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काल गणना के प्राचीनतम केंद्र उज्जैन में स्थापित है वैदिक डिजिटल घड़ी

@देशना जैन

मानव सभ्यता के विकास के साथ, काल (समय) को जानने और मापने के प्रयास प्राचीनकाल से ही हो रहे है और कालखंड को सटीक तरीके से समझने की कोशिश ने कईं प्रकार की घड़ियों को बना डाला और इन्हीं विविध प्रकार की घड़ियों ने काल गणना की ओर मानव को अग्रसर किया है।

कालगणना का विकास क्रम

प्राचीन काल में समय की गणना (काल गणना) मुख्य रूप से खगोल विज्ञान और प्राकृतिक घटनाओं पर आधारित होती थी। विभिन्न सभ्यताओं ने अपनी-अपनी विधियों और उपकरणों का विकास किया था, जो प्रकृति के चक्रों और खगोलीय घटनाओं पर आधारित था हालांकि आज भी खगोलीय घटनाओं को नकारा नहीं जा सकता है।

जल घड़ी

इतिहास देखें तो पता चलता है कि सबसे पहले पानी द्वारा समय नापने की घड़ी बनाई गई, फिर रेत घड़ी बनी और उसके बाद सूर्य की छाया से याने सूर्य घड़ी समय नापा गया। इसके बाद पंद्रहवीं शताब्दी में मैकेनिकल घड़ी का आविष्कार हुआ। जल घड़ी या पानी की घड़ी, समय मापने का एक प्राचीन उपकरण है, जिसका उपयोग सदियों तक किया जाता रहा था। यह घड़ी पानी की धीमी और नियमित गति से बहने पर आधारित होती थी। जल घड़ी की सबसे पुरानी मिसालें मिस्र और मेसोपोटामिया से मिलती हैं, जहां इसे “क्लीप्सीड्रा” के नाम से जाना जाता था। इसमें पानी धीरे-धीरे एक पात्र से दूसरे में बहता था, और पानी के स्तर के आधार पर समय का अनुमान लगाया जाता था।

रेत घड़ी

रेत की घड़ी, जिसे बालू घड़ी भी कहा जाता है, समय मापने का एक प्राचीन और सरल उपकरण है। जिसमें दो कांच के बल्ब एक पतली नलिका से जुड़े होते हैं। ऊपरी बल्ब में भरी हुई बारीक रेत धीरे-धीरे नीचे के बल्ब में गिरती है, और जब सारी रेत नीचे गिर जाती है, तो एक निश्चित समय समाप्त हो जाता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से समय मापने के लिए किया जाता रहा है, खासकर मध्य युग में नाविकों, धार्मिक अनुष्ठानों और अन्य गतिविधियों में होता था। लम्बें समय की गणना इससे संभव नहीं थी।

सूर्य घड़ी

सौर घड़ी पत्थरों की बनी होती है और उस पर अंक लिखे होते है, दिन में जब सूर्य की रोशनी घड़ी पर गिरती है और उससे बनने वाली छाया से समय की गणना की जाती है। यह घड़ी न केवल समय बताती है बल्कि मौसम और ग्रहों की जानकारी भी देती है। पूरे भारत में केवल 3 जगह पर यह घड़ी बनी हुई है। जयपुर, दिल्ली एवं उज्जैन में ही सूर्य घड़ी स्थापित है। राजा सवाई जयसिंह द्वारा इन घड़ियों का निर्माण किया गया था।

मैकेनिकल घड़ी

इन विभिन्न तरीकों से प्राचीन काल में न केवल समय, बल्कि वर्ष, मास, और दिन की सटीक गणना की जाती थी। यह गणना जीवन के सभी पहलुओं, जैसे धार्मिक अनुष्ठान, कृषि, और सामाजिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होती थी। अब हम मैकेनिकल घड़ी का उपयोग कर रहे हैं। अभी की मैकेनिकल घड़ी जो गियर और शाफ्ट से चलती है, वह केवल मात्र समय मापन का तरीका है। इसका खगोलिक परिस्थितियों और वायु से कोई संबंध नहीं है। यह पूरी तरह से मानव संचलित है। इस घड़ी का विकास डिजिटल घड़ी के रूप में भी हुआ। जो वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलन में है।

