संसद में इन दिनों तमाशा ही तमाशा चल रहा है ,काम हो नहीं रहा। काम होगा भी नहीं ,क्योंकि सरकार कहती है कि उसके पास तमाम विधेयक पारित करने के लिए पर्याप्त संख्या बल है। संसद के दोनों सदनों में जो कुछ हो रहा है उसमें से बहुत कुछ अप्रत्याशित भी है और बहुत कुछ प्रायोजित भी। संसद की गरिमा की फ़िक्र किसी को नहीं है। यदि आप संसद की कार्रवाई देखते हों तो आपको पता होगा की संसद के दोनों सदनों में भाजपा,कांग्रेस और शेष विपक्ष के सदस्यों का आचरण कैसा है । संसद चलाने वालों का आचरण कैसा है ?
सबसे पहले लोकसभा की बात करें। लोकसभा में हंगामा जारी है ,क्योंकि सरकार ऐसा चाहती है । सरकार कांग्रेस के और विपक्ष के दूसरे दलों के सांसदों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देना चाहती है। संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू को और कुछ नहीं तो विपक्ष के नेता राहुल गांधी की टीशर्ट पर ही आपत्ति है । उनका मानना है कि टीशर्ट पहनकर संसद में आने से सदन की गरिमा गिरती है। किरेन का ये तर्क आपके गले उतरता हो तो अलग बात है ,लेकिन मेरे गले तो नहीं उतरता। संसद के किसी भी सदन में अभी तक कोई ड्रेस कोड नहीं है ,क्योंकि संसद संघ की शाखा नहीं बल्कि देश भर के अलग-अलग हिस्सों से चुनकर आने वाले जन प्रतिनिधियों का मंच है । सबकी अलग-अलग वेश-भूषा है। लेकिन किरेन ये नहीं समझते।
लोकसभा में ही लोकसभा के अध्यक्ष अडानी या अम्बानी का जिक्र आते ही भड़क जाते है । वे कहते हैं कि अडानी या अम्बानी सदन के सदस्य नहीं है इसलिए उनका नाम सदन के भीतर नहीं लिया जा सकता ,लेकिन दूसरी तरफ लोकसभा अध्यक्ष को अमेरिका के जार्ज सोरोस का नाम लेकर कांग्रेस के नेताओं पर हमला किये जाने से कोई आपत्ति नहीं है। मुमकिन है की लोकसभा अध्यक्ष को लगता हो की जार्ज सदन के सदस्य हैं इसलिए उनके नाम का उल्लेख किया जा सकता है। सत्तारूढ़ दल विपक्ष के किसी भी आरोप पर,सवाल पर कुछ बोलने के बजाय बेसिर-पैर के मुद्दे उठाकर हर सवाल से बचने की कोशिश में लगा हुआ है ,यदि ऐसा न होता तो सदन में न राहुल की टीशर्ट पर सवाल उठते और न जार्ज सोरोस और कांग्रेस के रिश्तों पर।
अब चलिए राज्यसभा मे। यहां तो विपक्ष ने सभापति जगदीप धनकड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर ही दिया है। जाहिर है कि विपक्ष के सब्र का बांध टूट गया है ,अन्यथा सभापति का इतना मान तो होता है कि कोई उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव न लाये। सभापति सबके होते हैं, होना चाहिए ,लेकिन धनकड़ सबके नहीं हैं ,वे भाजपा के जीवनव्रती सदस्य बने रहना चाहते हैं। वे शायद भूल गए हैं कि वे अब बंगाल के राज्य पाल नहीं बल्कि राजयसभा के सभापति हैं। राजयसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह ने कहा भी है कि उन्होंने धनकड़ जैसा पक्षपाती सभापति अपने पूरे जीवनकाल में नहीं देखा। मै एक साधारण पत्रकार हूँ लेकिन मैंने भी धनकड़ जैसा सभापति अपने जीवनकाल में नहीं देखा।
सदन में भाजपा मणिपुर पर चर्चा नहीं कर रही। बांग्लादेश से बिगड़ते रिश्तों पर बहस नहीं कर रही ,उसका प्रिय विषय जार्ज सोरोस हैं।जॉर्ज सोरोस को लेकर भाजपा हमलवार है और कांग्रेस पर सोरोस से संबंध रखने का आरोप लगाया है. पार्टी ने इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांगकी जिससे राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. भाजपा का कहना है कि कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी उस संगठन से जुड़ी हैं, जो सोरोस से फंड लेती हैं। यही नहीं, पार्टी का आरोप है कि मोदी सरकार को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने सोरोस के साथ हाथ मिलाया है। भाजपा को पता है कि कांग्रेस ने किस किस से हाथ मिला रखा है ,लेकिन उसे ये नहीं पता कि मणिपुर क्यों जल रहा है ? बांग्लादेश क्यों भारत से मुठभेड़ ले रहा है ?
