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बदलती हुई परिस्थिति में शिक्षकों का दायित्व

@प्रो. तारकेश्वर प्रसाद सिंह

भविष्य की संभावित चुनौतियों का सामना करने के लिए आज दूरगामी शिक्षा नीति की जरुरत है। शिक्षक दिवस शिक्षकों के आदर्श एवं दार्शनिक राज्याध्यक्ष सर्वपल्ली ड़ॉ राधाकृष्णन का जन्म दिवस है जिस दिन शिक्षकों के सम्मान एवं दायित्व की याद दिलायी जाती है। कहा जा सकता है कि जब तक राधाकृष्णन जैसे ज्ञानी राज्याध्यक्ष नहीं होंगे तब तक भ्रष्टतंत्र का अन्त नहीं होगा और दुनियां में शान्ति नहीं होगी।

आज बदलती हुई परिस्थिति में शिक्षा के स्वरूप में आमूल परिवर्तन की जरूरत है।जर्मनी के हीगेल, भारत के अरविन्द और महात्मा गांधी जैसे आदर्श वादियों ने सृष्टि के उच्चतर विकास के आधार पर भविष्य में अतिमानव के विकास होने पर सुपरमेन की कल्पना की थी और वे मानव के उज्जवल भविष्य के प्रति आशान्वित थे। आज एडवर्ड बेलामी जैसे लोगों को वर्तमान सदी उज्जवल नजर आ रही है , तो एल्वीन टोफ्लर जैसे समाज वैज्ञानिक को भयावह भविष्य नजर आ रहा है। जिसका सामना करने हेतु भावी पीढ़ी को तैयार करने के लिए उन्होंने शिक्षा में आमूल परिवर्तन की सिफारिश की है। वास्तव में वैज्ञानिक विकास और औद्योगिक क्रान्ति के बाद दुनिया अन्धी दौड़ में दौड़ती गयी है और इस भौतिक वादी होड़ में दुनियां उस मोड़ पर पहुंच गयी है जहां आगे के सभी रास्ते बन्द है, सिर्फ विनाश का मार्ग खुला है। औद्योगिक विकास से सुख सुविधाएं बढ़ी है, पर भौतिकवादी होड़ भी बढ़ी है जिससे साम्राज्यवाद बढ़ा। प्रतिवाद में आजादी की लड़ाईयां हुई अन्तत: दो -दो विश्व युद्ध हुए।

नये साम्राज्यवाद से तीसरा विश्व युद्ध भी होकर रहेगा जिसमें अन्तरिक्ष युद्ध के भीषण प्रदूषण से भारी विनाश होगा। भौतिक वादी होड़ से पूंजीवादी व्यवस्था एवं उपभोक्तावादी संस्कृति पनपी है, तो दूसरी और गरीबों की गरीबी भी बढ़ी है। ऐसी बदलती परिस्थिति में समाज एवं प्रकृति में संभावित परिवर्तनों का अन्दाजा लगाकर भावी पीढ़ी को तैयार करने की जरूरत है।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर समान शिक्षा पाठयक्रम, पाठयक्रम में विविधता, रोजगारोन्मुख शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन की शिक्षा एवं अधिभौतिक वादी शिक्षा लागू करने की जरूरत है। व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के लिए नेताओं पर समाज का भाग्य न छोड़कर शिक्षाविदों एवं बुद्धिजीवियों को आगे आना होगा। हाय-तौबा करने और रोने से काम नहीं चलेगा। बल्कि समस्याओं के समाधान के लिए उचित पृष्ठ भूमि तैयार करनी होगी। ऐसी वर्तमान भयावह स्थिति में शिक्षक सिर्फ पेट भरने वाले विद्या विक्रेता नहीं बने, बल्कि विश्वमित्र, वशिष्ठ, चाणक्य के आदर्श को अपनाये।

स्वयं भूखा रहकर भी भावी पीढ़ी को तैयार करें। सुभाष चन्द्र बोस का कथन आदर्श है-‘शिक्षक मोमबत्ती की तरह जलकर दुनिया को प्रकाश देता है और स्वयं जलते-जलते समाप्त हो जाता है। (विनायक फीचर्स)

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