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कौन हैं 26/11 मुंबई हमले के आतंकी कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने वाले उज्ज्वल निकम, जिनकी राजनीति में हुई एंट्री

@शब्द दूत ब्यूरो (27 अप्रैल 2024)

1993 के बॉम्बे बम विस्फोट, गुलशन कुमार हत्याकांड, प्रमोद महाजन हत्याकांड, 2008 के मुंबई हमलों में संदिग्धों पर मुकदमा, 2013 मुंबई सामूहिक बलात्कार मामले, 2016 कोपार्डी बलात्कार और 26/11 मुंबई हमले के मुकदमे के दौरान आतंकी कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने वाले वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम को बीजेपी ने मुंबई उत्तर मध्य से उम्मीदवार बनाया है. पूनम महाजन की जगह बीजेपी ने उन्हें टिकट देकर सभी को चौंका दिया है. इस तरह से आतंक के खिलाफ लड़ाई रहने वाले निकम ने अब राजनीति में एंट्री की है.

बता दें कि निकम को 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उन्हें आंतकियों के खिलाफ लड़ाई और उनकी सुरक्षा को लेकर खतरा के मद्देनजर Z+ की सुरक्षा मुहैया कराई जाती है.

जलगांव में पले-बढ़े हैं निकम

बता दें कि निकम का जन्म महाराष्ट्र के जलगांव में मराठी माता-पिता के यहां हुआ था. उनके पिता, देवरावजी निकम, एक न्यायाधीश और बैरिस्टर थे और उनकी मां एक गृहिणी थीं. उनहोंने विज्ञान स्नातक से डिग्री प्राप्त की. उसके बाद उन्होंने के.सी.ई. से कानून की डिग्री हासिल की. उनका बेटा अनिकेत भी हाई कोर्ट मुंबई में क्रिमिनल वकील है.

आतंकवाद के खिलाफ निकम की लड़ाई

26/11 मुंबई अटैक: 26 नवंबर, 2008 मुंबई के लक्जरी होटल, एक यहूदी केंद्र और अन्य स्थलों को आतंकियं ने निशाना बनाया गया था, जिसमें 160 से अधिक लोग मारे गए थे. पुलिस द्वारा जीवित पकड़े गए एकमात्र हमलावर अजमल कसाब को 6 मई 2010 को मौत की सजा सुनाई गई और 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई. इसका मुकदमा देश के नामी वकील उज्ज्वल निकम ने लड़ी थी और आतंकियों को फांसी की सजा दिलाने में कामयाब रहे थे. निकम ने दिसंबर 2010 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर आयोजित एक विश्वव्यापी सम्मेलन में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया था.

2003 गेटवे ऑफ इंडिया बमबारी: इसके पहले 2003 गेटवे ऑफ इंडिया पर बमबारी के मामले में निकम ने सरकार की ओर से मुकदम लड़ा था. अगस्त 2009 में तीन लोगों को दोषी ठहराया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी. बता दें कि 25 अगस्त 2003 को मुंबई में दो कार बम विस्फोट हुए. एक आभूषण बाजार में और दूसरा गेटवे ऑफ इंडिया पर. इसमें भी कई लोगों की जान गई थी.

1993 बॉम्बे बम विस्फोट: 1993 बॉम्बे बम विस्फोट मामले में भी निकम को सफलता मिली थी. 12 मार्च 1993 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुए 13 विस्फोटों की श्रृंखला में संदिग्धों पर मुकदमा चलाने के लिए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत 2000 में एक विशेष अदालत की स्थापना की गई थी, जिसमें 257 लोग मारे गए थे. यह उस समय भारत का सबसे भीषण आतंकवादी हमला था. मुकदमा लगभग 14 वर्षों तक चला, और दर्जनों लोगों को दोषी ठहराया गया था.

1991 कल्याण बमबारी: 1991 कल्याण बमबारी मामले में रविंदर सिंह को 8 नवंबर 1991 को कल्याण में एक रेलवे स्टेशन पर बमबारी करने का दोषी ठहराया गया था, जिसमें 12 लोग मारे गए थे. इसकी भी कोर्ट में लड़ाई निकम ने ही लड़ी थी.

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