वैदिक डिजिटल घड़ी

प्राचीन काल की सूक्ष्म काल गणना को वर्तमान में डिजिटल रूप में लाने के प्रयास को भी अब सफलता मिल चुकी है। कुछ समय पूर्व लखनऊ के डॉ. आरोह श्रीवास्तव ने डिजिटलाइज़ वैदिक घड़ी का निर्माण किया, यह घड़ी पूरे विश्व में एकमात्र वैदिक डिजिटल घड़ी है। जिसे उज्जैन में स्थापित किया गया है, और इसे विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का नाम दिया गया है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के प्रयासों से स्थापित इस वैदिक घड़ी का वर्चुअली उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा फरवरी 2024 में किया गया है। घड़ी में जीपीएस, सैटेलाइट जैसी नई टेक्नोलॉजी की मदद से पृथ्वी की सूर्य के प्रति चाल को सटीकता से नापा जा सकता है। यह घड़ी जिस स्थान पर प्रयोग होती है, वहाँ की सूर्य की चाल से समय बताती है।इसमें भारतीय पंचांग, विक्रम संवत, मास, ग्रह स्थिति, योग, भद्रा स्थिति, चंद्र स्थिति, पर्व, शुभाशुभ मुहूर्त, घटी, नक्षत्र, जयंती, व्रत, त्यौहार, चौघडिया, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, आकाशस्थ, ग्रह, नक्षत्र, ग्रहों का परिभ्रमण आदि समाहित है।

इस वैदिक घड़ी में जब घड़ी में 00:00 बज रहे हों तो वह सूर्योदय का समय होता है। इसी प्रकार जब 15:00 बज रहे हों तो वह सूर्यास्त का समय होता है। यह प्रणाली विशेष रूप से वैदिक काल में धार्मिक और ज्योतिषीय अनुष्ठानों के लिए उपयोगी थी, और इसी के अनुसार शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता था। यह घड़ी 30 मुहूर्त में समय को विभाजित करती है। इसमें 48 मिनट का एक मुहूर्त निर्धारित है, जिसे हम 1 घंटे के बराबर मान सकते है। इस घड़ी को 30 मुहूर्त, 30 काल और 30 काष्ठ में बाटा गया है। सूर्य की स्थिति नापते हुए मुहूर्त का विभाजन होता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में जो मुहूर्त का वर्णन है, वह कुछ इस प्रकार है कि सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच में 15 मुहूर्तों में दिन विभाजित होता है। इसी प्रकार सूर्यास्त से सूर्योदय में भी 15 मुहूर्त रात्रि के बताए गए हैं।

वर्नल इक्विनॉक्स के दिन यह दिन और रात का समय बराबर हो जाता है। उज्जैन में लगी यह वैदिक घड़ी एक डिजिटाइज़ संस्करण है। यह घड़ी एक चिप के ‌माध्यम से चलती है, जिससे इसे हैक नहीं किया जा सकता है। यह काल गणना में सटीक है एवं भारतीय संस्कृति और व्यवहार के अनुरूप है, जिससे सटीक मुहूर्त का पता चल सके। यह वैदिक घड़ी आधुनिक तकनीक के माध्यम से काल गणाना के सही तथ्यों को विश्व के सामने लाने का प्रयास है। इसके माध्यम से भारत पूरे विश्व को दिखा रहा है कि हमारी प्रक्रिया एवं हमारी गणना कितनी सही है। इसे जल्द ही कलाई घड़ी और दीवार घड़ी में भी लाने का प्रयास चल रहा है। इस घड़ी का उपयोग मोबाइल ऐप के जरिये फोन में भी किया जा सकेगा।

