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काशीपुर :दीवाली की तिथि पर ज्योतिषवेत्ता व विद्वान पं अरूण त्रिवेदी से शब्द दूत की खास बात, कब मनायें दीपावली देखिए पूरी बातचीत का वीडियो

@शब्द दूत ब्यूरो (22 अक्टूबर 2024)

काशीपुर । दीवाली की तिथि को लेकर विद्वानों के अलग अलग मत आ रहे हैं। इसी क्रम में शब्द दूत ने काशीपुर निवासी ज्योतिषवेत्ता व विद्वान पं अरूण त्रिवेदी से भी तिथि भ्रम के बारे में बात की। पं अरूण त्रिवेदी ने कुछ उदाहरण देते हुए दीवाली 31 अक्टूबर को ही मनाने की बात की।

पं अरूण त्रिवेदी के मतानुसार श्री महागणपति, महालक्ष्मी एवं महामाया महाकाली की पौराणिक अथवा तांत्रिक (आगम शास्त्रीय) विधि से साधना-उपासना का परम पुनीत पर्व दीपावली है। दीपावली में उद्योग-व्यापार के नवीन कार्य प्रारम्भ करने एवं पुराने व्यापार में खाता (बसना) पूजन का विधान सर्वत्र लोकप्रिय है।

धर्मशास्त्रानुसार ‘दीपावली’ प्रदोष काल एवं महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में विहित है, जिसमें प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों एवं व्यापारियों के लिये, तथा महानिशीथ काल का उपयोग आगमशास्त्र (तांत्रिक) विधि से पूजन हेतु उपयुक्त है।

प्रदोष काल से तात्पर्य है दिन-रात्रि का संयोग काल। दिन विष्णुरुप और रात्रि लक्ष्मीस्वरुपा है, इन दोनों का संयोग काल ही प्रदोष काल है।

उन्होंने कहा कि धर्म सिन्धु में कहा है-
…. ‘‘ ‘तुलासंस्थे सहस्त्राशौं प्रदोषे भूतदर्शयोः। उल्काहस्ता नरा कुर्युः पितृणां मार्गदर्शनम्। दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदा विहाय पूर्वेद्युः परेऽन्हिसुखरात्रि के। अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवा। सुधा धवलिता कार्याः पुष्पमालोपशोभिताः। अपरान्हे प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः। प्रदोषसमये राजन् कर्तव्या दीपमालिका।।’

उपरोक्त वचनानुसार प्रदोष समय लक्ष्मी पूजन काल है। प्रदोषार्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या में दीपावली विहित है। ’’
इस वर्ष दीपावली के पर्व में भ्रम की स्थिति बनेगी। अतः इसे स्पष्ट कर रहा हूँ।

इस वर्ष श्री शुभ सम्वत् 2081 शाके 1946 कार्तिक कृष्ण अमावस्या 30 (प्रदोष-कालीन) अंग्रेजी तारीखानुसार 31 अक्टूबर 2024 गुरूवार को है। इस दिन चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से लेकर दोपहर घं.03 मि. 54 तक रहेगी, तत्पश्चात् अमावस्या तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। दीपावली के पूजन हेतु धर्मशास्त्रीयमान्यतानुसार प्रदोष काल एवं महानिशीथ काल मुख्य हैं।

31 अक्टूबर 2024 को दीपावली के दिन भारतीय स्टैण्डर्ड समयानुसार धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल शाम घं.05 मि.18 से लेकर घं.07 मि.52 तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश घं.06 मि.07 से लेकर घं.08 मि.03 तक रहेगा।
अमृत चौघड़िया घं.05 मि.18 से घं.06 मि.54 तक, तत्पश्चात् चर चौघड़िया की वेला घं.06 मि.54 से घं.08 मि.30 तक रहेगी।
इस समयावधि में घं.01 मि.45 का समय अमावस्या, प्रदोष काल वृष लग्न और अमृत चौघड़िया का पूर्ण शुभ संयोग रहेगा।
इसके बाद महानिशीथ काल रात्रि घं.11 मि.15 से घं.12 मि.06 तक रहेगा। इस समयावधि में अमावस्या और महानिशीथ काल का पूर्ण संयोग रहेगा। उल्लेखनीय है कि दीपावली में महानिशीथ काल अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें लाभ चौघड़िया की वेला घं.11 मि.42 से घं.01 मि.18 तक रहेगी।