आप कहीं लिखकर रख लीजिये कि भाजपा संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारु रूप से चलने की कोई कोशिश करेगी ही नहीं और ठीकरा विपक्ष के सर फोड़कर अपनी जिम्मेदारी से बचकर निकल भागेगी। दोनों सदनों के सभापति सदन को सर्वानुमति से चलने में नाकाम साबित हो चुके है। संसदीय कार्यमांत्रि नाकाम हो चुके हैं और प्रधानमंत्री की और से इस दिशा में कोई कोशिश की नहीं गयी है । वे कोशिश करेंगे भी नहीं,क्योंकि उनका विपक्ष के साथ संवाद ही नहीं है। प्रधानमंत्री संसद छोड़कर प्रयाग में महाकुम्भ की तैयारियों का जायजा लेने पुराने अलाहबाद जाएंगे किन्तु सदन में शांति स्थापना के लिए प्रकट नहीं होंगे।
बहरहाल सांसद में तमाशा जारी है। राजयसभा में सभापति धनकड़ साहब के खिलाफ भले ही विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव पारित न हो लेकिन उनके लत्ते तो लिए जायेंगे है । धनकड़ के लत्ते लिए जाने का मतलब है सरकार के लत्ते लिए जाना। भाजपा और पूरी सरकार की कोशिश सदन चलाने की नहीं बल्कि आईएनडीआईए गठबंधन को तोड़ने की है। सरकार ये कर भी सकती है ,क्योंकि सरकार और सरकारी पार्टी को तोड़फोड़ का पर्याप्त अनुभव है । पिछले दस साल छह महीने में सरकार और सरकारी पार्टी ने अनेक क्षेत्रीय दलों को तोड़ा है ,अनेक जनादेशों को खरीदा और बेचा है।
मेरी सहानुभूति विपक्ष के साथ नहीं बल्कि सत्तापक्ष के साथ है । प्रधानमंत्री के साथ है क्योंकि वे चाहकर भीं प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह सर्वप्रिय नेता नहीं बन पाए। वे अपनी सरकार को सबको साथ लेकर चला भी नहीं पा रहे हैं। वे एक लंगड़ी सरकार के प्रधानमंत्री हैं। उनके पास अपना संख्या बल नहीं है। वे बैशाखियों के सहारे सरकार चला रहे हैं। एक विकलांग सरकार के मुखिया से ज्यादा अपेक्षा करना भी उनके प्रति अन्याय है। प्रधानमंत्री जी जितना कर पा रहे हैं उतना कम नहीं है। वे दया के पात्र हैं। क्योंकि देश का विपक्ष उनके साथ नहीं है । देश की अकलियत उनके साथ नहीं है। वे टीशर्ट से नफरत करते हैं। आदि-आदि। मेरा विपक्ष से अनुरोध है कि वो प्रधानमंत्री जिको ज्यादा परेशान न करे । वे 75 साल के होने वाले हैं। उन्हें महाराष्ट्र के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव भी जीतना है। उन्हें सदन की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाये तो बेहतर है।
राहुल गांधी की टीशर्ट पर आपत्ति और जार्ज सोरोस से कांग्रेस के रिश्तों को मुद्दा बनाने से यदि लंगड़ी सरकार का भला हो सकता है तो जरूर होना चाहिए,क्योंकि इन दोनों मुद्दों से कांग्रेस का तो कुछ बुरा होना नहीं है । कांग्रेस का तो जितना बुरा होना था वो हो चूका । और बचा-खुचा आने वाले दिनों में आईएनडीआईऐ के विघ्नसंतोषी घटक खुद कर देंगे। कांग्रस सत्ता में नहीं है और 2029 तक लोकसभा में कोई माई का लाल कांग्रेस से लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद छीन नहीं सकता। जय श्रीराम
@ राकेश अचल