाण सी, जो मन को घायल कर सकती है।”
एक बार बोले गए शब्द तीर की तरह होते हैं – न वापस लौटते हैं और न ही रोके जा सकते हैं। इसीलिए बुद्धिमान व्यक्ति बोलने से पहले सोचता है, क्योंकि वह जानता है कि उसके शब्द उसके प्रतिनिधि बनकर दुनिया में जाएंगे और उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करेंगे। हमारे शब्द यह तय करते हैं कि सामने वाला हमें कितना सम्मान देगा या दूरी बना लेगा।
शब्दों में चमत्कारी ऊर्जा होती है। किसी निराश व्यक्ति को अगर समय पर सही और सहानुभूतिपूर्ण शब्द मिल जाएँ, तो वह टूटने से बच सकता है। वहीं, गलत समय पर बोले गए नकारात्मक शब्द किसी का आत्मविश्वास खत्म कर सकते हैं। यही कारण है कि संत-महात्मा, गुरु और विचारक शब्दों को साधना की तरह साधते हैं।
वही बात, जो सौम्यता से कही जाए, संवाद बनती है; और वही बात, जो अहंकार में कही जाए, विवाद बन जाती है। आज के डिजिटल युग में जब हम हर वक्त सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ लिखते-बोलते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि हमारे शब्द सार्वजनिक मंचों पर हमारे दूत की तरह पहुंचते हैं और समाज पर असर डालते हैं।
रामायण में केकई के बोले हुए दो वचन – “वनवास और राजगद्दी का वचन” – पूरे अयोध्या का भाग्य बदल देते हैं। महाभारत में द्रौपदी के शब्द – “अंधे का पुत्र भी अंधा” – महायुद्ध का कारण बनते हैं। ये प्रसंग यह दिखाते हैं कि शब्द केवल वाक्य नहीं, इतिहास के वाहक भी होते हैं।
इसलिए, जब भी हम कोई बात कहने जाएं, तो सोचें –क्या यह सत्य है?क्या यह आवश्यक है?क्या यह किसी को ठेस तो नहीं पहुँचाएगा?
अगर उत्तर सकारात्मक है, तभी बोलें। क्योंकि शब्द केवल ध्वनि नहीं, हमारे संस्कार, चरित्र और मानसिकता के जीवित दूत हैं, जो हमें बिना किसी पासपोर्ट के दुनियाभर में प्रतिष्ठा या अपयश दिला सकते हैं।
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