उज्जैन में ही क्यों लगायी वैदिक घड़ी

उज्जैन प्राचीन काल से ही समय की गणना का प्रमुख केंद्र रहा है। क्योंकि उज्जैन संसार के बिल्कुल मध्य भाग में स्थित है। भू मध्य कर्क रेखा उज्जयिनी से हो कर ही निकलती है। भारत के ज्योतिर्विज्ञान के कईं विद्वानों ने यहां रह कर खगोल और भूगोल के क्षेत्र में कईं शोध किए है। बहुत सारे सिद्धांत आर्य भट्ट और वराहमिहिर के सिद्धांत बेजोड़ है। एक तथ्य यह भी है कि सृष्टि के आदि में सूर्य उदय के समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (रविवार) को काल का आरंभ हुआ। इसमे लंका और उज्जैयनी को इसका केंद्र माना गया था। इस संशय को वराह मिहिर ने पंच सिद्धान्तिका में और सूर्य सिद्धांत में दूर किया है। जब सूर्य उत्तर में परम क्रांति पर पहुंचता है, उस दोपहर में उज्जैन में शंकु (एक प्रकार की पतली छड़ी) की छाया अदृश्य हो जाती है। इसलिए ब्रह्मंड में सभी ग्रहों का गणित उज्जैयिनी के सूर्योदय और आधी रात से किया जाना प्रारंभ किया गया है। यानी समय की गणना के लिए उज्जैन ही प्रधान केंद्र है।

वर्तमान में पूरे विश्व में जो ग्रीनविच से समय की गणना की जा रही है वह साम्राज्यवादी युग की देन है। भारतीय सभ्यता इससे बहुत आगे रही है। विदेशी साम्राज्यवाद ने बड़ी चतुराई से संस्कृतिहंता की भूमिका निभाई और साथ ही यह भी प्रयास किया कि सिद्धांतों को तकनीक की खोज में पिछड़ा हुआ सिद्ध किया जाए। इसी के कारण संवत का स्थान सन ने ले लिया है । जब कि भारतीय संवत्सर परम्परा का सबसे पुराना इतिहास रहा है। आज भी उज्जैन काल गणना केंद्र की मान्यता को प्रबल करता है। विक्रम संवत यही से प्रारंभ किया गया था, पर ग्रीनविच के साम्राज्यवादी संदर्भ ने भारत की काल गणना के केंद्र उज्जैन को हाशिए में कर दिया था, जो कि अब पुन: स्थापित हो गया है।
उज्जैन का डोंगला गांव इसका प्रमाण है। डोंगला में संभवतः देश की पहली ऐसी वेधशाला है, जो खगोल विज्ञान के शोधार्थियों को घर बैठे शोध की सुविधा उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है। वेधशाला में लगे टेलीस्कोप को नेट कनेक्टिविटी से जोड़ा गया है। इसका फायदा यह होगा कि देश विदेश में रहने वाले शोधार्थी घर बैठे इस टेलीस्कोप के माध्यम से आनलाइन ग्रह, तारे देख सकेंगे। वर्तमान में कर्क रेखा डोंगला में स्थित है। इसलिए यहां से समय की सटीक गणना की जा रही है। उज्जैन में स्थापित वैदिक घड़ी और ऐसी वेधशाला के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि भारत के पास समय गणना का वास्तविक स्त्रोत है। उज्जैन के पास स्वयं का समय गणना का यंत्र, कैलेंडर है ताकि पूरे विश्व में उज्जैन की पहचान हो एवं सारे विश्व को पता चले कि लंदन में स्थित ग्रीनविच सिर्फ एक मानक है जबकि वास्तविक एवं प्रख्यात समय गणना का स्थान एवं पृथ्वी का केंद्र उज्जैन है।(विभूति फीचर्स)

 

 

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