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आखिर संसद का मौसम गड़बड़ क्यों ?वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल बता रहे पूरा हाल

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

संसद के बजट सत्र का मौसम खराब हो रहा है। खासतौर पर लोकसभा का मौसम ठीक नहीं दिखाई दे रहा। तृण मूल कांग्रेस ने तो खराब मौसम की चेतावनी देते हुए सत्ता पक्ष से अपनी-अपनी कुर्सियों की पेटी बाँधने के लिए कहा है। हिचकोले खाती संसद में लोकसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष के सर पर छाता ताने खड़े रहना चाहते हैं ,ताकि सरकार विपक्ष के बादलों के बरसने पर ज्यादा भींगे नहीं।

लोकसभा में अध्यक्ष पद पर श्री ओम बिरला का ये दूसरा कार्यकाल है। वे संसद को कैसे चला रहे हैं ,इसके बारे में किसी टिप्पणी की जरूरत नहीं है। ये जानने के लिए सदन की कार्रवाई का सीधा प्रसारण देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है । सदन प्रमुख होने के नाते बिरला जी न तो विपक्ष को संरक्षण दे पा रहे हैं और न सत्ता पक्ष की ही ढंग से चाकरी कर पा रहे हैं। लोकसभा के इतिहास में ओम जी किस रूप में दर्ज किये जायेंगे ,ये कहना कठिन है।

लोकसभा में बुधवार को केंद्रीय बजट 2024 पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला में तीखी नोकझोंक से इस बात के संकेत एक बार फिर मिले की ओम बिरला जी सदन चलने में असुविधा का अनुभव कर रहे है। विपक्षी सांसदों के बोलते ही लोकसभा अध्यक्ष को लगता है कि वे सरकार के दुश्मन हैं। तृण मूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी ने चर्चा के दौरान दावा किया कि सदन में तीन कृषि कानूनों पर चर्चा नहीं की जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया था । अभिषेक बनर्जी के दावे पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने आपत्ति जताई और कहा कि इस सदन में तीन कृषि कानूनों पर करीब साढ़े पांच घंटे तक चर्चा हुई। बिरला की दावे पर अभिषेक ने जोर देकर कहा कि चर्चा नहीं हुई तो स्पीकर बोले कि जब अध्यक्ष बोलते हैं तो सही ही बोलते हैं और आपको रिकॉर्ड देखना चाहिए।

लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी के प्रति जैसी थी ठीक वैसा ही वे तृण मूल कांग्रेस के अभिषेक के साथ कर रहे हैं। सत्ता के खिलाफ बोलते ही सत्ता पक्ष की और से लोकसभा अध्यक्ष खुद बचाव की मुद्रा में बोलना शुरू कर देते हैं। वे अक्सर भूल जाते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष किसी दी का नहीं बल्कि सभी सांसदों के हितों का संरक्षक होता है। मेरे दिमाग में लोकसभा अध्यक्ष की जो छवि है उसमें पता नहीं क्यों बिरला जी समा नहीं रहे हैं। वे अक्सर संघ की शाखा प्रमुख के हिसाब से बर्ताव करने दिखाई देते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है की उन्होंने संघ की शाखाओं में केंद्रीय कर्मचारियों पर लगे प्रतिबंध की समाप्ति को अपने ऊपर भी लागू कर लिया है।
चर्चा के दौरान अभिषेक बनर्जी ने 2016 में की गई नोटबंदी का जिक्र किया जिस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि माननीय सदस्य आप वर्तमान बजट पर बात करें क्योंकि 2016 के बाद तो काफी समय निकल गया, इसके बाद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि कोई पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू की बात बोलेगा तो आप कुछ नहीं कहेंगे और मैं 2016 की नोटबंदी की बात कर रहा हूं तो आप कह रहे हैं कि वर्तमान बजट पर बोलिए। अभिषेक बनर्जी बोले कि ये पक्षपात नहीं चलेगा क्योंकि जब कोई इमरजेंसी के मुद्दे को उठाता है तो आप चुप रहते है। किसी भी लोकसभा अध्यक्ष के लिए ये लज्जा की बात है की सदन का कोई भी सदस्य उनके ऊपर पक्षपात का आरोप लगाए। दुर्भाग्य से ओम जी के साथ ऐसा हर दिन हो रहा है।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सदन की नेता सुमित्रा महाजन रहीं। उनसे पहले सुश्री मीरा कुमार ने भी सदन को सुचारु रूप से चलाया । यहां तक की वामपंथी सोमनाथ चटर्जी के कार्यकाल में भी लोकसभा अध्यक्ष की मर्यादा पर ज्यादा सवाल नहीं उठाये गए ,क्योंकि किसी ने भी खुद को सत्तापक्ष का स्पीकर बनाने की गलती नहीं की।भाजपा के मनोहर जोशी भी लोकसभा के सम्मानित अध्यक्ष रहे । कांग्रेस के पीए संगमा तो सबसे जायदा विनोदी लोकसभा अध्यक्ष थे, उनके कार्यकाल में कभी भी सदन में तनाव देखा ही नहीं गया । यहां तक कीटीडीपी के जीएमसी बालकृष्ण योगी ने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में एक यादगार भूमिका अदा की। मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी इस परम्परा को आगे बढ़ाने में हिचकोले खा रहे हैं।

अभिषेक बनर्जी ने संबोधन के दौरान बीजेपी पर निशाना साधते हुए सिर्फ इतना कहा कि गठबंधन का मतलब समन्यव होता है और कोई भी उसे मोदी 3.0 नहीं कह रहा। इस सरकार को खुद बीजेपी के मंत्री भी मोदी 3.0 नहीं कर रहे है। ये सरकार काफी अनिश्चित और नाजुक है और कभी भी गिर सकती है । उन्होंने कहा कि सब्र रखिए और कुर्सी की पेटी भी बांध लीजिए क्योंकि मौसम बिगड़ने वाला है। बनर्जी ने ये बात भी विनोद में कही है और इसे विनोद की तरह ही लेना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

आपको याद होगा कि माननीय ओम बिरला जी के खाते में सदन के सर्वाधिक सदस्यों को निलंबित करने का आधिकारिक रिकार्ड है । सदस्यों का निलंबन सबसे आखरी विकल्प होता है । सवाल ये है कि जिस भूमिका में ओम जी पिछली लोकसभा में थे वैसे ही क्या वे इस लोकसभा में रह सकते हैं ? मौजूदा लोकसभा में न सत्ता पक्ष प्रचंड बहुमत वाला है और न ही विपक्ष पहले कि तरह कमजोर और बिखरा हुआ है। इस बार विपक्ष को पहले कि तरह सामूहिक निलंबन की सजा नहीं सुनाई जा सकती। बेहतर तो यही है कि ओम जी हिकमत अमली से काम लें । सरकार के साथ विपक्ष को भी दुलारें ,पुचकारें ,हिकमत अमली से काम लें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटने पाए।

दुर्भाग्य से देश की राजनीति में सौहार्द के स्थान पर अदावत मजबूत होती जा रही है । इसे समाप्त करने या कम करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में पुल का काम कर सकते हैं। लोकतंत्र में अदावत और पक्षपात के लिए सीमित जगह होती है ,इसे प्रोत्साहित करना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है।
@ राकेश अचल

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