इसके बाद रात्रि घं.12 मि.35 से घं.02 मि.49 तक स्थिर लग्न सिंह रहेगी। इस समयावधि में अमावस्या और सिंह लग्न का पूर्ण संयोग रहेगा। इसमें भी लाभ चौघड़िया की वेला घं.11 मि.42 से घं.01 मि.18 तक रहेगी।
इस प्रकार 31 अक्टूबर 2024 गुरूवार को अमावस्या रात्रि पर्यन्त रहेगी। उसमें उपरोक्त शुभ योगों का समावेश भी रहेगा।
अब 01 नवम्बर 2024 शुक्रवार की स्थिति का विश्लेषण देखिए। इस वर्ष तारीख 01 नवम्बर 2024 दिन शुक्रवार को सूर्योदय से शाम घं.06 मि.17 तक अमावस्या तिथि रहेगी, तत्पश्चात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा प्रारम्भ हो जाएगी।

01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को अमावस्या के दिन धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल शाम घं.05 मि.17 से लेकर घं.07 मि.51 तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश घं.06 मि.03 से लेकर घं.07 मि.59 तक रहेगा। रोग (अशुभ) चौघड़िया घं.05 मि.17 से घं.06 मि.49 तक, तत्पश्चात् काल (अशुभ) चौघड़िया की वेला घं.06 मि.49 से घं.08 मि.21 तक रहेगी।

अब यहाँ ध्यान देने योग्य विशेष तथ्य है कि, शुक्रवार को अमावस्या तिथि सूर्यास्त के बाद कुल एक घंटे रहेगी, उसके बाद शुक्ल प्रतिपदा लगेगी, उसमें भी स्थिर लग्न वृष घं.18 मि.03 से लगेगी, और घं.18 मि.17 पर अमावस्या समाप्त हो जाएगी, जिसके कारण पूजन का समय कुल 14 मिनट का प्राप्त होगा, उसमें भी रोग और काल चौघड़िया का अशुभ योग विद्यमान रहेगा।

01 नवम्बर 2024 शुक्रवार को महानिशीथ काल के एवं स्थिर लग्न सिंह के समय अमावस्या तिथि का अभाव रहेगा। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तत्कालीन तिथि हो जाएगी।

दिवोदासीये तु प्रदोषस्य कर्मकालत्वात् अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवाः ।। सुधाधवलिताः कार्याः पुष्पमालोपशोभिताः। इति ब्रह्मोक्तेश्च प्रदोषार्धरात्रव्यापिनी मुख्या। एकैकव्याप्तौ परैव। प्रदोषस्य मुख्यत्वादर्धरात्रेऽनुष्ठेयाभावाच्च।
अर्थात् दिवोदासीय में तो प्रदोष को कर्मकाल कहा है। ब्रह्मपुराण में कहा है कि- आधी रात के समय घरों में आश्रय प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी घूमती है। इसलिए मनुष्य अलंकारों से युक्त तथा पुष्पमाला से शोभित हो कर चन्दन लगा कर दीपकों के उजाले में उत्सव कर जागते रहें।

प्रदोष और अर्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या मुख्य है। एक नवम्बर को अर्धरात्रि में अमावस्या का अभाव है।अतः सभी शुभाशुभ योगादि को देखते हुए दीप पर्व 31 अक्टूबर को ही मनाना शुभ और धर्मशास्त्रानुसार है।
वैसे अवधी में , एक लोकोक्ति है,
करवा है करवारी,
तेहि से बरहे दिन दीवारी।
अर्थात करवा चौथ से बारहवें दिन दीवाली होती है , 20 अक्टूबर को करवा चौथ थी उससे 12 वें दिन 31 को दीवाली है।

नोट – शब्द दूत में प्रकाशित दीवाली तिथि को लेकर जो भी जानकारी दी गई है वह विद्वानों और ज्योतिषवेत्ताओं द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है।

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